Wednesday 10 October 2018

217 सतयुग

217 सतयुग

पौराणिक कथाओं में समय का बड़ा मापक  ‘‘युग’’ के नाम से कहा  गया है। जिस समय में किसी महापुरुष ने अपने ज्ञान और पराक्रम से समाज को कुछ नया दिया वह काल उसी के नाम पर याद रखा जाने लगा। अनेक कथाओं में समय के प्रभाव से होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं को ध्यान में रखकर प्रायः चार कालों का नाम दिया जाता है; सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।  वेदों के अन्तिम भाग उपनिषदों में इस काल विशेष को समझाने के लिए  ऋषियोें ने एक दृष्टान्त की सहायता से इस प्रकार स्पष्ट किया है।
"रोहित के पिता पढ़े लिखे नहीं थे परन्तु वे पढ़ने का महत्व जानते थे इसलिए उन्होंने अपने बेटे रोहित को उच्च ज्ञान पाने के लिए प्रतिष्ठित गुरुकुल में भेज दिया। समयानुसार ‘बालक रोहित’ वेदान्त की विशेषज्ञता प्राप्त कर डिग्रीधारी ‘नवयुवक रोहित’ के रूप में अपने घर वापस आया। रोहित के पिता अपने पुत्र के उच्च ज्ञान की डिग्री लेकर आने से प्रसन्न थे कि अब उनके परिवार का नाम भी ज्ञानी लोगों के साथ लिया जाएगा और रोहित कुछ अच्छा काम करेगा। समय बीतने लगा, रोहित कुछ काम न करता। काम के संबंध में पूछे जाने पर यही कहता कि सब कुछ भगवान की इच्छा से ही होता है, यह सभी प्रपंच उन्हीं का रचा हुआ है, वही सब कुछ करते हैं, हमें कुछ करने की आवश्यकता ही क्या है, एकमात्र उन्हीं का चिन्तन और आराधन करना चाहिए, मैं वही करता हॅूं।
समय यों ही बीतता जाता और रोहित के पिता की चिन्ता बढ़ती जाती। अन्ततः एक दिन वे बोले, देखो रोहित ! मैंने तुम्हारे जैसे वेदान्त को तो पढ़ा लिखा नहीं है, पर इतना जानता हॅूं कि मनुष्य को सक्रिय रहना चाहिए निष्क्रिय नहीं;
‘‘कलौ शयानो भवति, संदिहानस्तु द्वापरः। उत्तिष्ठति त्रेता भवति, कृतौ सम्पाद्यते चरण।’’
अर्थात् , जो सोया है समझ लो वह ‘कलियुग’ में है, जो जाग गया वह ‘द्वापरयुग’  में आ गया, जो उठकर खड़ा हो गया वह ‘त्रेतायुग’ में पहुँच  गया और जिसने चलना प्रारंभ कर दिया वह समझो ‘सतयुग’ में है। इसलिए मैं कहता हॅूं , गतिशील बनो, स्थिरता हानिकारक है। चरैवेति, चरैवेति। चलते रहो , चलते रहो, रुको नहीं।"
कठिन तत्वज्ञान की विषयवस्तु को वेदों में इसी प्रकार के दृष्टान्तों द्वारा समझाया गया है। परन्तु दुख यह है कि सभी लोग कहानियाॅ तो कहते सुनते पाए जाते हैं परन्तु उनके पीछे दी गई शिक्षा पर चिन्तन नहीं करते।   

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