Sunday, 13 September 2015

20  बाबा की क्लास (परमपुरुष की सीमायें)
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बाबा ! आज तो हमारे विषय शिक्षकों के साथ प्रसिद्ध यज्ञाचार्य पंडित अग्निहोत्री जी भी आये हैं, उन्हें यहीं क्लास में बुला लॅूं?

ठीक है रवि! यहीं पर बुला लो, सभी से एक साथ वार्ता हो सकेगी।

अग्निहोत्री - बाबा! मेरे इन शिक्षक मित्रों ने आपके द्वारा की गयी दीक्षा और यज्ञ, धर्म और श्रद्धा, कर्मफल आदि की व्याख्या सुनाई तो मैं चकित हो गया। मैं तभी से बड़े सोच में पड़ गया हॅूं कि मैं ने क्या स्वयं के साथ साथ समाज के एक बड़े वर्ग को कर्मकाॅंड कराते हुए धोखा दिया है? इसी का समाधान करने के लिये आपके समक्ष आया हॅूं। अब आप ही इसका उचित समाधान कर सकते हैं ।

बाबा - उचित ज्ञान के अभाव में सभी से गल्तियाॅं हो जाती हैं परंतु सही ज्ञान प्राप्त होते ही उसे सुधारने का पूरा प्रयास करने में जुट जाना चाहिये।

अग्निहोत्री - लेकिन बाबा! मैंने तो हजारों लोगों को अपने भ्रामक ज्ञान से रंग डाला है उन सब का परिणाम तो मुझे ही भोगना पड़ेगा, आपके द्वारा कर्म के सिद्धान्त की भी इसी प्रकार व्याख्या की गई है, मैं बहुत डर गया हॅूं।

बाबा - उचित ज्ञान प्राप्त कर स्वयं उसके अभ्यास करने के साथ साथ उन सबको भी उसे समझा दो, यही उपाय है।

अग्निहोत्री - लेकिन वे तो उसी ज्ञान में इतने मस्त हैं कि अब मैं यह समझा ही नहीं सकता कि पहले कही गयी सभी बातें गलत हैं।
बाबा - आपने सही कहा, समाज में श्रेष्ठ व्यक्ति जिस प्रकार का आचरण करता है अन्य लोग भी उसी का अनुसरण करते हैं अतः समाज के अग्रगण्य लोगों को इस संबंध में सतर्क रहना चाहिये । आप को धीरे धीरे यथार्थ ज्ञान को अपने आचरण में उतारते हुए अन्य सभी को प्रभावित करना चाहिये।

अग्निहोत्री - लेकिन मुझे तो इतनी आत्मग्लानि हो रही है कि लगता है यदि परमपुरुष से कभी भेंट का अवसर प्राप्त हुआ तो मुझे देखते ही वह ‘‘गेट आऊट‘‘ ही कहेंगे।

बाबा - नहीं , यह बात नहीं है, मैं, आप और यह सब विराट स्रष्टि, उन्हीं की कल्पना का साकार रूप है जो उनके मन के भीतर ही है, यदि वह आपसे कहते हैं कि ‘‘गेट आउट‘‘ तो आप विवेकपूर्ण यह तर्क दे सकते हैं कि प्रभु! आप ही बतायें कि मैं कहाॅं जाऊं अर्थात् वह स्थान बता दें जहाॅं आप न हों, मैं वहीं चला जाऊंगा। सब कुछ तो आपके भीतर ही है, मैं कहाॅं जाऊं? आपके बाहर कुछ है ही नहीं?

अग्निहोत्री - परंतु मैं ने तो अज्ञान का प्रसार करते करते अपने को उनकी घृणा का पात्र बना लिया है?

बाबा - एक बात अच्छी तरह याद रखो कि परमपुरुष यह दो काम कर ही नहीं सकते, एक तो यह कि वह दूसरा परमपुरुष नहीं बना सकते और दूसरा, वे किसी भी स्रष्ट वस्तु से घृणा नहीं कर सकते। क्योंकि यदि वह दूसरा परमपुरुष बनाते हैं तो वह भक्तों द्वारा दिये गये नामों जैसे, अद्वितीय, परमपुरुष, परमात्मा आदि नहीं कहला सकेंगे अतः वह अपने भक्तों की बात रखने के लिये यह नहीं कर सकते। दूसरी बात है घृणा करने की, तो वह भी नहीं कर सकते क्योंकि सभी को अपने द्वारा निर्मित की गई वस्तु प्रिय ही होती है । आवश्यकता इस बात की है कि जैसा वह अपनी स्रष्टि और उसके प्रत्येक घटक से प्रेम करते हैं उसी प्रकार आपको उनसे प्रेम करना सीखना होगा।
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