Saturday, 14 November 2015

32 बाबा की क्लास ( स्वर विज्ञान-2)

मित्रो! पिछली क्लास में आपने स्वरविज्ञान के उस वैज्ञानिक पक्ष को जाना जिसे प्राणायाम कहते हैं इस क्लास में स्वरविज्ञान के उस व्यावहारिक पक्ष पर चर्चा की जायेगी जो हमारे दैनिक जीवन के हर कार्य से संबंधित है।

32  बाबा की क्लास ( स्वर विज्ञान-2)
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चंदू - बाबा! साधारण और विशेष प्राणायाम में क्या अंतर है?

बाबा- साधारण प्राणायाम में निर्धारित विधि से श्वास को लेते हुए और छोड़ते हुए इष्टमंत्र के साथ लयबद्ध होना पड़ता है जबकि विशेष प्राणायाम में श्वास को निर्धारित विधि से लेना अर्थात् पूरक, रोकना अर्थात् कुंभक और छोड़ने अर्थात् रेचक का क्रम, रोग के अनुसार निर्धारित विंदु पर  मन को केन्द्रित करने और मंत्र के साथ लयबद्ध करना होता है।  

रवि- आपने कहा कि विशेष प्राणायाम विशेष प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिये किये जाते हैं, वे कौन कौन से हैं? क्या हम लोग भी उन्हें कर सकते हैं?

बाबा-  रवि! शायद तुम्हें ज्ञात होगा कि यह जगत परमसत्ता  की विचार तरंगें  अर्थात् ब्राह्मिक प्रवाह या cosmic flow है और जब इसका कोई इकाई अस्तित्व  अपने को उससे पृथक प्रवाह मानने लगता है तब उसका वैचारिक संसार ही अलग हो जाता है और सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक व्यतिक्रम  होने लगते हैं। विश्व  के सभी दर्शन  और उनके अनुयायी जितने भी प्रकार की पूजा या उपासना पद्धतियाॅं सिखाते हैं वे उसी ब्राह्मिक लय अर्थात् cosmic rhythm   जिसे उपनिषदों में ‘‘ओंकार ध्वनि" कहा गया है, के साथ लयबद्धता अर्थात् resonance करने के प्रयास ही होते हैं, यह अलग बात है कि पोंगा पंथियों ने इस यथार्थ को छिपाकर स्वार्थवश  अपना अपना व्यवसाय बना लिया है और अपने आप के साथ साथ सब को धोखा दे रहे हैं। उचित विधियों के द्वारा जब रोग प्रभावित व्यक्ति ब्राह्मिक प्रवाह के साथ लयबद्धता प्राप्त करने लगता है, वह संबंधित रोग से मुक्त होने लगता है । विशेष प्राणायाम  विशेषज्ञ के द्वारा ही सिखाये जाते है और वे उनकी उपस्थिति में केवल संबंधित जटिल रोगों के दूर करने के लिये ही रोगी द्वारा किये जाते हैं । स्पष्ट है कि उन्हें सभी को सीखने की आवश्यकता नहीं होती। तुम लोगों की जानकारी के  लिये उनके नाम बताये देता हॅूं जैसे, वस्तिकुंभक, शीतलीकुंभक, सीतकारीकुंभक, कर्कट प्राणायाम, पक्षबध प्राणायाम आदि। प्राणायाम, प्राणवायु को नियंत्रित करने की विधि है अतः नाड़ीजन्य, वातजन्य और अस्थिजन्य व्याधियों को दूर करने के लिये इन्हें प्रयुक्त किया जाता है। 

नन्दू- बाबा! स्वर विज्ञान के अनुसार हमें किस स्वर में कौन सा कार्य करने पर उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त होते हैं?

बाबा- सामान्यतः लोग स्वरशास्त्र के संबंध में कुछ नहीं जानते और अपनी श्वास  क्रिया पर उचित नियंत्रण करना भी नहीं जानते जबकि श्वसन क्रिया  का भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। जैसे ,जब शरीर भौतिक कार्यों जैसे दौड़ना, चलना, भोजन आदि करता हो तो श्वास  दाॅंयी नासिका से प्रवाहित होना चाहिये। भोजन को सही ढंग से पचाने के लिये भोजन करने के आधा घंटा पहले , भोजन करने के  दौरान और भोजन करने के एक घंटा बाद तक दाॅंया स्वर ही चलना चाहिये।
इसके विपरीत मानसिक और मस्तिष्क संबंधी कार्य जैसे पढ़ना, याद करना, स्वाध्याय, ध्यान धारणा , प्रत्याहार , गुरुपूजा आदि कार्य वाॅंये स्वर में करना चाहिये। वैसे, वाॅयाॅं और दायाॅ दोनों स्वर एकसाथ चलने की दशा  भगवद् चिंतन और ध्यान के लिये सबसे अच्छे माने गये हैं परंतु दोनों स्वर एक साथ चलने का पता चल पाना कठिन होता है। 
स्वस्थ व्यक्ति का स्वर डेड़ से दो घंटे के बीच स्वाभाविक रूप से बदलता रहता  हैं। इस परिवर्तन के संबंध में उचित रूपसे जानकारी रखना बहुत जरूरी होता है क्यों कि दिनचर्या में परिवर्तन होने पर किसी विशेष काम के लिये उचित स्वर प्राप्त करना कठिन हो जाता है। इस परिस्थिति में कृत्रिम विधियों से अनुकूल स्वर को लाना होता है ।

