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आश्चर्य !
‘‘तुम युद्ध जीतने वाले योद्धाओं को शूरवीर नहीं मानते, और न ही बड़ी बड़ी डिग्रियों वाले पढ़े लिखे लोगों को विद्वान पंडित, आखिर क्यों ?’’
‘‘ इतना ही नहीं, मैं तो उनको अच्छा वक्ता भी नहीं मानता जो लच्छे पुच्छेदार भाषा बोलकर प्रभावित करते हैं और, उन्हें दानदाता भी नहीं मानता जो बहुत धन का दान करते हैं।’’
‘‘ अजीब बात है! तो फिर तुम शूरवीर और विद्वान पंडित किसे कहते हो?’’
‘‘ जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है वही शूरवीर है और जो मानवीय गुणों से भरपूर धर्माचरण करते हैं उन्हें मैं पंडित कहता हॅूं।’’
‘‘ अच्छा ! तो वक्ता और दानदाता किसे कहोगे?’’
‘‘ जो दूसरों के हित की बात करे वही मेरी दृष्टि में वक्ता है और, जो दूसरों को सम्मान देता है वही दानदाता है।’’
आश्चर्य !
‘‘तुम युद्ध जीतने वाले योद्धाओं को शूरवीर नहीं मानते, और न ही बड़ी बड़ी डिग्रियों वाले पढ़े लिखे लोगों को विद्वान पंडित, आखिर क्यों ?’’
‘‘ इतना ही नहीं, मैं तो उनको अच्छा वक्ता भी नहीं मानता जो लच्छे पुच्छेदार भाषा बोलकर प्रभावित करते हैं और, उन्हें दानदाता भी नहीं मानता जो बहुत धन का दान करते हैं।’’
‘‘ अजीब बात है! तो फिर तुम शूरवीर और विद्वान पंडित किसे कहते हो?’’
‘‘ जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है वही शूरवीर है और जो मानवीय गुणों से भरपूर धर्माचरण करते हैं उन्हें मैं पंडित कहता हॅूं।’’
‘‘ अच्छा ! तो वक्ता और दानदाता किसे कहोगे?’’
‘‘ जो दूसरों के हित की बात करे वही मेरी दृष्टि में वक्ता है और, जो दूसरों को सम्मान देता है वही दानदाता है।’’
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