80 बाबा की क्लास (शिव . 5)
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रवि- काली के संबंध में आपने बताया परंतु वर्तमान में पार्वती और दुर्गा को एक समान मानने वालों की कमी नहीं है, इस पर आपका क्या मत है?
बाबा- शिव के परिवार से संबंधित अनेक अतार्किक कहानियाॅं जोड़ी जाती रहीं हैं जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। पार्वती को ही लें, इसके शाब्दिक अर्थ को पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में समझा जाता है जबकि क्या एक पहाड़ मानव कन्या को जन्म दे सकता है? नहीं। वास्तव में हिमालयन क्षेत्र में राज्य करने वाले आर्यन राजा दक्ष की पुत्री जिनका नाम गौरी था वही पार्वती अर्थात् ‘‘पर्वत देशीया कन्या‘‘ कहलाती थीं। आर्यों और भारत के मूल निवासियों जिन्हें आर्य लोग प्रायः अनार्य, दानव, असुर, दास, शूद्र आदि कहते थे, के बीच हमेशा झगड़े हुआ करते थे। इसके पहले मैंने तुम लोगों को स्पष्ट किया है कि तत्कालीन भारत के मूल निवासी आस्ट्रिको.मंगोलो.नीग्रोइड नस्ल के थे जिनकी अपनी संस्कृति थी और तंत्र विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ये बहुत उन्नत थे। शिव, भारत के मूल निवासी थे। शिव की प्रतिभा से प्रभावित होकर पार्वती ने उन्हें अपने पति के रूप में पाने की इच्छा की पर पिता को अनार्य से संबंध बनाना मान्य नहीं था। पार्वती ने शिव को पाने के लिये राजमहल त्यागकर जंगल में वनवासी कन्याओं की तरह पत्तों के वस्त्र पहिन कर तपस्या प्रारंभ कर दी। पत्तों को संस्कृत में पर्ण कहते हैं और वनवासिनी कन्यायें शिवरी कहलाती हैं। अतः उनका नाम पर्णशिवरी हो गया। पार्वती की तपस्या सफल होने पर शिव ने उनसे विवाह किया परन्तु पार्वती वही पत्तों के वस्त्र पहना करतीं थीं, बाद में राज्य के सम्मानितों के अनुरोध पर उन्होंने राजसी वस्त्र स्वीकार कर लिये, इसके बाद उनका नाम अपर्णा हो गया।
इंदु- तो क्या शिव और पार्वती के विवाह के बाद आर्यों और अनार्यों की लड़ाइयाॅं बंद हो गई थीं?
बाबा- शिव से पार्वती का विवाह हो जाने के बाद लोगों ने सोचा था कि आर्यों और अनार्यों के संबंध सुधर जावेंगे पर यह संभव नहीं हुआ वरन् राजा दक्ष हमेशा शिव का विरोध करते और अपमान करने का अवसर ढूंडते रहते थे। किसी अवसर पर उन्होंने यज्ञ किया जिसमें उन्होंने शिव को आमंत्रित ही नहीं किया। पार्वती यज्ञ में शिव के बिना अकेले ही जा पहुॅंचीं जहाॅं उन्होंने शिव का अपमान देखकर अपने आपको यज्ञ की अग्नि में जला डाला। इसके बाद से आर्यों और अनार्यों के परस्पर संबंध कुछ सुधर गये। इन गौरी या पार्वती का पौराणिक देवी दुर्गा से कोई संबंध नहीं है। दुर्गा मार्कंडेय पुराण की आठ और दस हाथों वाली काल्पनिक देवी हैं, मात्र 1300 या 1400 वर्ष पुरानी । जबकि पार्वती मानव कन्या हैं दो हाथ वाली और 7000 वर्ष पुरानी। पौराणिक काल में दुर्गा को शिव से जोड़ दिया गया अन्यथा उन्हें मान्यता कैसे मिल पाती।
राजू- परंतु कुछ विद्वान तो दुर्गा को वेदों के द्वारा मान्यता प्राप्त मानते हैं?
