Tuesday, 5 November 2019

275 हमारी अज्ञात शक्ति

हमारी अज्ञात शक्ति
पशुओं और मनुष्यों के बीच में विभेदन का सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है स्वतंत्र इच्छा का होना। परमपुरुष ने मनुष्यों को सोचने विचारने और निर्णय करने की स्वतंत्रता दी है जो पशुओं में नहीं है। मनुष्य के रूप में वही एक परमसत्ता पूर्ण रूप में परावर्तित होती है अतः वह स्वतंत्र कार्य कर अच्छे और बुरे में विभेदन कर सकता है। यह विशेष गुण अधिकांश  लोगों को ज्ञात ही नहीं होता जिससे  कि वह अपने जीवन को नियंत्रित कर संभावित प्राकृतिक प्रकोपों और  समस्याओं से जूझ सकता है। परंतु देखा यह गया है कि लगभग 99 प्रतिशत लोग अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करते हैं और नकारात्मक संस्कारों को आमंत्रित करते हैं। इस तरह स्वतंत्र इच्छा दुधारू तलवार की भाॅंति होती है जिसे आनन्द की उचाईयों और नर्क की गहराईयों दोनों  की ओर जाने में प्रयुक्त किया जा सकता है।
यदि कोई दूसरों को सताने के लिये ही यह या वह करने की सोचता है तो उसे सुअर या कुत्ते का शरीर मिल जाता है, इसलिये जो अच्छा सोचता है उसे अच्छा शरीर  अगले जन्म में मिलता है। यदि कोई हमेशा  स्वादिष्ट भोजन खाने के बारे में सोचता है तो परमपुरुष उसे भेड़िया का शरीर  दे देंगे, कोई महिला यदि आभूषणों के श्रंगार से अपने को सुन्दर दिखाने की सोच में ही डूबी रहती है तो परमपुरुष उसे मोर का शरीर दे देंगे और बहेलिया का तीर उसे मार डालेगा। यदि कोई राजा बनना चाहता है तो अगले जन्म में वह किसी गरीब के घर पैदा होगा और उसका नाम राजा रख दिया जायेगा। इसलिये  स्वतंत्र इच्छा से, सोचते समय बड़े सावधान रहने की आवश्यकता  होती है। मनुष्य अपनी इच्छा की शक्ति  को पहचानते नहीं हैं इसलिये वे नाम यश  और भौतिक संम्पत्ति के पाने के लिए  जी तोड़ पराक्रम में लगे रहते हैं और अंत में और अधिक बंधन में पड़ जाते हैं। वे पत्थर पेड़ या अन्य प्राणियों के शरीर भी अपने चिंतन के अनुसार पा जाते हैं। लोभी व्यक्ति बिल्ली का शरीर पा जाते हैं , वह उसकी मनोवृत्ति के अनुकूल होता है क्योंकि बिल्ली डंडे की मार खाकर थोड़ी देर में ही भूल कर वापस वहीं आकर दूध पीने की कोशिष में जुट जाती है। इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें अपनी स्वतंत्र इच्छा का उपयोग परमपुरुष की चाह में ही करना चाहिये जो त्रिविध तापों को दूर करने का सामर्थ्य  रखते हैं। अर्थ केवल अस्थायी सुख देता है परंतु परमार्थ स्थायी इसलिये हमें परमात्मा कर ही चिंतन करना चाहिये क्योंकि परमार्थ के दाता वही हैं।। मानलो किसी को परमार्थ के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं है और वह अपनी स्वतंत्र इच्छा के बारे में भी कुछ नहीं जानता तब वह केवल परमपुरुष की इच्छा से ही आगे बढ़कर उच्च स्थिति को पा सकता है इसलिये बुद्धिमान को चाहिये कि सबकुछ भूलकर परमपुरुष को ही अपना लक्ष्य मानकर चिंतन करे कि उनकी जो इच्छा हो उसके इसी जीवन में पूरी हो जाये।

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