Thursday 14 November 2019

278 बोझ, मोह का !

बोझ, मोह का !
बाल्यावस्था से ही,  जंगल से सूखी लकड़ियों का गट्ठा सिर पर लाद कर लाना और शहर में बेचना यही दिनचर्या थी बेनीबाई की । इस प्रकार जीविका चलाते चलाते बृद्धावस्था भी आ पहॅुंची। एक दिन अनेक प्रयास करने पर भी जब गट्ठा सिर पर रखते न बना तो हताश बेनी बाई बोली, 
‘‘ हे भगवान ! अब तो भेज दो मौत को ? बहुत हो चुका। अरे! बहरे हो गए हो क्या ? कब सुनोगे ?‘‘
कहने की देर ही हुई थी कि यमराज सामने आकर बोले,
‘‘ चलो, बेनीबाई ! मैं आ गया ‘‘
‘‘ लेकिन कहाॅं?‘‘
‘‘ अरे ! तुम्हीं ने तो भगवान से कहा कि मौत को भेज दो, मैं हूॅं यमराज, उनकी आज्ञा से मैं  तुम्हें ले जाने के लिए आया हॅूं, चलो.. ‘‘
‘‘ ये तो बहुत अच्छा किया भैया, चलो, जरा अपना एक हाथ इस गट्ठे पर लगा कर मेरे सिर पर रखवा देा । ‘‘ 

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