बाबा- वेदों में भी दुर्गा के पूजन की कोई विधि वर्णित नहीं है । दुर्गा को वेदों की मान्यता देने के लिये देवीसूक्त की हेमवती उमा का उल्लेख किया जाता है परंतु इनका गौरी , पार्वती या दुर्गा से कोई संबंध नहीं है। इसका कारण है समय का अंतर। लोग गलती से उस संबंध को माने हुये हैं।
नन्दू- एक बार आपने बताया था कि शिव ने ही सबसे पहले विवाह नामक संस्था की संकल्पना दी और उन्होंने तत्कालीन लड़ते रहने वाली समाजों को एकीकरण करने के लिये तीन विवाह किये?
बाबा- हाॅं। शिव की दूसरी अनार्य पत्नी जिनका नाम था कालिका या काली और तीसरी मंगोलियन पत्नी जिनका नाम गंगा था, अवश्य थी। आर्यों के भारत में आने के बाद आर्य, अनार्य या द्रविड़ और मंगोलियन सभ्यता के लोगों में परस्पर होने वाली लड़ाइयों को समाप्त करने के लिये शिव ने तीन विवाह किये। सच्चाई यही है कि विवाह और परिवार नाम की संकल्पना को शिव ने ही मूर्तरूप दिया और पुरुषों को परिवार के पालन पोषण की जिम्मेवारी दी तथा समाज में प्रथम विवाहित पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए। शिव के पहले यह सामाजिक नियम नहीं था।
इंदु- परंतु काली और गंगा के संबंध में भी लोग अनेक विचित्र कहानियाॅं सुनाते हैं जैसे गंगा को सिर पर रखना? काली को शिव की छाती पर पैर रखे खड्ग और मुंड लिये दर्शाना?
बाबा- काली और गंगा के संबंध में भी अनेक कथायें प्रचलित हैं पर सत्य की पहचान करना चाहिये अतार्किक कल्पनाओं को छोड़ देना चाहिये। शिव की आर्य पत्नी गौरी या पार्वती से एक पुत्र ‘भैरव‘, दूसरी द्रविड़ पत्नी काली से एक पुत्री ‘भैरवी‘ और तीसरी मंगोल पत्नी गंगा से एक पुत्र ‘कार्तिकेय या षडानन‘, हुए। भैरव और भैरवी दोनों ही तंत्र विज्ञान में प्रवीण होकर प्रगति कर रहे थे जबकि कार्तिकेय भौतिक जगत में ही रुचि लेने लगे थे। शिव के द्वारा सिखाई गयी तंत्र साधना की विधि को श्मशान में प्रारंभिक अभ्यास करने हेतु जाने के समय एक बार काली को अपनी पुत्री भैरवी के संबंध में बहुत चिंता होने लगी और वह उसे देखने श्मशान में पहुंची। वहां पर शिव बहुत गंभीर ध्यान में मग्न थे। काली, श्मशान में अंधेरे में चलते हुए रास्ते में शिव से टकरा गयीं। शिव ने पूछा, कस्त्वम्? अर्थात् तुम कौन हो? काली घबराईं, पहले अपना नाम काली का ‘का‘ ही उच्चारित कर पायीं फिर भैरवी उच्चारित करने के प्रयास में बोल गयीं ‘‘का...वै...री‘‘ असम्यहम्।‘‘ अर्थात् मैं कावेरी हूॅं, तब से उनका एक नाम कावेरी हो गया। गंगा को अपने पुत्र की प्रगति की बड़ी चिन्ता थी क्योंकि वह भौतिकवादी होते जा रहे थे। शिव उनकी चिन्ता दूर करने के लिये उन्हें समझाते और इसी कारण उनकी प्रत्येक बात को काली अथवा गौरी की तुलना में अधिक महत्व देते थे, इस पर लोग विनोदवश कहा करते कि शिव ने तो गंगा को अपने सिर पर बैठा रखा है। इन घटनाओं को पुराणकार ने क्रमशः काली को नग्नावस्था में शिव के ऊपर पैर रखे जीभ वाहर निकाले हुये वर्णित किया, और गंगा को नदी के रूप में शिव के जटाओं में से बहते दर्शाया है कितना आश्चर्य है। स्पष्ट है कि पौराणिककाल की काल्पनिक चार हाथों वाली देवी दुर्गा अथवा आठ हाथों वाली कालिका से शिव का कोई संबंध नहीं है।
नन्दू- शिव अपने कार्यकाल में आर्यों, मंगोलियनों और द्रविड़ों में पारस्परिक सामंजस्य स्थापित करने में कितने सफल हुए, क्या आर्यों ने उन्हें मान्यता दी ?
