Wednesday, 22 October 2014

1.0         भूतों से भक्तों की ओर        


1.1 बाल्यकाल का आकर्षण: उस समय मैं छठवीं कक्षा का छात्र था । मैं अपनें सहपाठियों के साथ गाॅव के नाले पर बन रहे बाॅध को देखने जाया करता था । बाॅध का चैकीदार ‘नन्हेंलाल’ हमारे घर की एक कोठरी में किराये से रहता था । वह हमें घुमाते हुए बाॅध के स्थान स्थान पर घटित हुए कुछ न कुछ मनोरंजक किस्से अवश्य  सुनाया करता था । एक दिन उसने  बताया कि किस प्रकार उसने सात आठ फुट लंबे साॅप के मुंह  को हाथ से पकड़कर उसका जहरीला दाॅत तोड़ सब मजदूरों को दिखलाते हुए छोड़ दिया। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए नन्हें ने वह टूटा हुआ दाॅत भी दिखाया और उसकी बाम्वी भी,जहाॅ साॅप को छोड़ा गया था । हमारे एक साथी ने पूछा ’नन्हें’ तुम्हें साॅप से डर नहीं लगता? नन्हें ने बड़ी सहजता से कहा ’नहीं भैया’ हम तो रोज इनसे खेलते रहते हैं। मैंने पूछा, क्या वह तुम्हें काटता नहीं? वह बोला, काटता तो है परंतु मंत्र के कारण जहर का प्रभाव हम पर नहीं होता है। तो क्या वह मंत्र हमें सिखा सकते हो? नहीं, अभी तुम छोटे हो, नन्हें बोला। 

हम लोग चकित होते हुए लौटे परंतु रास्ते भर नन्हें की विचित्रता पर ही सोचते रहे। अगले दिन बैजनाथ मिला। उसने बताया कि उसे तो रात भर साॅपों के सपनें आते रहे। मैने कहा मुझे तो नींद ही नहीं आई।स्कूल में हम लोग नन्हें की ही बातें करते रहे। हमारी बातों को झूठ समझकर ऋषभ ने हेडमास्टर से हमारी बातों को विस्तार से कह सुनाया कुछ इस तरह कि हमें डाॅट पड़े। परंतु हेडमास्टर ने भी मंत्र के प्रभाव को मान्यता दी और हमें समझाया कि मंत्र यदि सिद्ध हो तो वह  सचमुच प्रभाव डालता है। ’नन्हेंलाल ’ के प्रर्दशन  और हेडमास्टर की स्वीकारोक्ति ने हमें न केवल रोमाॅचित किया वरन् प्रोत्साहित भी किया। अब हम इस तलाश  में लग गये कि कैसे मंत्र सीखा जाये। 

बैजनाथ मुझ से एक कक्षा आगे पढ़ता था। एक दिन वह स्कूल नहीं गया और नन्हेंलाल के पास बैठकर मंत्र सीखने के लिये क्या उपाय करना चाहिये इसके संबंध में पूछता रहा। नन्हेंलाल ने बताया कि यह बड़ा ही कठिन काम है, नदी के ठंडे पानी में गर्दन तक डूबे हुए दीवाली अथवा दशहरा की रात में 12 बजे के बाद गुरु के साथ जाकर सिद्ध करना पड़ता है। गुरु किनारे पर बैठकर पानी में डूबे हुए चेले के एक एक बार मंत्रोच्चार करने के बाद शुद्ध  घी से अग्नि में होम करता जाता है, इसप्रकार 108 बार मंत्रोच्चार और आहुतियाॅ पूरी होने पर पानी से बाहर आकर गुरु को प्रणाम कर नारियल और सफेद वस्त्र देते हुए मंत्र की सक्रियता बनाये रखने के लिये आवश्यक  निर्देश  प्राप्त करता है। मुझसे बैजनाथ आगे कुछ बोलता कि बड़े भैया  जो कि हमसे 4 कक्षाएं आगे पढ़ते थे, आ गये और पूछने लगे कि क्या मंत्र जंत्र की बातें करते हो, ये सब मूर्ख बनाने की बातें हैं, तुम लोग इन बातों में क्यों उलझते हो, जाओ पढ़ने लिखने में मन लगाओ। मैं तो तत्काल भागा  लेकिन बैजनाथ उनसे बड़ी देर तक बातें करता रहा। 

