126 बाबा की क्लास ( संस्कृति और विज्ञान )
इन्दु- कुछ लोगों का मत है कि आधुनिक समाज अनियंत्रित होकर विनाश की ओर जा रहा है, क्या यह विज्ञान की प्रगति के कारण है ?
बाबा- हाॅं, आदर्श परिदृश्य में विज्ञान पर संस्कृति का नियंत्रण होना चाहिए तभी समाज की प्रगति उचित रूपसे हो सकेगी। समाज की चतुर्दिक प्रगति के लिए आवश्यक है कि विज्ञान, संस्कृति के अधीनस्थ कार्य करे।
नन्दू- आपके अनुसार एक सुसंस्कृत व्यक्ति कैसा होता है?
बाबा- वह, जिसकी गतिविधियाॅं एवं समग्र आचरण, तर्कसंगत और विवेकपूर्ण हों। कार्य और व्यवहार में जिसके द्वारा जितनी अधिक बुद्धि और विवेक का उपयोग किया जाता है वह उतना ही अधिक, संस्कृति की विकसित अवस्था को प्रकट करता है।
रवि- जैसे?
बाबा- तम्बाकू और उसके उत्पादों के प्रभावों के तर्कसंगत विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि वे किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद हैं। इसलिए इनका जो भी उपयोग करता है वह असभ्य है क्योंकि उनकी गतिविधियाॅं तर्क और विवेक सम्मत नहीं हैं। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण हैं जैसे अलकोहल और नशीले पदार्थो का सेवन करना।
राजू- संस्कृति का विज्ञान से कोई सम्बंध है या नहीं?
बाबा- विज्ञान के द्वारा ही तम्बाकू , अलकोहल और नशीले पदार्थों का उत्पादन किया जाता है, जो कि मानव की अग्रगति में रोड़ा बनते हैं। अतः इस दृष्टि से विज्ञान, संस्कृति का नाशक हुआ। परन्तु जब विज्ञान को संस्कृति की मुट्ठी में जकड़े रखा जाता है तो उसे इस प्रकार के नुकसान करने का कोई अवसर नहीं मिल पाता। इसलिए विज्ञान और संस्कृति का प्रगाढ़ संबंध है, वे दोनों साथ साथ प्रगति करते हैं। परन्तु जहाॅं विज्ञान की प्रगति संस्कृति से आगे निकल जाती है तब संस्कृति नष्ट होने लगती है।
चन्दू- विज्ञान अन्य किन तरीकों से संस्कृति को विकृत कर रहा है?
बाबा- अनेक प्रकार से। जहाॅं भी विज्ञान का संस्कृति पर अधिक प्रभाव है वहाॅं विज्ञान की प्रगति के नाम पर अनेक समाजविरोधी गतिविधियाॅं चल रही हैं। आज के युग में विज्ञान अपनी ऊंचाइयों पर है तथा अमानवीय गतिविधियों में विज्ञान और तकनीकि का उपयोग करने के लिए अधिक से अधिक धन व्यय किया जा रहा है। चूंकि जीवन के विभिन्न अभिव्यक्तिकरणों में हम जिस परिष्कीकरण की सूक्ष्म भावनाओं का सामना करते हैं उसे संस्कृति कहा जाता है अतः समाज में इन सूक्ष्म भावनाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ; परन्तु विज्ञान इन सबकी उपेक्षा कर रहा है। इन्टरनेट , फिल्में और संचार के अन्य माध्यमों का पोर्न और विज्ञापनों के द्वारा किस प्रकार का दुरुपयोग किया जा रहा है यह सब को ज्ञात है । इससे संस्कृति का ह्रास हो रहा है। विज्ञान के पास मानवीयता से जुड़ी इन मूल समस्याओं को हल करने या नियंत्रण करने का कोई समाधान नहीं है जैसे, भुखमरी, शिशुओं की मृत्युदर, और कोलेरा, ट्यूबरक्युलौसिस, मलेरिया जैसी अनेक बीमारियाॅं । इसके अलावा विज्ञान का उपयोग घातक हथियारों को बनाने में किया जा रहा है जो दूसरों को मारने के लिए ही प्रयुक्त होंगे। युद्ध के संसाधनों पर अनेक प्रकार से शोध करने के लिए अपार धन उपलब्ध कराया जा रहा है। इस तरह विज्ञान को संस्कृति की कीमत पर उच्च स्थान दिया जा रहा है।
राजू- तो क्या ग्रीस और इजिप्ट की सभ्यताओं के नष्ट होने का कारण इस विज्ञान को माना जा सकता है?