बाबा- जब किसी के व्यक्तित्व से उसका आदर्श झलकने लगता है तो वह देवता के समान पूजनीय हो जाता है। अन्य सभी उसके आचरण के अनुयायी हो जाते हैं। शिव अपने समय के अंतिम कालखंड में देवों के देव महादेव के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। आर्य, अनार्य सभी उनकी भव्यता, सरलता और देवत्व के गुणों से भरपूर व्यक्तित्व के कारण अपने भेदभाव भूल गये और परस्पर सौहार्द से रहने लगे थे। वैदिक देवताओं के साथ आर्य भी शिव को एक देवता की तरह पूज्य मानने लगे और उन्हें वेदों में मान्यता दी गई। शिव अपने कार्यकाल में जनसामान्य के इतने निकट थे कि कोई भी छोटी बड़ी समस्या को हल करने के लिये वे हर समय उनके पास होते थे। यही कारण है कि उस समय उनका कोई बीजमंत्र नहीं था, परंतु वेद में और तंत्र में, प्रत्येक विशेष देवता को उसके वीजमंत्र से ही पूजा जाता है। अतः शिव को वेद में ‘म‘ बीज मंत्र दिया गया और स्पष्ट किया गया कि शिव रूपान्तरण के देवता हैं, ‘म‘ ट्रांस्म्युटेशन अर्थात् रूपान्तरण का बीज मंत्र है। शिव को वेदों में मान्य भले ही किया गया हो पर शिव ने वैदिक कल्ट का पालन कभी नहीं किया, वे हमेशा तांत्रिक कल्ट का ही पालन करते थे और अन्य लोगों को भी उसी अनुसार चलने के निर्देश देते थे।
रवि- वैदिक कल्ट और तान्त्रिक कल्ट में क्या अन्तर है?
बाबा- वैदिक नब्बे प्रतिशत सैद्धान्तिक और दस प्रतिशत व्यावहारिक है जबकि तन्त्र नब्बे प्रतिशत व्यावहारिक और दस प्रतिशत सैद्धान्तिक है।
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रवि- काली के संबंध में आपने बताया परंतु वर्तमान में पार्वती और दुर्गा को एक समान मानने वालों की कमी नहीं है, इस पर आपका क्या मत है?
बाबा- शिव के परिवार से संबंधित अनेक अतार्किक कहानियाॅं जोड़ी जाती रहीं हैं जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। पार्वती को ही लें, इसके शाब्दिक अर्थ को पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में समझा जाता है जबकि क्या एक पहाड़ मानव कन्या को जन्म दे सकता है? नहीं। वास्तव में हिमालयन क्षेत्र में राज्य करने वाले आर्यन राजा दक्ष की पुत्री जिनका नाम गौरी था वही पार्वती अर्थात् ‘‘पर्वत देशीया कन्या‘‘ कहलाती थीं। आर्यों और भारत के मूल निवासियों जिन्हें आर्य लोग प्रायः अनार्य, दानव, असुर, दास, शूद्र आदि कहते थे, के बीच हमेशा झगड़े हुआ करते थे। इसके पहले मैंने तुम लोगों को स्पष्ट किया है कि तत्कालीन भारत के मूल निवासी आस्ट्रिको.मंगोलो.नीग्रोइड नस्ल के थे जिनकी अपनी संस्कृति थी और तंत्र विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ये बहुत उन्नत थे। शिव, भारत के मूल निवासी थे। शिव की प्रतिभा से प्रभावित होकर पार्वती ने उन्हें अपने पति के रूप में पाने की इच्छा की पर पिता को अनार्य से संबंध बनाना मान्य नहीं था। पार्वती ने शिव को पाने के लिये राजमहल त्यागकर जंगल में वनवासी कन्याओं की तरह पत्तों के वस्त्र पहिन कर तपस्या प्रारंभ कर दी। पत्तों को संस्कृत में पर्ण कहते हैं और वनवासिनी कन्यायें शिवरी कहलाती हैं। अतः उनका नाम पर्णशिवरी हो गया। पार्वती की तपस्या सफल होने पर शिव ने उनसे विवाह किया परन्तु पार्वती वही पत्तों के वस्त्र पहना करतीं थीं, बाद में राज्य के सम्मानितों के अनुरोध पर उन्होंने राजसी वस्त्र स्वीकार कर लिये, इसके बाद उनका नाम अपर्णा हो गया।
इंदु- तो क्या शिव और पार्वती के विवाह के बाद आर्यों और अनार्यों की लड़ाइयाॅं बंद हो गई थीं?
