Sunday 22 November 2015

34 बाबा की क्लास (कुछ भ्रान्तियाॅ- 1)

34  बाबा की क्लास (कुछ भ्रान्तियाॅ- 1)
रवि-बाबा! कुछ लोगों का मानना है कि अमुक संत के पास सिद्धि है और वे किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं, कष्ट दूर कर सकते हैं, घटनायें टाल सकते हैं? यह कैसे होता है?

बाबा- यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया बराबर और विपरीत दिशा  में होती है बशर्ते टाइम, स्पेस और पर्सन में परिवर्तन न हो । इस नियम  के माध्यम से प्रकृति का उद्देश्य  यह  शिक्षा देना होता है कि बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिये। पर कुछ लोग साधना से प्राप्त बल के द्वारा इसे दूर करने का प्रयास करने में इस विधिमान्य नियम को भूल जाते हैं और समझते हैं कि वे कल्याण कर रहे हैं। कर्मफल तो कर्म करने वाले को भोगना ही पड़ेगा, चाहे कितना बड़ा भक्त क्यों न हो वह इसे नहीं रोक सकता यदि वह ऐंसा करता है तो वह भोले भाले लोगों को धोखा देने के अलावा कुछ नहीं माना जायेगा। यह हो सकता है कि कर्मफल का दंड भोगने का समय कुछ आगे टल जाये पर वह भोगना ही पड़ेगा चाहे उसे फिर से जन्म क्यों न लेना पड़े, क्योंकि हो सकता है कि दंड भोग के समय, व्यक्ति के मन में साधना कर मुक्ति की जिज्ञासा जाग जाये परंतु साधना सिद्धि प्राप्त व्यक्ति अपने बल से उसका कष्ट दूर करने का प्रयास करे तो यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध होने के कारण वह कल्याणकारी नहीं माना जायेगा वरन् वह दंड का भागीदार माना जायेगा।  इसलिये पराशक्तियों का उपयोग करना ईशनिंदा ही माना जायेगा क्योंकि यह प्रकृति के नियमों को चुनौती देकर उन्हें उदासीन करना ही कहलायेगा। पराशक्तियों के उपयोग से पानी पर चल सकते हैं, आग में चल सकते हैं, असाध्य बीमारियों को दूर कर सकते हैं, चमत्कार दिखा सकते हैं पर यह प्रकृति के स्थापित संवैधानिक नियमों की अवहेलना होगी और उस पराशक्ति के उपयोगकर्ता को कर्मफल भोगना ही पड़ेगा।

नन्दू- एक दिन राजू के पिता कह रहे थे कि उनके गुरुजी बहुत उच्च स्तर के हैं और वह जिस पर कृपा कर दें तो उसे मुक्ति मोक्ष तत्काल मिल जाता है, उसे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं होती?

बाबा- कुछ लोग यह भ्रान्त धारणा पाल लेते हैं कि उनके गुरु तो पहुँचे हुए हैं, उनकी कृपा से वे मुक्त हो जायेंगे उन्हें साधना की क्या आवश्यकता? पर वे गलती करते हैं क्योंकि मुक्ति बिना प्रयास के नहीं मिल सकती। गुरु की कृपा के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती परंतु यह बात भी सही है कि गुरुकृपा पाने की योग्यता भी तो होना चाहिये केवल तभी कृपा मिल सकती है। गुरु कृपा पाने के लिये ही शिष्य को , विश्वास  और भक्तिभाव से साधना करने के लिये गुरु सतत निर्देश  देते हैं।

इंदु- परंतु बाबा! भक्त गण हमेशा  दुखी ही देखे जाते हैं ,शायद इसीलिये लोग आध्यात्म से दूर ही रहना चाहते हैं?
बाबा- आध्यात्मिक साधना करने वाले भक्त अपने कर्मफलों को भोगने के लिये पुनः जन्म नहीं लेना चाहते अतः वे इसी जन्म में मुक्त होने की उत्कंठा से शेष बचे सभी संस्कारों के प्रभावों को शीघ्र ही इसी जन्म में भोग लेना चाहते हैं अतः यदि उन्हें साधना करने में समस्यायें/कष्ट आते हैं तो इसे शुभ संकेत माना जाना चाहिये क्यों कि यह उनके कर्मफल का भोग तेजी से ही हो रहा होता है।

चंदू- तो क्या साधना करने और अविद्या माया के जंजाल से बचने के लिये जंगल में जाना आवश्यक  है, क्योंकि यहाॅं तो साॅंसारिक लोग, कष्ट पा रहे साधकों पर व्यंग करते हुए हॅंसते ही है?

बाबा- अविद्या माया का अर्थ है अष्टपाश  और शडरिपुओं का समाहार, अतः अविद्यामाया से दूर भाग कर उससे बचा नहीं जा सकता। उससे बचने के लिये मन को सूक्ष्मता की ओर प्रत्यावर्तित करना पड़ता है। जैसे, किसी घाव के ऊपर मंडराने वाली मक्खियों को दूर भगाना ही पर्याप्त समाधान नहीं है घाव को भरने का भी प्रयत्न करना होगा। महान गुरु के द्वारा सिखाई गयी साधना की विधि घाव भरने वाली मरहम है इसी की सहायता से कोई भी अविद्या को दूर भगाकर मुक्त हो सकता है। अविद्यामाया के हटने पर साधना के समय आने वाले सभी व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। चूंकि यही एकमात्र विधि है जो अविद्या को दूर करती है अतः घर में रहते हुए सरलता से की जा सकती हैं, भले अविद्या प्रारंभ में कुछ व्यवधान करे पर एक बार हार जाने के बाद वह आध्यात्म साघना में रुकावट नहीं डालती। घर में रहकर साधना करने में, उनकी तुलना में अधिक सुविधा होती है जो घर छोड़कर जंगल में जाकर अभ्यास करते हैं। सत्य की पहचान कर लेने पर लोगों की हॅंसी या व्यंग करने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

रवि- बाबा! कुछ लोग किसी स्थान विशेष जैसे तीर्थ आदि, में जाकर साधना करने की सलाह देते हैं यह कितना उचित है?
बाबा- यह भेदभाव करना कि किसी स्थान विशेष पर साधना करने में सुविधा होती है या कोई स्थान साधना के लिये खराब है यह उचित नहीं है यह तो ब्रह्म को भागों में बाॅंटना हुआ। सभी कुछ तो ब्रह्म की ही रचना है अतः किसी को अच्छा या बुरा कहना ब्रह्म को ही अच्छा या बुरा कहना हुआ, इसप्रकार तो स्रष्टि की शेष रचनाओं के साथ एकत्व रख पाना कठिन होगा। ब्रह्म के लिये सभी स्थान एक से ही हैं अतः ब्रह्म साधना कहीं भी की जा सकती है। संसार को छोड़कर साधना के लिये जंगल या अन्य स्थान को जाना अतार्किक है और संसार के छूट जाने के भय से साधना न करना अविवेकपूर्ण है ।

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