ऋक
ऋक+ क्विप= ऋक । वैदिक क्रिया "ऋक" का अर्थ है ‘ महिमामंडन करना ’ (गीत से या सामान्य भाषा में) ‘‘ऋक’’ का संस्कृत में अर्थ है ‘स्तवन’ करना। प्राचीन समय में साधु लोग प्रकृति के विभिन्न रूपों को किसी न किसी देवता का खेल मानते थे अतः उन्होंने उनके लिए स्तवन या भजन करना प्रारंभ किया। जब उन्होंने उषा, इन्द्र,पर्जन्य,मातरिष्वा, वरुण आदि के भजन गाए तब उन्हें ‘साम’ कहा गया। उस समय तक लिपि का अनुसंधान नहीं हुआ था इसलिए शिष्य अपने गुरु से मौखिक शिक्षा को ग्रहण किया करते थे। ये सत्य के वचन थे, ज्ञान के वचन थे अतः उन्हें जानकर तत्कालीन असंस्कृत लोग संस्कृति के प्रकाश की ओर बढ़ने लगे इसलिए उन्हें ‘वेद’ या ‘ज्ञान’ कहा गया।
वैदिक क्रिया ‘विद’ का अर्थ है ‘‘जानना’’ इस में ‘अल’ प्रत्यय जोड़ने से ‘वेद’ शब्द बनता है जिसका अर्थ है ‘‘ज्ञान’’। शब्द ‘वेद’ का लिखित रूप देखकर कुछ स्वरविज्ञानियों का विचार है कि इसे ‘घञ’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है; तो भी, यही सही है कि उसे ‘अल’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है और वह पुल्लिंग है। चूँकि लिपि के अभाव में उसे गुरु से मौखिक सुनकर याद रखा जाता था इसलिए उसका दूसरा नाम ‘श्रुति’ है। श्रु+ क्तिन =श्रुति। क्रिया ‘श्रु’ का अर्थ है, सुनना। इसलिए श्रुति का एक अर्थ है ‘कान’ और इसीलिए कहा गया है कि जो कान से सुनकर याद रखा गया है वह है ‘वेद’ । वेदों के सबसे पुराने भाग के प्रत्येक श्लोक को ‘ऋक’ कहा गया है, जब अनेक श्लोकों को एक साथ रखकर किसी विचार को प्रदर्शित किया जाता है तो उसे कहा गया है ‘सूक्त’ और अनेक सूक्तों को संग्रहित कर बनाया गया है ‘मंडल’ ।
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