बाबा- शिव से पार्वती का विवाह हो जाने के बाद लोगों ने सोचा था कि आर्यों और अनार्यों के संबंध सुधर जावेंगे पर यह संभव नहीं हुआ वरन् राजा दक्ष हमेशा शिव का विरोध करते और अपमान करने का अवसर ढूंडते रहते थे। किसी अवसर पर उन्होंने यज्ञ किया जिसमें उन्होंने शिव को आमंत्रित ही नहीं किया। पार्वती यज्ञ में शिव के बिना अकेले ही जा पहुॅंचीं जहाॅं उन्होंने शिव का अपमान देखकर अपने आपको यज्ञ की अग्नि में जला डाला। इसके बाद से आर्यों और अनार्यों के परस्पर संबंध कुछ सुधर गये। इन गौरी या पार्वती का पौराणिक देवी दुर्गा से कोई संबंध नहीं है। दुर्गा मार्कंडेय पुराण की आठ और दस हाथों वाली काल्पनिक देवी हैं, मात्र 1300 या 1400 वर्ष पुरानी । जबकि पार्वती मानव कन्या हैं दो हाथ वाली और 7000 वर्ष पुरानी। पौराणिक काल में दुर्गा को शिव से जोड़ दिया गया अन्यथा उन्हें मान्यता कैसे मिल पाती।
राजू- परंतु कुछ विद्वान तो दुर्गा को वेदों के द्वारा मान्यता प्राप्त मानते हैं?
बाबा- वेदों में भी दुर्गा के पूजन की कोई विधि वर्णित नहीं है । दुर्गा को वेदों की मान्यता देने के लिये देवीसूक्त की हेमवती उमा का उल्लेख किया जाता है परंतु इनका गौरी , पार्वती या दुर्गा से कोई संबंध नहीं है। इसका कारण है समय का अंतर। लोग गलती से उस संबंध को माने हुये हैं।
नन्दू- एक बार आपने बताया था कि शिव ने ही सबसे पहले विवाह नामक संस्था की संकल्पना दी और उन्होंने तत्कालीन लड़ते रहने वाली समाजों को एकीकरण करने के लिये तीन विवाह किये?
बाबा- हाॅं। शिव की दूसरी अनार्य पत्नी जिनका नाम था कालिका या काली और तीसरी मंगोलियन पत्नी जिनका नाम गंगा था, अवश्य थी। आर्यों के भारत में आने के बाद आर्य, अनार्य या द्रविड़ और मंगोलियन सभ्यता के लोगों में परस्पर होने वाली लड़ाइयों को समाप्त करने के लिये शिव ने तीन विवाह किये। सच्चाई यही है कि विवाह और परिवार नाम की संकल्पना को शिव ने ही मूर्तरूप दिया और पुरुषों को परिवार के पालन पोषण की जिम्मेवारी दी तथा समाज में प्रथम विवाहित पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए। शिव के पहले यह सामाजिक नियम नहीं था।
इंदु- परंतु काली और गंगा के संबंध में भी लोग अनेक विचित्र कहानियाॅं सुनाते हैं जैसे गंगा को सिर पर रखना? काली को शिव की छाती पर पैर रखे खड्ग और मुंड लिये दर्शाना?
