Saturday 19 May 2018

194 पतन का कारण, निदान और समाधान

194 पतन का कारण, निदान और समाधान

 मन की विशेषता यह है कि वह उन प्रवृत्तियों की ओर बार बार जाता है जो उसे अच्छी लगती हैं और अच्छी लगने वाली वृत्तियाॅं नीचे की ओर अर्थात् पतन की ओर ले जाने वाली ही होती हैं। चॅूकि मनष्य जीवन पशुजीवन से उन्नत हुआ है अतः मन में पूर्व जीवनों के संस्कार चिपके रहना स्वाभाविक है। उन्नत संस्कारों या वृत्तियों की ओर मन को जाने में कठिनाई का अनुभव होता है अतः वह निम्न वृत्तियों की ओर जाकर आनन्द पाता है। आलस्य, ईर्ष्या  , लोभ ,जुगुप्सा, कामुकता आदि अनेक निम्नोमुखी वृत्तियाॅं मन को घेरे ही रहती हैं। इसी कारण कुछ लोगों में इस प्रकार की आन्तरिक कमजोरियाॅं उनके पतन का कारण बनती हैं। इन वृत्तियों की विशेषता यह होती है कि ये लगातार बढ़ती ही जाती हैं क्योंकि इनसे जुड़ते ही मन को लगता है कि उसे कोई नहीं देखता है या उसे कोई कुछ नहीं कह या कर सकता। जेल जाने वाला चोर प्रारम्भ में वैसा नहीं होता पर धीरे धीरे चोर वृत्ति बढ़ते बढ़ते उसे जेल तक ले जाती है। यदि सजा का भान उसे पहले ही हो जाता तो वह चोर वृत्ति से दूर रहने की ही सोचता। इसी प्रकार प्रारम्भ में नीच विचार छोटा होता है पर जैसे ही मन उसमें रुचि लेने लगता है वह लगातार गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ता जाता है। नेता कभी मन में ये विचार नहीं लाते कि एक दिन उनके कुकर्मो की पोल खुल जाएगी, कोई महिला या पुरुष पहले से यह नहीं सोचता कि विवाहेतर संबंध बनाने पर वे पकड़े जा सकते हैं और सामाजिक अपमान सहना पड़ सकता है, कोई विद्यार्थी नकल करने के लिए चिट ले जाते समय यह नहीं सोचता कि परीक्षा में वह पकड़ा जा सकता है और उसका भविष्य खराब हो सकता है, सात्विक कर्म से जुड़े साधु सन्त भी कहाॅं सोचते हैं कि वे किसी आन्तरिक कमजोरी को दबाए हुए हैं जो अवसर पाकर ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ेगी , आदि आदि अनेक वृत्तियाॅं हैं, जो धीरे धीरे कमजोर विचारों को जन्म देती हैं और थोड़ी सी चूक हो जाने पर पतन का कारण बनती हैं। इसलिए हम सभी को इस मामले को सूक्ष्मता से पहिचानना चाहिए और सतर्क रहकर उनपर विजय पाने के लिये उचित तरीके अपनाना चाहिए। इसलिए, छोटी हों या बड़ी इन राक्षसी कुप्रवृत्तियों के प्रभाव से बचने के लिए एकमात्र उपाय है परमपुरुष का आश्रय लेना। परमपुरुष का आश्रय लेने का तात्पर्य यह नहीं है कि हाथ पर हाथ रखकर उन्हीं के भरोसे बैठ जाना। इसमें, अपनी पूरी सामर्थ्य  से जीवन यापन सम्बन्धी सभी काम करते हुए मन में धारणा रखना होती है कि वह परमपुरुष हमें निकटता से देख रहे हैं और हमारे छोटे बड़े सभी विचार जान रहे हैं। इस प्रकार बार बार उन्हीं को स्मरण करने का आशय है उनका आश्रय लेना । स्मरण रहे , राक्षसी वृत्तियों वाले ‘रावण’ का विनाश ‘राम’ ही कर सकते हैं।

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