12 : बाबा की क्लास ( कुटिलता )
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क्यों राजू ! कुछ उदास हो ,क्या बात है ?
---- क्यों चंदू ! है न ? बाबा ने पूंछा।
- बाबा! इसे वादविवाद प्रतियोगिता में सेकेण्ड प्राइज मिली जबकि उसका प्रेजेंटेशन सबसे अच्छा था सभी श्रोताओं का अनुमान था कि रवि को ही फर्स्ट प्राइज मिलेगा , इसीलिए दुखी है।
- मैंने तुम लोगों को एक बार समझाया था कि इस जगत का "प्रमा त्रिकोण " असंतुलित हो गया है अतः प्रथम स्तर के योग्य लोगों को द्वितीय स्तर ही मिल पाता है। इसलिए दुखी होना व्यर्थ है क्योंकि यह सब प्रायोजित होता है। आओ तुम्हें इस सम्बन्ध में एक घटना सुनाता हूँ।
एक कर्मकाॅंडी विद्वान जब दार्शनिक विद्वान से तर्क में नहीं जीते तब उन्होंने कपट पूर्वक अपने गाॅंव में ही शास्त्रार्थ का आयोजन कर कुछ समर्थकों को अपने पक्ष में बार बार हस्तक्षेप करने और वाहवाही करने के लिये सहमत कर लिया और निर्णयक भी उन्हें ही बना दिया।
उसने मंच पर पहुंचते ही कहा, जनता जनार्दन! मैं तो हूँ बहुत ही छोटा और सब प्रकार से कमजोर , इसलिये चाहॅूंगा कि मैं ही पहले बोलॅूं। श्रोताओं में पृथक पृथक बैठे उसके प्रशंसकों ने कहा हाॅं ! अवश्य ही तुम्हें पहले प्रश्न पूछने का अवसर मिलना चाहिये।
उसने प्रतिद्वन्द्वी विद्वान से पूछा ‘‘ मैं नहीं जानता‘‘ इसका मतलब क्या है?
विद्वान ने कहा ‘‘ मैं नहीं जानता‘‘ ।
उस चालाक के समर्थक भीड़ में से चिल्ला उठे , हः हः हः! कितना सरल प्रश्न था, पर कैसा विद्वान है! कहता है, मैं नहीं जानता।
फिर उस चालाक ने श्रोताओं से कहा, भद्र महिलाओ और पुरुषो! मुझे लगता है कि हमारे आदरणीय महोदय को एक अवसर और मिलना चाहिये क्यों कि कभी कभी सरल प्रश्नों पर प्रकाॅंड महानुभाव ध्यान ही नहीं देते , अतः यदि अब आप लोग अनुमति दें तो उनकी प्रतिभा के अनुकूल प्रश्न पूछता हॅूं।
श्रोता बोले अवश्य ..... अवश्य ....... ।
उसने फिर पूछा, अच्छा ‘‘विवाह‘‘ के लिये क्या होना आवश्यक है? असली विद्वान बोला, प्रश्न बहुत ही सरल है‘, उपसर्ग ‘वि‘ + ‘वाह‘ ध+ प्रत्यय ‘घई‘ = विवाह‘ । अतः स्पष्ट है कि ‘घई‘ के विना विवाह नहीं बन सकता।
कुटिल के समर्थक चिल्ला उठे, कैसी विचित्र बात है! हमने तो कभी भी विवाह के समय ‘घई‘ को नहीं देखा! न सुना ?
कुटिल विद्वान ने श्रोताओं से कहा, देखिये महानुभावो! सभी जानते हैं कि विवाह में वर ,वधु ,पंडित, बराती , घराती, देवता की मूर्ति, नये कपड़े, टाविल , टोकनियाॅं .... आदि का होना आवश्यक है , इनके विना विवाह नहीं हो सकता। पर ये महाशय ‘घई‘ को अनिवार्य मान रहे हैं? ? ?
श्रोता बोले वाह!....वाह!... वाह!
और, कुटिल विद्वान को विजेता घोषित कर दिया गया। समझे? आजकल सभी स्थानों पर यही देखने को मिलता है।