बाबा- काली और गंगा के संबंध में भी अनेक कथायें प्रचलित हैं पर सत्य की पहचान करना चाहिये अतार्किक कल्पनाओं को छोड़ देना चाहिये। शिव की आर्य पत्नी गौरी या पार्वती से एक पुत्र ‘भैरव‘, दूसरी द्रविड़ पत्नी काली से एक पुत्री ‘भैरवी‘ और तीसरी मंगोल पत्नी गंगा से एक पुत्र ‘कार्तिकेय या षडानन‘, हुए। भैरव और भैरवी दोनों ही तंत्र विज्ञान में प्रवीण होकर प्रगति कर रहे थे जबकि कार्तिकेय भौतिक जगत में ही रुचि लेने लगे थे। शिव के द्वारा सिखाई गयी तंत्र साधना की विधि को श्मशान में प्रारंभिक अभ्यास करने हेतु जाने के समय एक बार काली को अपनी पुत्री भैरवी के संबंध में बहुत चिंता होने लगी और वह उसे देखने श्मशान में पहुंची। वहां पर शिव बहुत गंभीर ध्यान में मग्न थे। काली, श्मशान में अंधेरे में चलते हुए रास्ते में शिव से टकरा गयीं। शिव ने पूछा, कस्त्वम्? अर्थात् तुम कौन हो? काली घबराईं, पहले अपना नाम काली का ‘का‘ ही उच्चारित कर पायीं फिर भैरवी उच्चारित करने के प्रयास में बोल गयीं ‘‘का...वै...री‘‘ असम्यहम्।‘‘ अर्थात् मैं कावेरी हूॅं, तब से उनका एक नाम कावेरी हो गया। गंगा को अपने पुत्र की प्रगति की बड़ी चिन्ता थी क्योंकि वह भौतिकवादी होते जा रहे थे। शिव उनकी चिन्ता दूर करने के लिये उन्हें समझाते और इसी कारण उनकी प्रत्येक बात को काली अथवा गौरी की तुलना में अधिक महत्व देते थे, इस पर लोग विनोदवश कहा करते कि शिव ने तो गंगा को अपने सिर पर बैठा रखा है। इन घटनाओं को पुराणकार ने क्रमशः काली को नग्नावस्था में शिव के ऊपर पैर रखे जीभ वाहर निकाले हुये वर्णित किया, और गंगा को नदी के रूप में शिव के जटाओं में से बहते दर्शाया है कितना आश्चर्य है। स्पष्ट है कि पौराणिककाल की काल्पनिक चार हाथों वाली देवी दुर्गा अथवा आठ हाथों वाली कालिका से शिव का कोई संबंध नहीं है।
नन्दू- शिव अपने कार्यकाल में आर्यों, मंगोलियनों और द्रविड़ों में पारस्परिक सामंजस्य स्थापित करने में कितने सफल हुए, क्या आर्यों ने उन्हें मान्यता दी ?
बाबा- जब किसी के व्यक्तित्व से उसका आदर्श झलकने लगता है तो वह देवता के समान पूजनीय हो जाता है। अन्य सभी उसके आचरण के अनुयायी हो जाते हैं। शिव अपने समय के अंतिम कालखंड में देवों के देव महादेव के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। आर्य, अनार्य सभी उनकी भव्यता, सरलता और देवत्व के गुणों से भरपूर व्यक्तित्व के कारण अपने भेदभाव भूल गये और परस्पर सौहार्द से रहने लगे थे। वैदिक देवताओं के साथ आर्य भी शिव को एक देवता की तरह पूज्य मानने लगे और उन्हें वेदों में मान्यता दी गई। शिव अपने कार्यकाल में जनसामान्य के इतने निकट थे कि कोई भी छोटी बड़ी समस्या को हल करने के लिये वे हर समय उनके पास होते थे। यही कारण है कि उस समय उनका कोई बीजमंत्र नहीं था, परंतु वेद में और तंत्र में, प्रत्येक विशेष देवता को उसके वीजमंत्र से ही पूजा जाता है। अतः शिव को वेद में ‘म‘ बीज मंत्र दिया गया और स्पष्ट किया गया कि शिव रूपान्तरण के देवता हैं, ‘म‘ ट्रांस्म्युटेशन अर्थात् रूपान्तरण का बीज मंत्र है। शिव को वेदों में मान्य भले ही किया गया हो पर शिव ने वैदिक कल्ट का पालन कभी नहीं किया, वे हमेशा तांत्रिक कल्ट का ही पालन करते थे और अन्य लोगों को भी उसी अनुसार चलने के निर्देश देते थे।
रवि- वैदिक कल्ट और तान्त्रिक कल्ट में क्या अन्तर है?
बाबा- वैदिक नब्बे प्रतिशत सैद्धान्तिक और दस प्रतिशत व्यावहारिक है जबकि तन्त्र नब्बे प्रतिशत व्यावहारिक और दस प्रतिशत सैद्धान्तिक है।
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