Monday 1 February 2016

46 बाबा की क्लास (मृत्यु के बाद-2)

46 बाबा की क्लास (मृत्यु के बाद-2)
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इंदु-  बाबा! आपने यह समझा दिया है हि स्वर्ग और नर्क केवल मनुष्यों के  मन की मान्यतायें हैं, परंतु देह त्याग करने के बाद पशु  और अन्य जीवों का क्या होता है?
बाबा- तुम्हें यह तो याद ही होगा कि पशु  और अन्य जीव पूर्णतः प्रकृति के आधीन होते हैं अतः वे अपने मन से कुछ भी नहीं कर सकते, इसलिये स्पष्ट है कि परम सत्ता की मानसिक तरंगों के रूपमें जब यह ब्रह्माॅंड संचर और प्रतिसंचर गतियों द्वारा ब्रह्मचक्र का निर्माण करते हुए  उन्हीं में मिलती जा रही हैं तो पशुओं की मृत्यु के पश्चात  प्रकृति उन्हें उन्नत योनि का क्रमागत शरीर देती है उन्हें उसे ढूडने के लिये भटकना नहीं पड़ता। परंतु मनुष्यों को प्रकृति ने उस प्रवाह में क्रमशः  चलते चलते पहले से ही उन्नत स्थिति (अर्थात् मनुष्य शरीर) क्रमागत रूप से दे दी है अतः वे अपने संस्कारजन्य कर्म भोगने और नवीन कर्म के संस्कार उत्पन्न करने के लिये स्वतंत्र होते है। यही कारण है कि वे अभुक्त संस्कारों को भोगने के लिये सूक्ष्मशरीर में तब तक अन्तरिक्ष में भटकते रहते हैं जब तक उन्हें अर्जित और संचित संस्कारों को भोगने योग्य उपयुक्त शरीर उपलब्ध नहीं हो जाता।

चंदु- परंतु यदि मनुष्यों को उनके अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार दो भागों में बाॅंट दिया जाये तो उन्हें एक समान सूक्ष्मशरीर प्राप्त होंगे या भिन्न?
बाबा- पिछली बार यह भी बताया गया था कि सूक्ष्मशरीर में मन, अहंकार , बुद्धि और संस्कारों का समूह ही होता है अतः स्पष्ट है कि सबके सूक्ष्मशरीर भी संस्कारों के अनुरूप भिन्न भिन्न होंगे।

रवि- लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि अच्छे कर्म करने वाले देवयोनि में और पाप कर्म करने वाले लोग प्रेत योनि में जाते हैं?
बाबा- बात सही है, ब्राह्मिक प्रवाह में सूक्ष्मता की ओर जाना देवयोनि और जड़ता की ओर जाना प्रेत योनि में माना जाता है। उन्नत बौद्धिक स्तर प्राप्त व्यक्ति मरने के बाद देवयोनि और अन्य दुर्गुणी लोग प्रेतयोनि में अदेह भटकते हैं जब तक कि उन्हें अवशेष संस्कारों को भोगने योग्य अन्य शरीर नहीं मिल जाता । हमारे ऋषियों, और आत्मसाक्षात्कार कर चुके महापुरुषों ने अपने अंतर्ज्ञान  से  इस विषय को विस्तार से समझाया है जिसे संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
प्रेत योनि-
1. दुर्मुख - वे जो दूसरों को विभिन्न कारणों से मानसिक क्लेष देते हुए मरते हैं वे दुर्मुख प्रेतयोनि में अशरीर भटकते रहते हैं और लंबे समय बाद जब उन्हें प्रकृति, संस्कारों के अनुरूप शरीर उपलब्ध करा देती है तब वे पुनः मानव शरीर में जन्म लेते हैं।
2. कबंध -वे जो अपमान के कारण, मानसिक विकृति से या कुंठा से, या अत्यधिक लगाववश  ,क्रोध , लोभ , अहंकार , जलन आदि के कारण आत्म हत्या कर लेते हैं वे कबंध प्रेतयोनि में रहते हैं और मानसिक रूप से असंतुलित लोगों को आत्महत्या के लिये प्रेरित  करते रहते है।
3. मध्यकपाल -मानसिक रूपसे बेचैन रहनेवाले वह व्यक्ति जो अस्थिर प्रकृति के होते हैं हर समय अपने विचार बदलते रहते हैं। वे स्वयं परेशान  रहते हैं और दूसरों को भी परेशान  करते हैं। मरने के बाद वे अदेह मध्यकपाल प्रेतयोनि में भटकते हैं।
4. महाकपाल -जो अपने स्वार्थ के लिये दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं और अविद्या का सहारा लेकर पाप कर्म करते हैं और मारक हथियारों को बहुतायत से निर्माण करने का कार्य करते हैं और निर्दयता से लाखों लोगों की हत्या करते हैं वे महाकपाल प्रेतयोनि में भटकते हैं।
5. ब्रह्मदैत्य या ब्रह्मपिशाच  - वे बुद्धिवादी जो दूसरों में हीनता का भाव जगाते हैं और अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग रचनात्मक काम में नहीं करते बल्कि दूसरों का दमन करने में लगाते हैं ब्रह्मदैत्य या ब्रह्मपिशाच  प्रेतयोनि में भटकते हैं।
6. आकाशीप्रेत-योग्यता के न होने पर भी अपनी महत्वाकाॅंक्षा की पूर्ति करने के लिये जो हमेशा  विध्वंसक काम में संलग्न रहते हैं और जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचकते वे आकाशी प्रेत बनकर भटकते हैं और लंबे समय के बाद फिर जन्म ले पाते हैं।
7. पिशाच -जो सब चीजों को अपने खाने और अपने सुख पाने की इच्छा से उपभोग करते हैं चाहे वह इस योग्य हो या नहीं, ये लोग मरने के बाद पिशाच प्रेतयोनि में रहते हैं।

