Tuesday 2 October 2018

215 ‘नामी’ और ‘नाम’

215 ‘नामी’ और  ‘नाम’

दृष्टान्त -1 एक सज्जन ने तोता पालकर उसे ‘राम राम’ कहना सिखा दिया। वह सभी आगन्तुकों से राम राम कहता। सभी लोग यह सुनकर तोते की तारीफ करते और उन सज्जन की भी। एक दिन मौका पाकर बिल्ली, तोते के पिंजरे पर झपटी। तोता, राम राम कहना भूल टें टें टें करने लगा।

दृष्टान्त -2 श्रीराम ने जब सुना कि हनुमान पत्थरों पर ‘राम’, ‘राम’ लिखकर पानी में डालते हैं तो वे तैरने लगते हैं डूबते नहीं हैं, अतः इनसे पुल बनाकर वानर सेना को समुद्र पार कराने की योजना है। तब श्रीराम ने सोचा, यदि ऐसा ही है तो मैं क्यों न पत्थर छूकर पानी में तैरा दॅू जिससे समय बचेगा और पुल जल्दी तैयार हो जाएगा। ज्योंही राम ने पत्थर उठा कर पानी में डाले वे डूबते गए, नहीं तैरे।

पहले दृष्टान्त में तोता, राम राम कहना सीख तो गया पर उसका वास्तव में अर्थ क्या है और उसका कितना महत्व है यह नहीं जान पाया। इसलिए जब अपने शत्रु को सामने देखा तो डर गया और सबकुछ भूलकर अपनी भाषा में चिल्लाने लगा। दूसरे दृष्टान्त में हनुमान ने अपने बीजमंत्र ‘राम’ के महत्व को आत्मसात कर पत्थर तैराया जिससे पत्थर तैरता रहा, परन्तु स्वयं राम ने उसे केवल अपना नाम होने के कारण साधारण माना जिससे पत्थर डूब गया।
इन उदाहरणों में क्रमशः ‘बीजमंत्र’ का और ‘नामी’ से भी ‘नाम’ का अधिक महत्व होना दर्शाया गया है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ‘बीजमंत्र अथवा इष्टमंत्र’ का महत्व बताने के लिए एक और दृष्टान्त प्रचलित है।
नारदजी ने हनुमानजी से कहा, ‘‘मित्र ! श्रीनाथ अर्थात् नारायण और जानकीनाथ अर्थात् राम, दोनों एक ही सत्ता का नाम है कि नहीं ?’’ हनुमानजी बोले , ‘‘ इसमें क्या सन्देह, दोनों एक ही हैं।’’
‘‘तो फिर आप हमेशा राम राम राम ही कहते रहते हो, नारायण का नाम आपके मुॅंह से कभी नहीं सुना?’’ नारद जी ने पूछा।
हनुमानजी बोले, ‘‘ ठीक है भैया, पर मेेरे लिए तो कमललोचन श्रीराम ही सब कुछ हैं, मैं किसी नारायण को नहीं जानता।’’

‘‘राम’’ अन्य शब्दों जैसा साधारण शब्द है, परन्तु जब वह शक्ति सम्पन्न कर दिया जाता है तो मन्त्र बन जाता है। और जब, जिस किसी व्यक्ति को ‘‘कौल गुरु’’ के द्वारा बीजमंत्र के रूप में इसे दिया जाता है तो उसे यही सब कुछ हो जाता है। बीजमंत्र प्राप्त व्यक्ति के लिए उसके बीजमंत्र के अलावा अन्य सभी मंत्र केवल शब्द मात्र ही होते हैं। बीजमंत्र का अर्थ समझते हुए उसकी आवृत्तियों के साथ अपनी आस्तित्विक आवृत्ति का अनुनाद कर लेने वाला व्यक्ति उसी के सहारे अपने छोटे बड़े,  सरल कठिन, संभव असंभव सभी कार्य सहज ही कर डालता है।

जब, न तो मंत्र का सही सही अर्थ समझा और न ही उसकी आवृत्तियों से अपने मन को अनुनादित करने की विधि का पालन किया परन्तु , दूसरों से देख सुनकर जो लोग तोते की तरह रटन्त विद्या का अनुसरण करने लगते हैं वे सदा भयग्रस्त ही रहते हैं; कभी अपने लक्ष्य को भी नहीं पाते। परन्तु हनुमान की तरह जिन्होंने अपने बीजमंत्र का रसास्वादन करते हुए उसे अपनी मूल आवृत्ति के साथ अनुनादित कर लिया होता है उसे किसी से कोई भय नहीं होता और उनका लक्ष्य भी उनकी मुट्ठी में ही होता है।
यहाॅं स्मरणीय है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीराम और रावण दोनों का बीजमंत्र ‘‘शिव’’ तथा भगवान शिव और हनुमान का बीजमंत्र ‘‘राम’’ था। इस पर गम्भीरता से चिन्तन कीजिए।

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