Friday 3 July 2015

6. बाबा की क्लास (योगासन)

6. बाबा की क्लास (योगासन)
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क्यों नन्दू तुम दीवार के सहारे सिर के बल क्यों खड़े हो, रवि ने पूछा। नन्दू कुछ कहता कि पहले ही चन्दू बोली, भैया! इसने टीव्ही में प्रोग्राम देख कर बुद्धि को बढ़ाने के लिये शीर्षासन करने का मन बना लिया है।
रवि को बात समझ में नहीं आई, उसने नन्दू को एक चपत लगाई और बोला चल, पहले ‘बाबा‘ से तो पूंछ ले कि इसका अभ्यास करना तेरे लिये  जरूरी भी है या नहीं?

‘बाबा‘ ने उनकी पूरी प्रश्नावली को सुनकर यह उत्तर दिया।

मानवशरीर विज्ञानी कहते हैं कि शरीर के स्वस्थ संचालन हेतु प्रकृति ने इसमें अनेक ग्रंथियाॅं और उपग्रंथियाॅं ‘‘अर्थात् ग्लेंडस् और सबग्लेंडस्‘‘ बनाई हैं जिनसे निकलने वाले ग्रंथिरस ‘‘अर्थात् हार्मोन्स‘‘ के माध्यम से यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाये रखता है। संस्कृत में इन्हें चक्र और लेटिन में प्लेक्सस कहते हैं। 

योगासन वे सरल भौतिक स्थितियाॅं हैं जो ग्रंथियों और ऊर्जा केन्द्रों को हारमोन्स का स्राव करने हेतु अनुकूल परिस्थितियाॅं पैदा करती हैं। इनसे ग्रंथियों का दोष दूर होता है और वृत्तियों पर नियंत्रण होता है। आसन ग्रंथियों को, ग्रंथियाॅं हारमोन्स को और हारमोन्स वृत्तियों को नियंत्रित करते हैं। ये शरीर में लचीलापन लातीं हैं। शरीर और मन में संतुलन रखती हैं। मन को जड़ चिंतन से दूर करती हैं। उच्च और सूक्ष्म साधना करने के लिये मन को तैयार करतीं हैं। 

आसनों के प्रकार प्रमुखतः ये हैं-
 1 सर्वांगासन -शारीरिक स्वास्थ्य के लिये। 2 ध्यानासन- मन को नियंत्रित करने और ध्यान के लिये जैसे पद्मासन, बद्धपद्मासन, सिद्धासन और वीरासन। 3 मुद्रा- यह कठिन आसन होते हैं जो उचित साॅंस लेने और नियंत्रण के लिये किये जाते हैं। 4 बन्ध- ये केवल शरीर के दस वायुओं को प्रभावित करते हैं। 5 वेध- ये सभी नाडि़यों और वायुओं को प्रभावित करते हैं।

प्रत्येक चक्र से मनुष्य के संस्कार या ‘प्रोपेन्सिटीज‘ भी जुड़े रहते हैं जो योगासनों के नियमित अभ्यास करने से नियंत्रित होते हैं। संस्कारों के नियंत्रण से विचार भी नियंत्रित होने लगते हैं, क्योंकि सभी योगासनें या तो ग्लेंडस् पर दवाव डालती हैं या दवाव कम करती हैं। जैसे मयूरासन में मणीपुर चक्र के चारों और दवाव बनने से उसपर और संबंधित उपग्रंथियों पर भी धनात्मक प्रभाव पड़ता है अतः वे सब संतुलित हारमोन्स का स्राव कारने लगती हैं जिससे जन्मजात प्रवृत्तियाॅं भी नियंत्रित होने लगती हैं। उदाहरणार्थ,  किसी को सभाओं में या वाद विवाद प्रतियोगिता में बोलने में डर लगता है और यदि वह मयूरासन नियमित रूप से करने लगे तो यह भय समाप्त हो जायेगा। 

हारमोन्स का अधिक स्राव होने से प्रोपेन्सिटीज अधिक सक्रिय होती हैं और कम स्राव होने पर कम, इसलिये योगासनों के नियमित अभ्यास करने पर हारमोन्स के स्राव को आवश्यकतानुसार कम या अधिक किया जा सकता है। थायराइड और पैराथायराइड ग्लेंडस्  अर्थात् ‘‘विशुद्धचक‘‘ एवं आज्ञा चक्र अर्थात् ‘‘पिट्युटरी ग्लेंड‘‘ दोनों बौद्धिक विकास के लिये,  और लिंफेटिक ग्लेंडस्  अर्थात् मूलाधार , स्वाधिष्ठान और मणीपुर चक्र भौतिक विकास के लिये उत्तरदायी होते हैं। इसलिए जो भी व्यक्ति जिस  क्षेत्र विशेष की उन्नति करना चाहता है उसे उसी चक्र से सम्बंधित योगासन करना चाहिए।  शीर्षासन सभी के लिये हानिकारक है, शीर्ष पर सहस्त्रार चक्र या पीनियल ग्लेंड होता है जो ध्यान की उचित विधियों के अनुसार अभ्यास करके सक्रिय किया जाता है न कि शीर्षासन से। इसके सक्रिय होने से सभी प्रोपेन्सिटीज और पूरा शरीर नियंत्रण में आ जाता है।
चक्रों और प्रोपेन्सिटीज पर नियंत्रण करने की यौगिक पद्धति का अनुसंधान 2000 वर्ष पूर्व  महान संन्त अष्टावक्र ने किया था और अपने निष्कर्षों को अष्टावक्रसंहिता नामक ग्रंथ में लिखा था। हमें मनमाने तरीके से इन्हें नहीं करना चाहिये वरन् जानकार व्यक्ति के मार्गदर्शन  में ही अभ्यास करना चाहिये अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
चंदू बोली, बाबा! हमें कौन से आसन करना चाहिये? बाबा ने कहा सर्वांगासन छात्रों के लिये सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा भुजंगासन, शशकासन, बज्रासन और वीरासन भी यथा समय करना चाहिये।
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