Saturday 7 April 2018

187 समग्र क्रान्ति की आवश्यकता

187 समग्र क्रान्ति की आवश्यकता
संसार में अनेक नेतागण जाति भेद और अस्प्रश्यता पर लम्बे भाषण देते देखे जाते हैं । वे कहा करते हैं , नहीं, नहीं , कोई जाति भेदभाव बर्दास्त नहीं होगा। सभी समान हैं। मैं किसी भी जाति के व्यक्ति का छुआ भोजन ग्रहण कर लूंगा ! यदि आप मुझे छना हुआ पानी का ग्लास देंगे तो मैं पीने से नहीं हिचकिचाऊंगा। देखो ! मैं यह पी रहा हॅूं। बस क्या है दर्शक और श्रोता वाहवाही कर उठते हैं, बहुत अच्छा बहुत अच्छा। इस प्रकार के नेताओं को सुधारवादी नेता कहा जाता है; परन्तु वास्तव में उनके भीतरी मन में जातिवाद को बनाए रखने की भावना रहती है। यदि उनमें सही अर्थ में इसे हटाने की भावना होती तो वे घोषणा कर सकते हैं कि ’ इस अस्प्रश्यता का कारण जातिवाद है, जातिवाद के कारण ही छोटे बड़े, ऊंचे और नीचे, छूत और अछूत, एक जाति और दूसरी जाति , ये सब पनपे हैं। इसलिए सबसे पहले हमें इस जातिवाद को हटाना चाहिए’ यदि उनमें सीधे ही इस प्रकार की घोषणा करने की हिम्मत होती तो वे क्रान्तिकारी नेता कहलाते। उनके पास यह साहस नहीं है इसलिए वे इस  सामाजिक बुराई को दूर न कर समाज का अहित कर रहे हैं।
इसी के साथ समाज में डोग्मा ने भी गहरी जड़े जमा रखी हैं। वे लोगों के मन में गहराई से घुसे हुए हैं। इन झूठे विचारों से जनसामान्य मुक्त नहीं हो पाते क्यों कि यह विचार उन के मन में जन्म से ही भर दिए जाते हैं। इसी का प्रतिफल यह है कि मानव समाज अनेक देशों में बंट गया है और प्रत्येक देश विभिन्न धर्मों, और धर्म विभिन्न जातियों और जातियाॅं विभिन्न उपजातियों में विभाजित होती जा रही है। यह कैसी स्थिति है? हमको केवल यही सिखाया जाता है कि समाज को किस प्रकार से विभाजित और उपविभाजित किया जाता है, पर यह कभी नहीं सिखाया जाता कि लोगों  को किस प्रकार एकता के सूत्र में बांधा जा सकता है। यह सभी त्रुटिपूर्ण डोगमेटिक शिक्षा के कारण ही हो रहा है।

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