Sunday, 30 May 2021

353 आत्मोन्नति के कारक

यह संसार बहुत अच्छा है परन्तु लोगों की स्वार्थमय एकांगी सोच ने उसे विकृत कर दिया है। यह विकृतियां इस जगत के सभी प्राणियों को एक दूसरे को नष्ट कर अपना पृथक साम्राज्य स्थापित करने के सभी कार्य कर रहीं हैं। हमारे पूर्वजों ने इस संसार को अपनी अपनी आत्मोन्नति के सहायक साधन के रूप में माना है। विज्ञान ने अनेक सुख सुविधाओं के साधन प्रदान किए हैं पर साथ ही जीवन को एक क्षण में समाप्त करने के उपक्रम भी जोड़ रखे हैं। इस परिस्थिति में विज्ञान से सामाजिक विकृतियों को दूर करने के उपायों की आषा करना व्यर्थ है फिर आत्मोन्नति तो उसके लिए निरर्थक सिद्धान्त के अलावा कुछ नहीं।

अब प्रश्न उठता है कि इन दूषित और विपरीत परिस्थितियों में वह कौन से कार्य हैं जिनके थोड़े से परिमाण में करने पर भी कोई व्यक्ति आत्मोन्नति के मार्ग पर निष्कंटक बढ़ सकता है। इस संबंध में नीतिशास्त्र ये तीन काम करने का सुझाव देता है-

1/ उस व्यक्ति को चाहिए कि ऐसा प्रयास करे कि उसके कारण किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक कष्ट न हो अर्थात् उसे संताप न हो।

2/ उस व्यक्ति को चाहिए कि ऐसा प्रयास करे कि उसे दुष्ट व्यक्तियों के साथ न रहना पड़े या उनके पास किसी काम से न जाना पड़े।

3/ उस व्यक्ति को चाहिए कि ऐसा प्रयास करे कि उसके किसी भी कार्य से उन लोगों के मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न न हो जो सत्य के अनुसंधान में अपने आप को दिन रात लगाए हुए हैं।

इस प्रकार इन तीन कार्यो को थोड़ी मात्रा में भी किया जा सके तो वह बहुत माना जाता है।


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