Thursday, 31 October 2019

274 चेतना

चेतना
मैट्रिक पास प्रायमरी के शिक्षक मेहताजी को, सच्चे दार्शनिक ज्ञान की पिपासा ने प्राइवेट बीए और एमए करने के बाद पीएचडी करने का मनोबल दिया और वे विश्वविद्यालय के एक धुरंधर प्रोफेसर के मार्गदर्शन में शोधकार्य करने की इच्छा से उनसे मिलने पहुॅंचे। उनका निवेदन सुनकर प्रोफेसर बोले,

‘‘ आप मेरे साथ ही शोधकार्य करने के लिए पंजीकरण क्यों कराना चाहते हैं?’’
‘‘ सर! आपका नाम उच्च स्तर के दार्शनिकों में माना जाता है, आपके लिखे अनेक ग्रंथ प्रकाश में हैं और आपके अनेक शिष्य पीएचडी प्राप्त कर आपका ही कीर्तिगान करते हैं।’’
‘‘ अच्छा! तो किस विषयवस्तु पर शोध करने की इच्छा है आपकी?’’
‘‘सर! अनेक ग्रंथों से सन्तों और मंदिरों से तीर्थों तक की दौड़ ने मुझे पराज्ञान अर्थात् आत्मा और परमात्मा के संबंध में केवल सैद्धान्तिक ज्ञान दिया है। मेरा विश्वास है कि आपने अपनी लम्बी साधना के बल पर इस संबंध में व्यावहारिक ज्ञान पाकर अवश्य ही इनकी अनुभूति कर ली होगी, इसलिए मैं आपका शिष्यत्व ग्रहण करने का इच्छुक हॅूं।’’
‘‘ देखिए मेहताजी ! आत्मा और परमात्मा से संबंधित ज्ञान की सैद्धान्तिक व्याख्या करने पर ही विश्वविद्यालय मुझे अच्छा वेतन देता है इसलिए मैंने भी अपने को यहीं तक सीमित कर रखा है।’’
‘‘ सर! मैं आपकी स्पष्टवादिता को प्रणाम करता हॅूं, परन्तु अन्य अनुभवों की तरह आपसे मिलकर भी मैं निराश ही हुआ हॅूं’’ मेहताजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा और नमस्कार कर वापस आ गए।
धाराप्रवाह व्याख्यानों के लिए विख्यात प्रोफेसर उस दिन एमए की कक्षा में अपना व्याख्यान बार बार भूले।
डा टी आर शुक्ल , सागर।

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