रवि- बाबा! वह कृत्रिम विधि क्या है जिससे हम आवष्यकतानुसार स्वर पा सकते हैं?

बाबा-  आवश्यकतानुसार किसी कार्य के करने के समय यदि उचित स्वर नहीं चलता है और वह कार्य कर लिया जाता है तो अनेक प्रकार की मानसाध्यात्मिक समस्यायें  जन्म ले लेती हैं। इसलिये उचित कार्य हेतु उचित स्वर पाने के लिये कृत्रिम रूप से स्वर को लाना पड़ता है , जैसे भोजन करने के समय यदि वाॅंया स्वर चलता हो तो इस अवस्था में भोजन करने पर वह ठीक तरह से नहीं पचेगा अतः भोजन करने के पहले वाॅंये हाथ को सीधा फैलाये हुए वायीं करवट कुछ मिनट तक लेटे रहने पर स्वर दायाॅं चलने लगेगा, इसी प्रकार वाॅंया स्वर लाने के लिये दायाॅ हाथ फैलाये दायीं करवट कुछ मिनट लेटने पर वाॅयां स्वर प्राप्त हो जायेगा। 
श्वसन क्रिया पूर्णतः वैज्ञानिक है, जब इडा नाड़ी सक्रिय होती है तो स्वर वाॅंया और जब पिंगला नाड़ी सक्रिय होती है तो स्वर दायां  चलता है। जब सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होती है तब दोनों स्वर चलते हैं। इस प्रकार ये नाडि़याॅं मानव शरीर की मानसिक और आध्यात्मिक क्रियाशीलता को गहराई से प्रभावित करती हैं।

चंदू- सोने के लिये सबसे अच्छी स्थिति क्या है?

बाबा- सोते समय पाचन प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है अतः स्पष्ट है कि उसकी सक्रियता बढ़ाने के लिये श्वास दाॅंयी नासिका से चलना चाहिये , यह तभी होगा जब आप वाॅंयी करवट से सोयेंगे। पीठ के बल सोना बुरा है और उससे भी बुरा है दायीं करवट से सोना, और सबसे बुरा है पेट के बल सोना, इसलिये इन बातों का ध्यान रखना चाहिये।

नन्दू- इसके अलावा दैनिक जीवन के वे कौन से कार्य हैं जहाॅं स्वर का ध्यान रखना चाहिये?

बाबा- उपवास का  दिन भगवद् चिंतन के लिये सबसे उपयुक्त दिन होता  हैं परंतु नवाभ्यासी के लिये भूख लगना स्वाभाविक बाधा खड़ी करता है  अतः स्वर को बदल कर भूख पर नियंत्रण पाया जा सकता है जैसे, उपवास के दिन जब भी भूख लगे दायीं करवट से लेट जाने पर पाॅंच दस मिनट में ही वाॅया स्वर चलने लगेगा और भूख लगने का आभास नहीं होगा।  
- अजीर्ण होने पर अधिक दर्द होने की स्थिति में जिस स्वर से श्वास  चल रही हो उसी करवट लेट जाने पर श्वास  कुछ मिनट में बदल जायेगी और दर्द दूर हो जायेगा।
- योगासन करने के समय या तो वाॅंये या दोनों स्वर चलना चाहिये परंतु दायें स्वर के चलने पर योगासन नहीं करना चाहिये। किंतु भुजंगासन, पद्मासन, वीरासन, सिद्धासन , दीर्घप्रणाम आदि आसन करते समय स्वर पर ध्यान देना आवश्यक  नहीं है। 
- सधना करते समय यदि मन यहाॅं वहाॅं भागता है तो पता करें कि कौन सा स्वर चल रहा है और दाॅंयीं ओर कुछ मिनट लेटकर उसे वाॅंये स्वर में बदल जाने पर फिर से साधना में बैठ जायें मन लगने लगेगा।

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