नन्दू- तो क्या इसी प्रकार देवयोनियों का भी विभाजन होता है?
बाबा- हाॅं, देवयोनि का अर्थ है वह सत्ता जिसमें अनेक दिव्य गुण हों। अनेक प्रकार की देवयानियों में से सात प्रकार प्रमुख हैं किन्नर, विद्याधर, यक्ष, प्रकृतिलीन, विदेहलीन सिद्ध और गंधर्व।
देव योनि 
1. किन्नर-  वे जिनका लगाव सुंदरता और आभूषण, धन आदि के प्रति होता है वे मृत्यु के बाद किन्नर होते हैं । ये भगवान के भक्त होते हैं पर भगवान के बदले उन्होंने सुन्दरता और आभूषणों की चाह की होती है  और सोचते हैं कि सब उनकी सुंदरता की तारीफ करें। अतः वे मरने के बाद किन्नर माइक्रोवाइटा हो जाते हैं वे लोगों को सुन्दर  होने की मनोविज्ञान सिखाकर सौंदर्यपरक बनाने में सहायक होते हैं।
2. विद्याधर -आध्यात्मिक रूपसे वे उन्नत व्यक्ति जो परमपुरुष को अनुभव करने की अपेक्षा ज्ञान को अधिक महत्व देते हैं मरने के बाद विद्याधर माइक्रोवाइटा होते हैं । किन्नर से वे कुछ उन्नत होते हैं और संस्कार क्षय होते ही फिर से जन्म लेते हैं। ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते और उन्हें मदद करते हैं जो बौद्धिक स्तर पर अपने को आगे ले जाना चाहते हैं। ये शरीर से सुन्दर  भले न हों पर मानसिक रूप से सुंदर स्वभाव के होने से सबको आकर्षित करते हैं। पर वे परमपुरुष को नहीं पाते।
3. यक्ष - वे जो आध्यात्म साधना करते करते अच्छे कार्यों के लिये धन संग्रह करने लगते हैं और फिर आध्यात्मिक उन्नति और परमपुरुष को भूल कर उसी में रम जाते हैं उनका आराध्य धन संपदा ही हो जाता है ऐंसे लोग मरने के बाद यक्ष माइक्रोवाइटा होते हैं, ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते पर वे परमपुरुष को नहीं पाते और संस्कारों के क्षय होते ही फिर से जन्म पा जाते हैं।
4. प्रकृतिलीन - वे जो भ्रमित होकर परम पुरुष को भूल जाते हैं और जड़ पदार्थों की पूजा में लगे रहते हैं मरने के बाद प्रकृतिलीन होकर उनके मन पत्थर लकड़ी आदि हो जाते हैं। यह दशा  बहुत ही दयनीय होती है पर संचित संस्कारों के क्षय हो जाने पर फिर से मानव देह पाते हैं पर चूंकि वे परम पुरुष को पाने की चाह रखते हैं वे देवयोनि में माने गयेहैं। जहाॅं देवयोनि पत्थरों या लकड़ी के रूपमें होते हैं वे लगातार अपने मुक्त होने के लिये चिंतित रहते हैं अतः जब कोई आध्यात्मिक साधक ऐंसे स्थानों पर साधना करता है तो जल्दी ही उनका ध्यान केन्द्रित हो जाता है क्योंकि धनात्मक माइक्रोवाइटा सहायता करने लगते हैं। यदि देवयोनी की मदद से ध्यान केन्द्रित हुआ है तो वे नाक से हल्की