Thursday, 4 May 2017

122 यतो धर्मः ततो जयः

122 यतो धर्मः ततो जयः

एक बार किसी राजा ने ऐसे स्थान पर बाजार बनवा दिया जहाॅं  कम लोग ही जाते थे इसलिए दूकानदारों ने कहा ‘‘ महाराज ! हमारा सामान वहाॅं कौन खरीदेगा, यदि सामान न बिका तो हम तो भूखे मर जाऐंगे?‘‘
राजा ने कहा ‘‘ कोई बात नहीं जिस दिन किसी का सामान न बिक पाए तो वह मैं खरीद लिया करूंगा‘‘
एक दिन किसी ने दुर्भाग्य की तस्वीर बनाकर बाजार में बेचना चाही, लेकिन रात हो गई किसी ने उसे न खरीदा। अन्त में वह राजा के पास पहुंचा और उनका वचन याद कराया, उन्होंने तत्काल वह तस्वीर खरीद ली।

राजमहल में दुर्भाग्य की तस्वीर के आते ही उसी रात में एक महिला के रोने की आवाज सुनकर राजा ने उसके पास जाकर पूछा ‘‘ तुम कौन हो? क्यों रो रही हो?‘‘
‘‘ महाराज मैं राजलक्ष्मी हॅूं , यहाॅं अब दुर्भाग्य आकर रहने लगा है इसलिए मैं यहाॅं से जा रही हॅूं‘‘
‘‘ अच्छा ! जैसी तुम्हारी इच्छा‘‘ राजा ने कहा।

जब लक्ष्मी चली गई तो एक एक करके सेनापति, सुख, शान्ति और वैभव भी चलते बने। अन्त में धर्मदेव भी जाने लगे तो राजा पूछा ‘‘आप क्यों जाते हो‘‘
धर्मदेव वोले ‘‘ जब इस राज्य में दुर्भाग्य के कारण सभी चले गए हैं तो मैं भी यहाॅं क्यों रुकूं ?‘‘
‘‘ लेकिन दुर्भाग्य को खरीद कर मैने तो अपने वचन को निभाया, अपने धर्म का पालन किया ‘‘ राजा बोला।
‘‘ हाॅं यह बात तो है, अच्छा मैं रुक जाता हॅूं‘‘ कहते हुए धर्म रुक गया।
धीरे धीरे जो चले गए थे सभी वापस आ गए और सबसे अन्त में लक्ष्मी भी शर्म से लम्बे घूंघट में मुंह छिपाए महल में आ गईं। राजा ने पूछा,
‘‘ अब दुर्भाग्य के साथ कैसे रहोगी?‘‘
‘‘ जहाॅं धर्म है वहाॅं दुर्भाग्य से क्या डरना ‘‘
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