Tuesday, 10 April 2018

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ए बादशाहों के बादशाह !
तुम लुटाते ही जाते हो
हजार हाथों से,
सब को,
सब कुछ,
बिना माॅंगे,
बिना भेदभाव के,
बिना कृपणता के।

और,
हम सब ! माॅंगते नहीं थकते.... ...
घर लबालब भरा है तो भी,
बटोरते नहीं थकते ।

फिर भी,
हमारी कृतघ्नता तो देखो!
कि उधारी वापस करने का विचार तो दूर... ..
तुम्हारे लिये
कुछ नहीं करते ! ! !

( डॉ टी आर शुक्ल , सागर म प्र )
25 सितंबर 2015

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