Wednesday, 24 May 2017

128 बहुत कठिन है डगर .. ..

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बहुत कठिन है डगर .. ..
एक परिवार की दादी माॅं मृत्युशैया पर थीं। परिवार के नाती पोते, बेटे बेटियाॅं, बहुएं  सभी लोग उनके चारों ओर एकत्रित हो गए। दादी माॅं उन सबसे यह पूछने में व्यस्त थी कि ‘‘आज क्या पकाया गया है, घर के सभी कमरों को ठीक ढंग से धोया गया है कि नहीं, सभी ने स्नान कर लिया या नहीं ‘‘ आदि।
इसे सुनकर परिवार के सदस्यों ने निवेदन किया कि, ‘‘ माॅं काम की चिन्ता मत करो, सब होता जा रहा है, तुम तो हरि हरि बोलो‘‘ ।
उन्होंने  इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और पूछने लगी, ‘‘ अरे ! गायों को चारा डाला है या नहीं ‘‘ ।
घर के सभी सदस्य चाहते थे कि उनकी मुक्ति हो, इसलिए वे उन्हें बार बार हरि हरि बोलने के लिए कह रहे थे। वे फिर बोले,
‘‘ माॅं ! घर के सभी काम काज सही समय पर उचित ढंग से किये जा रहे हैं तुम्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तुम तो केवल हरि हरि बोलो ।‘‘
दादी ने इसे फिर से अनसुना कर दिया और पूछने लगी, ‘‘ अरे ! कुत्ते को कुछ खिलाया या भूखा ही बैठा है ?‘‘
सदस्यों ने उन्हें हरि हरि बोलने के लिए फिर से प्रार्थना की । यह सुनकर वह झल्लाते हुए बोली,
‘‘  सब लोग यहाॅं से बाहर जाओ ! क्या मैं मर रही हॅूं ? एक ही नाम बार बार कहने की रट लगाए हो, मुझे कठिनाई होती है। ए छोटी बहु ! आॅंगन में जाकर देख कपड़े सूख गए होंगे, उठा ला।  ‘‘
बाहर आकर दादी माॅं के छोटे बेटे ने अपने बड़े भाई से पूछा,
‘‘भैया ! माॅं को यह क्या हो गया है ? हरि हरि बोलने में उन्हें कठिनाई क्यों हो रही है ?‘‘ वह बोले,
‘‘ मन के द्वारा प्रारम्भ से जैसा अभ्यास किया जाता है वह उसी में रमकर सुख पाने लगता है बाद में, इसमें परिवर्तन करना बहुत कठिन होता है।‘‘

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