कुछ दिन बाद मैंने देखा कि बड़े भैया  और बैजनाथ नन्हेंलाल की कोठरी में बैठे मंत्र सीखने के संबंध में पूछ रहे थे। नन्हेंलाल अंगीठी पर रोटी सेंकते हुए उन्हें सब बताये जा रहा था। बड़े भैया  और बैजनाथ इतने तल्लीन हो गये थे कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि मैं कब उनके पीछे जा बैठा। उन्हें पता ही नहीं चलता यदि नन्हेंलाल ने मुझे दिखाते हुए यह न कहा होता कि इन्हें सिखा सकते हैं तुम्हें नहीं, परंतु इनकी उम्र कम है। बड़े भैया  ने पूछा कि यह उम्र में छोटा है, इससे इसे नहीं सिखा सकते, मैं उम्र में बड़ा हूॅ तो, मुझे नहीं सिखा सकते आखिर आप कहना क्या चाहते हैं? नन्हेंलाल बोला भैया  जी बात साधना और लगन की है । छोटे भैया  में लगन आप लोगों से अधिक है इसीलिये कहा है। बड़े भैया  ने कहा यदि हम पूरी  लगन से साधना करें तब तो सिखाओगे? नन्हें बोला अच्छा, बिना लिखे केवल सुनकर दो दिन में मंत्र याद कर सकते हो तो सिखा सकते हैं। दोंनों सहमत हुए। उसी दिन से अभ्यास प्रारंभ हुआ, सबसे पहले रोगों या कोई भी  बीमारी को दूर करने का मंत्र सीखना प्रारंभ किया गया। रोज शाम  को नन्हें के साथ साथ हम लोग मंत्र दुहराते दुहराते दो दिन में सीखकर उसे बिना गलती किये बोलने लगे। इसके बाद ओले बरसनें पर उन्हें पानी के रूप में बदलने, किसी को जान से मारने, साॅप या बिच्छू के काटने पर जहर उतारने आदि के मंत्र सीखे। अब प्रतीक्षा थी दशहरे के आने की।

 हम अपनी अपनी पढ़ाई में लग गये। समय समय पर नन्हें से अपनी स्मृति को ताजा बनाये रखने के लिये मिलते रहते थे। नन्हेलाल भी अनेक जड़ी बूटियों को एकत्रित करता रहता था, कहता था कि इन्हें दशहरे के दिन जाग्रत करना है। मुझे डर था कि कहीं ये लोग मुझे छोटा मानकर दशहरे के दिन मुझे बिना बताये ही मंत्र सिद्ध करने न चले जायें इसलिये मैं प्रायः नन्हें से अपने बारे में बार बार आश्वाशन  लेता रहता था। खैर, प्रतीक्षा समाप्त हुई। दशहरा के दो दिन पहले से ही हम लोग अपनी परीक्षा की तैयारी में लग गये थे जबकि हमारे अन्य साथी काली उत्सव के नाटकों को देखने में व्यस्त रहते थे। दशहरे के दिन हम तीनों को शुद्ध  घी, नारियल, और सफेद तौलिया लेकर शाम को 8 बजे से ही उपस्थित रहने के लिये नन्हें ने निर्देषित कर दिया था। हमें रात्रि जागरण करना था और निर्देषित समय पर घर से 2 किलोमीटर दूर नाले के एक गहरे कुंड में जाकर गर्दन तक डूबे हुए अपना अपना मंत्र सिद्ध करना था। 

प्रारंभिक एक दो घंटे तक तो अभ्यास ही चलता रहा फिर नन्हें ने बैजनाथ से कहा कि जाओ आॅगन में लगे नदनबन के पेड़ पर टॅंगी पोटली निकालकर लाओ । बैजनाथ घबराया । बात यह थी कि नन्हें की कोठरी से आॅगन में जाने के लिए बाहर निकलकर चबूतरे पर से हेाकर जाना था जो कि एकान्त सा था, रात भी अंधेरी थी इसलिए वह डर रहा था। उस ने कहा कि अकेले नहीं जा सकते, क्योंकि अंधेरा है। नन्हें ने कहा कि बात कुछ और है? उसने कहा, हां मुझे लगता है कि पोटली में सांप होंगे। नन्हे नें कहा अच्छा बड़े भैया के साथ में जाओ। वे दोनों डरते डरते गये और थोड़ी देर में वापस आ गये और बोले वहां पर कोई पोटली नहीं है। अब यह काम मुझे करने को दिया गया। मैं आॅगन में खेलता रहता था अतः किस डाल पर वह टंगी थी मुझे मालूम था, पर वह कुछ उंचाई पर थी फिर भी मैने मना नहीं किया। मैंने बाहर निकलकर दहलान की सांकल खोली और आंगन में जाकर देखा तो पोटली उस डाल पर नहीं थी। अब मैं परेशान हुआ परंतु बिचार कर रहा था कि तुलसीघर पर चढ़ कर देखूं या नहीं, अचानक नानी ने आवाज दी, कौन है? मैंने कहा कि मुझे नन्हें की पोटली ले जाने के लिये उसने भेजा है पर जहां का उसने बताया है वहाॅ नहीं है? नानी बोली,उसने ही बिही के पेड़ पर टाॅग दी थी, वहीं देखो। मैंने बिही के पेड़ पर टॅंगी पोटली को निकाला और नन्हें की कोठरी में जा पहुंचा। 