मीठी सुगंध का अनुभव करते हैं और यदि वे गुरु की कृपा से ध्यान केन्द्रित कर लेते हैं तो मधुर हल्की सुगंध के साथ वे चमकीले प्रकाश  की तरंगों के खंड भी देख पाते हैं। चाहे आखें खुली हों या बंद, दोनों  ही स्थितियों में गुरु की कृपा का ही महत्व है। आध्यात्मिक साधक पर जब गुरु की सीधी कृपा होती है तो वह हल्की सुगंध सूंघकर और चमकीली तरंगों के खंड देखकर मादक उल्लास से सब भिन्नताओं को भूल कर परम चेतना के सागर में आनन्दित होनें लगता है। तब वह अनुभव करता है कि गुरु कृपा के अलावा कुछ नहीं है।
5. विदेहलीन - वे जो आध्यात्मिक साधक तो होते हें और साधना जारी रखते हैं पर घरेलु परेशानियों और अन्य घटनाओं , जैसे बच्चे अच्छे न निकलना , फेल होना , धन समाप्त होना, बार बार धोखा होना आदि से दुखी होकर मानते हैं कि उनकी तरह दुर्भाग्य किसी का नहीं है और मर जाना चाहते हैं और इसी सोच में मर जाते हैं वे विदेहलीन होकर भटकते हैं जो बड़ी ही कष्टदायी अवस्था है। ये धनात्मक माइक्रोवाइटा होते हैं और लोगों की मदद करते हैं संस्कारों  के क्षय हो जाने पर फिर मानव तन पाते हैं।
6. सिद्ध- वे जो तल्लीनता से साधना करते हैं और कुछ दिव्य शक्तियाॅं पा जाते हैं तो वे और अधिक शक्तियों के पाने के चक्कर में परमपुरुष को पाने से ध्यान हटा कर सिद्धियों पर ही ध्यान लगाये रहते हैं ये मरने के बाद सिद्ध माइक्रोवाइटा हो जाते हैं। देवयोनियों में इनका सबसे ऊंचा स्थान है। आध्यात्मिक साधकों को यह अनेक प्रकार से मदद करते हैं। उनकी मुख्य भूमिका अभिभावक की तरह होती है। अनेक महापुरुषों के बारे में सुना जाता है कि उनके कोई गुरु नहीं थे यर्थाथतः, वे इसी प्रकार के सिद्धों के द्वारा दीक्षित थे। साधकों को आवश्यकता  होने पर सिद्ध उचित मार्गदर्शन  देते हैं।
7. गंधर्व - वे साधक जो संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय होने की कामना करते हुए शरीर त्याग करते हैं वे गंधर्व देवयोनी में जाते हैं जो कि विशेष प्रकार के धनात्मक माइक्रोवाइटा हैं।

राजू- बाबा! आपने इस चर्चा में एक नया शब्द ‘माइक्रोवाइटा‘ उच्चारित किया है यह क्या है ?
बाबा- माइक्रोवाइटा अपेक्षतया नया शब्द है जो जीवन का सूक्ष्मतम भाग होता है इसे यह नाम ‘‘माइक्रो प्लस वाइटम‘‘ इन दो शब्दों के मेल से दिया गया है, वहुवचन में माइक्रोवाइटा कहते हैं। परंतु  सरलता के लिये इसे आपलोग सूक्ष्मशरीर का तत्विक भाग मान सकते हैं। इसकी व्याख्या कभी किसी अगली क्लास में की जायेगी।

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