Sunday, 10 November 2019

276 स्वस्थ और अस्वस्थ नींद

स्वस्थ और अस्वस्थ नींद

अनेक लोगों को सही नींद के बारे में उचित ज्ञान नहीं होता, वे देर तक जागकर गप्पें करते फिल्में देखते, वीडिओ गेम्स खेलते और देर से सोकर देर से ही जागते है। वास्तव में नींद हमारे शरीर और मन पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव डालते हुए ताजा बनाये रखने में उपयोगी है इसलिये कब सोना है कब जागना है इसका उचित ध्यान रखना चाहिये। नींद लेना समय की बरबादी नहीं है वरन शरीर को पुनः मौलिक  रूप में लाने का साधन है। इसलिये स्वस्थ रहने के लिये देरतक जागना और दिन में सोने की आदत त्यागना चाहिये। सूर्य का प्रकाश मानव शरीर को निर्माणात्मक और चंद्रमा का प्रकाश थकान का अनुभव कराता है, अतः रात में सोने पर ही शरीर के कोशों, नाड़ियों और ग्रंथियों को यथास्थिति पाने और पुनः ऊर्जावान हो पाने के लिये अनुकूलता मिलती है। इस प्रकार के निद्रा चक्र को बनाये रखने पर प्राकृतिक और जीववैज्ञानिक प्रभाव भी अनुकूल  रहते हैं। यही कारण है कि प्रातः काल सोकर उठने पर ताजगी का अनुभव होता है। दिन का प्रकाश मानव शरीर पर क्रियात्मक और रातें जड़ात्मक प्रभाव डालती हैं, अतः रातें मन और शरीर को अक्रियता और नींद की ओर ले जाती हैं। संध्या काल अर्थात, सूर्योदय, सूर्यास्त , दोपहर और अर्धरात्रि में चित्त पर सात्विक पारदर्शी प्रभाव पड़ता है इसलिये इन समयों में ईश्वर चिंतन करने से लाभ मिलता है। रात में सोने और दिन में काम करने का चक्र नियमित रहने पर शरीर स्वस्थ रहता है और कोई बीमारी होती भी है तो उसे दूर करने में सहायता मिलती है जैसे, एसीडिटी, इनडाइजेशन, हृदय रोग, सफेद कोढ़ और केंसर आदि। इसलिये दिन में सोने और देर तक रात में जागने से बचना चाहिये। लंबे जीवन  के लिये उचित निद्राचक्र का पालन करना अत्यावश्यक है इस संबंध में कुछ उपाय इस प्रकार हैंः-
1/ ज्यों ही नींद का आभास होने लगे तत्काल सो जाना चाहिये, परंतु यह नहीं कि नींद न आ रही हो तब भी सोने का प्रयास करना । 2/ वास्तव में सोने और जागने का निर्धारित समय बना लेना चाहिये । 3/ विस्तर से ब्रह्म मुहूर्त में ही जाग जाना चाहिये।
नींद और स्मृति में परस्पर गहरा संबंध है। कहा गया है ‘अभावप्रत्ययालम्बनी वृत्तिः निद्रा’ अर्थात् नींद वह वृत्ति है जो रिक्तता पर आश्रित होती है, या रिक्तता लाती है। जब कोई गहराई से सोता है तो उसे कुछ भी याद नहीं रहता, यह भी नहीं कि किस क्षण उसे नींद आ गयी। अतः सोने और जागने के समय के बीच स्मृति भंग थी । दिन में सोने से स्मृति की रिक्तता और बढ़ जायेगी और बौद्धिक तीक्ष्णता घटती जायेगी, अतः दिन में सोना त्यागना चाहिये। यह देखा गया है कि यदि सबेरे से 11 बजे तक किसी पाठ को याद किया जाय और थोड़ी देर तक अन्य काम में लग जायें तो याद किया गया पाठ याद बना रहता है परंतु यदि काम में न लग कर सो जायें तो जागने पर बहुत कुछ भूल जाते हैं। स्पष्ट है कि सोने से पहले जो घटनायें सीधे मन पर प्रभाव डाल चुकी हैं वे सोने के बाद जागने पर स्मृति से दूर चली जाती हैं, परंतु यदि जागते रहते हैं तो वे स्मृति में बनी रहती हैं। 24 घंटे में एक बार सोना उचित है परंतु अधिक बार सोना स्मृति को कम कर देता है, जो अधिक सोते हैं वे मूक हो जाते हैं उनकी स्मरण शक्ति कम हो जाती है। 
काम करने के बाद शरीर को आराम देने के लिये समय पर सोना और जागना चाहिये जिससे पुनः स्फूर्ति और ऊर्जा पाकर काम में जुटा जा सके। कुछ लोग कहते हैं कि अधिक सोने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, यह गलत है, अधिक सोने वाले कभी जीवन में उत्कृष्ट कार्य नहीं कर पाते क्योंकि उनका अधिकाॅंश जीवन सोने में ही निकल जाता है और उनकी प्रगति अवरुद्ध हो जाती है। कुछ छात्र दिन में सोते और रात में जाग कर पढ़ते हैं यह स्वास्थ्य के लिये उचित नहीं है, उन्हें अपने सोने और जागने का समय निर्धारित कर लेना चाहिये।
अधिक निद्रा बहुत बड़ा दुर्गुण है। निद्रा वह अवस्था है जिसके समाप्त होने पर शून्यता का अनुभव होता है। अर्थात् जागने के तुरन्त बाद लोग नहीं जान पाते कि वे कहाॅं थे, सोने के पहले वे क्या कर रहे थे, समय का आभास नहीं रहता, दिन और रात का भी भान नहीं रहता। यदि कोई बहुत दिनों तक सोता ही रहे तो अन्त में उसका मानसिक विकास लम्बे समय तक अवरुद्ध हो सकता है। इस स्थिति के अधिक बने रहने पर उनकी ग्राह्य और बोध क्षमता घटती जाती है और अन्त में मानसिक शक्ति कमजोर पड़ जाती है, वे डरपोंक हो जाते हैं और अनेक समस्याओं से घिर जाते हैं। उनमें शारीरिक शक्ति भले हो पर साहस घट जाता है। आधुनिक भौतिकता से भरे युग में कहा जाता है कि कम से कम आठ घंटे नींद आवश्यक है पर यह ठीक नहीं है, गहरी नींद के चार घंटे भी पर्याप्त होते हैं । यदि गहरी नींद नहीं आती है तो शरीर अपने आपको ठीक ढंग से पुनः व्यवस्थापित नहीं कर पाता। इसलिए सही नींद के लिये समय का नहीं नींद की गहराई का अधिक महत्व होता है। सही नींद का अर्थ है स्वप्नहीन गहरी निद्रा। गहरी निद्रा में मन पूर्णतः विचारहीन होता है और उसे समय की गतिशीलता का बोध नहीं होता अतः इस अवस्था में कुछ घंटे की नींद ही शरीर और मन को आराम देने के लिए पर्याप्त होती है। 

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