Thursday 19 November 2015

33 परिग्रह


फटे वस्त्रों में जीर्ण देह को लपेटे, रोड के एक किनारे बैठे, ललचायी आॅंखों से प्रत्येक राहगीर को देख रहे व्यक्ति की ओर मैं अचानक ही कुछ मदद करने की इच्छा से जा पहुंचा। 
कुछ भी देने से पहले मैं ने उससे, उसकी इस दशा  के लिये कौन उत्तरदायी है यह जानना चाहा।
वह, बहुत गहराई में डूबी अपनी व्यथित हॅंसी को सप्रयास प्रकट करते हुए बोला, 
‘‘साहब! यदि घर में केवल एक दर्जन केले हों और खाने वाले दस लोग हों तो विवेकपूर्ण निर्णय क्या होगा ?‘‘
मैंने कहा, ‘‘ कम से कम एक केला प्रत्येक को ले लेना चाहिये और बचे हुए दो केलों को सर्वानुमति से उन्हें देना चाहिये जिन्हें सबसे अधिक भूख लगी हो‘‘
‘‘ परंतु, साहब! यदि सभी बारह केले एक ही व्यक्ति खा ले तो ? बाकी नौ लोग तो मेरे जैसे ही हो जायेंगे, है कि नहीं?‘‘
इस एक प्रश्न  के साथ जुड़ी लंबी आभासी प्रश्नावली  की आहट पा, मैं निरुत्तर हो गया।

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