मैंने जाकर सब को बताया कि पोटली तो बिही के पेड़ पर थी। तपाक से बड़े भैया बोले, तभी तो हम को नहीं मिली। जबकि बात यह थी कि वे  लोग आॅगन तक गये ही नहीं थे डर के कारण। अन्य कोई बात नन्हें ने नहीं पूछी इसी कारण इन लोगों की चालबाजी समझ में नहीं आई। नन्हें ने पोटली में से अनेक जड़ी बूटियों के सेंपल दिखाये और कहा कि इन्हें भी जगाना है, नाम न बताते हुए केवल दिखाया कि यह पीलिया की, यह बहते रक्त को बंद करने की, यह तिजारी की, यह सिर दर्द की आदि आदि अनेक बूटियां छांट छांट कर अलग अलग रखते हुए वह बता रहा था कि उसने कब और कहां से उस जड़ी को प्राप्त किया है। उसने बताया कि इनके जगाने का समय 12 बजे से 2 बजे के बीच है अतः अभी तुम लोग सो जाओ 4 बजे जाग जाना फिर कुंड पर चलकर तुम्हारा मन्त्र  जगा देंगे। हम लोग चले गये और नन्हें अपने काम में लग गया। चार बजते ही हम लोग तो जाग गये पर बैजनाथ नहीं आ पाया क्योंकि वह थोड़ी दूरी पर रहता था। साड़े चार तक वह आया और 5 बजे तक हम लोग कुंड पर पहुंचे, नन्हें बड़बड़ा रहा था, तुम लोगों के साथ यही खराबी है, कोई काम समय पर नहीं कर सकते हो, फिर नुकसान होगा तो हमको दोष देंगे।

कुंड पर पहुंच कर नन्हें ने कहा, केवल चड्डी पहने रहो, सब कपड़े उतार कर पानी के भीतर गर्दन के बराबर पानी आने तक गहराई में खड़े हो जाओ और अपने अपने हाथों में नारियल ले कर पानी के ऊपर किये रहना। तीनों कपड़े उतार कर पानी के भीतर घुसे। मेरी उंचाई कम होने से किनारे से चार कदम भीतर पहुंचते ही छाती तकपानी आ गया। नन्हें ने वहीं रुक जाने को कहा, परंतु बड़े भैया और बैजनाथ को मुझसे दो तीन कदम और आगे जाना पड़ा। किनारे पर बैठ नन्हें ने कंडे पर चकमक से आग सुलगाई और धुएं के शान्त  हो जाने पर हम लोगों से मंत्र को जोर जोर से उच्चारित करने को कहा । कुल मिलाकर 108 आवृत्तियां करना थीं। एक एक आवृत्ति पूरी होने पर नन्हें घी की आहुतियाॅ देता जाता था। पहले मंत्र की चालीस पेंतालीस आवृत्तियां ही हो पाईं थीं कि ‘कन्ना’ जोकि पाट चरानें आ रहा था, की भेंस अचानक कुंड की ओर जा पहुंची। कन्ना दौड़ता हुआ आकर कुंड के पास रुक गया। वह हमको देख कुछ बोलता कि नन्हें ने इशारे से रोक दिया कन्ना बोला तो कुछ नहीं पर अपनी भेंस को भूल हमारी गतिविधियां देखने लगा। दो तीन मिनट में ही वह चला गया, और हमारी मंत्र सिद्धी में कोई विघ्न नहीं आ पाया नहीं तो थोड़ी देर के लिये लगरहा था कि यह चरवाहा कहीं कुछ गड़बड़ न कर दे। खैर, एक एक कर सभी मंत्रों की आवृत्तियां पूरी हुईं और हमें पानी के बाहर आने की अनुमति मिली। पानी से बाहर आ कर हमने वह नारियल नन्हें को दे दिये। सफेद तौलिये से शरीर  पोंछ कर कपड़े बदले। नन्हें का निर्देश  था कि जब भी मंत्र का उपयोग करना पड़े इस तौलिये का एक सिरा सिर पर रखकर दूसरे को हाथ से पकड़ कर मन में मंत्र पढ़ते हुए हवा को उसकी ओर बहाते जाना जिसके लिये मंत्र प्रयुक्त किया जा रहा है। नन्हें ने यह भी बताया कि यह मंत्र तभी तक काम करेगा जब तक ये शर्तें पूरी होती रहेंगी। पहली शर्त  यह है कि कभी भी किसी का दिया प्रसाद न खाना और  दूसरी यह कि जब भी पेशाब करना हो ऐंसा स्थान चुनना जहां से मूत्र आगे की ओर बहे न कि पीछे की ओर आवे।

