Tuesday, 14 August 2018

208 आचरण

  आचरण

भावजड़ता में डूबे धर्मान्ध अनुयायी गण, समाज के तथाकथित उच्च वर्ग और वर्ण के कहे जाने वाले लोगों के शिकार होते रहे हैं। पीले या गेरुए वस्त्रों वाले किसी भी व्यक्ति को वे सदाचारी मानकर दंडवत प्रणाम करते हैं भले ही वे गाॅंजा और हशीस का धूम्रपान करते हों, मास खाते हों , शराब पीते हों, अफीम खाते हों , तामसी भोजन और प्याज, लहसुन की तो बात ही क्या करना वह तो उनके रोचक खाद्य पदार्थ होते हैं। यदि उनसे तर्क करें तो पिटा पिटाया जबाब होता है, ‘‘ हम तो उनकी पोशाक को प्रणाम करते हैं उन्हें नहीं।

किसी के भी आचरण को देखकर यह सरलता से जाना जा सकता है कि वह ईश्वर के दिव्य प्रेम में कितना डूबा है, जो इस दिव्य प्रेम का रसपान कर चुकता है वह दूसरों का शोषण कभी नहीं कर सकता। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के अन्याय, अत्याचार ओर शोषण के बिरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करते हैं। वे जो अनीति के विरुद्ध साहस पूर्वक खड़े नहीं हो सकते उन्हें आचरणवान नहीं कहा जा सकता।

वे, जिन्हें समाज ने दूसरों को रास्ता दिखाने का उत्तरदायित्व सौंपा है उनका चरित्र तो सर्वोत्तम होना चाहिए। वे और उनके अनुयायी नियमित रूप से श्रेय और सर्वांगीण विकास का रास्ता चुनते हैं।  ‘‘ आचरणात् पाठयति यः सः आचार्यः ’’ अर्थात् वे, जो अपने व्यवस्थित व्यवहार और आचरण से शिक्षा देते हैं उन्हें ही आचार्य कहते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि आचार्य की छोटी सी कमजोरी (या आचरण का दोष ) जन सामान्य का बड़ा नुकसान कर सकती है या उन्हें गलत रास्ते की ओर ले जा सकती है। जैसे पिता अपने बच्चों को अपने अच्छे आचरण से शिक्षित करता है उसी प्रकार आचार्य को सदा अपनी वार्ता और क्रियाकलाप से अपने को प्रमाणित करना चाहिए। आचरण से  आदर्श झलकना चाहिए, इसमें किसी की शिक्षा का स्तर या सामाजिक स्तर या आर्थिक स्तर का कोई महत्व नहीं। इसीलिए कहा गया है कि धर्म और कुछ नहीं आपके आचरण का एकीकरण है- आप कैसे खाते हैं, कैसे बोलते हैं, कैसे साधना करते हैं ... । यदि आपका आचरण ठीक है तो आपका धर्म आपके साथ है और नहीं तो धर्म भी आपसे दूर रहता है । जब किसी का धर्म साथ छोड़ देता है तो सर्वनाश निकट आ जाता है अर्थात् उसका भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक पतन हो जाता है। आचरण, धर्म का प्रधान घटक माना जाता है। अच्छे आचरण वाले सदाचारी व्यक्ति को निश्चित ही परमात्मा को पाना सरल हो जाता है।

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