 इन बिचित्र शर्तों के आधीन हम मंत्र सिद्ध कर उन की परीक्षा करने के लिए बेचैन थे पर 15-20 दिन में ही दीवाली आई और हमें बहुत प्रसाद मिला। नारियल के टुकड़े, पेड़े, लाई, न जाने कितने  प्रकार की खाद्य सामग्री, अनेक जान पहचान और अनजाने व्यक्तियों ने दी पर जीभ ललचाती रही हमें तो शर्त के आधीन कुछ भी ग्रहण करने का  अधिकार नहीं था। बड़े भैया और बैजनाथ के बारे में कुछ नहीं कह सकता परंतु मुझे तो अपार कठिनाई थी फिर भी सब मिठाई और अन्य सामग्री अपनी छोटी बहिन को देता जाता था, इस तरह पहली बार मन चाही बस्तुएं दूसरों को दे देने पर कितना दुख होता है इसका पता चला। दूसरी शर्त के पालन करने में भी बहुत कठिनाई हुई, स्कूल में सभी लड़के कहीं पर भी खड़े होकर या बैठकर पेशाब कर सकते थे पर मुझे उचित स्थान ढूढ़ना पड़ता था। खैर, कुछ कठिनाई तो अवश्य  हुई लेकिन कुछ समय बाद सब ठीक हो गया। 

दीवाली की छुट्टियां समाप्त होते ही बड़े भैया शहर  चले गये क्यों कि वह उस समय 10 वीं में पढ़ते थे और हमारे गांव में केवल 8वीं तक ही स्कूल था वह केवल छुट्टियों में ही आया करते थे। अब हमारे लिये सीखे हुए मंत्रों के परीक्षण करने का अवसर ढूंढना था पर कठिनाई यह थी कि किससे कहा जाये? हम तो उम्र में इतने छोटे थे कि किसी से कुछ भी कहने में डर लगता था। एकाध बार साहस कर किसी सहपाठी से कह दिया कि मैं झाड़फूंक कर लेता हूं तो वह मुझपर बहुत हॅंसा, तब से मैंने चुप रहने में ही भला समझा। कुछ सप्ताह बाद रवि, जो कि मेरे पड़ोस में ही रहता था और मेरी क्लास में ही पढ़ता था, ने उस दिन तो मेरा बहुत मजाक उड़ाया था पर आज उसने लगभग रोते हुए मुझसे कहा कि उसकी मां बहुत तकलीफ में है, क्या मैं मंत्र से उन्हें ठीक कर सकता हूं? मैंने कहा क्यों नहीं, पर उन्हें विश्वाश  होना चाहिए। रवि बोला उसे विश्वाश  इसलिये है क्योंकि कन्ना, जो कि उसकी भैंसें चराता है, ने मुझसे कहा है कि तुम मंत्र जानते हो, उसने तुम लोगों को दशहरे के दिन भदभदा में मंत्र सिद्ध करते हुए देखा था। अब क्या था, मैं अपना मंत्र टेस्ट करने की सोच ही रहा था कि शाम  को नानी ने भी  अचानक मुझसे रवि की मां को झाड़ने के लिए कहा। डरते डरते मैं सुबह होते ही रवि के घर पहुंचा, रवि तो मेरी प्रतीक्षा ही कर रहा था। मैंने बताई गई विधि के अनुसार झाड़ना प्रारंभ किया । तीन दिन तक दोनों समय झाड़ने पर उन्हें आराम मिल गया। नियमानुसार उन्होंने मुझे एक नारियल दिया जिसे मैने स्पर्श  करते हुए रवि से कहा कि वह उसे फोड़कर कन्याओं को बाॅंट दे। मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही थी कि मैं अपने टेस्ट में पास हो गया। उधर बैजनाथ ने भी पास रहने बाले हीरा पटैल के लड़के को बिच्छू के काटने पर झाड़ कर ठीक कर दिया था अतः अपने मुहल्ले में वह बड़ा ही महत्वपूर्ण हो गया था । बैजनाथ इस झाड़फूंक में इतना लग गया था कि पढ़ाई लिखाई सब कुछ भूल गया। लोग उसे बहुत आदर देते। मुझे भी अपनी प्रसिद्धि पाने की लालसा बढ़ रही थी परंतु मेरी आयु कम होना इसमें बाधक था। मैं जानता था कि मेरा मंत्र सिद्ध है अतः अब उसे कभी भी उपयोग में ला सकता हूॅं, वर्तमान में पढ़ना लिखना ही अधिक महत्वपूर्ण है इस कारण मैंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया। बैजनाथ स्कूल की परीक्षा में फेल हो गया पर झाड़फूंक में इतना रम गया कि उसने यही धंधा करना अपने जीवन यापन का साधन बना लिया। आठवीं पास करनें के बाद मुझे शहर में आना पड़ा क्यों कि वहाॅं पर आगे स्कूल नहीं था। 


   

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