बाबा- यह बात सही है कि यदि विज्ञान संस्कृति पर अपना कब्जा कर लेता है तो उसे नष्ट होने से बचाया नहीं जा सकता। इजिप्ट और ग्रीस में भी जब तक विज्ञान की प्रगति वहाॅं की संस्कृति में बाधक नहीं बनी संस्कृति उन्नत होती गई परन्तु जब प्रचुर मात्रा में भौतिक सुखसुविधाएं और उनसे आनन्द पाना बढ़ता गया दोनों देशों की संस्कृति नष्ट हो गई क्योंकि विज्ञान को संस्कृति की तुलना में उच्च स्तर प्राप्त हो गया था। दुर्भाग्य से आज के समाज में हम यही देख रहे हैं, अपमान, पूंजीवाद के तरीके, दुर्व्यवहार , भौतिकवाद और भोग विलास, दुनिया भर में फैल रहे हैं। इस प्रकार विज्ञान का दुरुपयोग करना हमारी सभ्य मानव अभिव्यक्तियों को नष्ट कर रहा है और संस्कृति का घातक बन गया है।
इन्दु- विज्ञान ने संस्कृति का स्थान क्यों छीन लिया?
बाबा- पहला कारण तो वह लोभी लोग हैं जिन्हें इसकी सहायता से अधिक लाभ कमाने की इच्छायें घेरे हुए हैं। एक बार जब संस्कृति या सभ्यता नीचे की ओर जाने लगती है तो वह ऋणात्मक दिशा में तेजी से लुढ़कती जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि विज्ञान ने आदमी को चंद्रमा पर भेजा, इन्टरनेट खोजा इसलिए उसे आगे बढ़ते जाने दो, रोको नहीं। पर क्या यह सही नहीं है कि विज्ञान जो कुछ भी कर रहा है उस पर नैतिक नियंत्रण किसी का नहीं है? लोग विज्ञान की ओर आॅंख मूंदकर चलते जाते हैं और लोभी पूंजीवादी अपने एजेंडा के अनुसार लाभ पाने की दिशा में ही उसका उपयोग करते हैं।
रवि- तो सभ्यता और संस्कृति का मान बनाए रखने के लिए विज्ञान पर किस प्रकार नियंत्रण रखना चाहिए?
बाबा- क्या तुम जानते हो कि विज्ञान क्या है? वह ज्ञान जो हमें पदार्थों का उचित उपयोग करना सिखाता है उसे विज्ञान कहते हैं। जहाॅं संस्कृति का विकास बिलकुल नगण्य हो और विज्ञान धीरे धीरे प्रगति करता जाता हो तब विज्ञान मानवता के लिए कोई अच्छा काम करने के स्थान पर विनाश का कारण ही बनता है। यद्यपि विज्ञान की पढ़ाई और अभ्यास करना अपरिहार्य है परन्तु विज्ञान को संस्कृति की तुलना में उच्च स्थान नहीें देना चाहिए। विज्ञान क्या करे और क्या न करे इस पर स्पष्ट नियंत्रण होना चाहिए, विज्ञान को मानव जीवन नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जाना चाहिए चाहे मेगाटन बमों के बेकार उपयोग करने से हो या संस्कृति को विकृत कर छद्म संस्कृति को फैलाने से। इसके अलावा विज्ञान का उपयोग मनुष्यों को निम्न स्तर की वृत्तियों जैसे शराब, पोर्नोग्राफी, जुआ आदि की ओर ले जाने में नहीं करना चाहिए। आज की यह चरम आवश्यकता है। विज्ञान के तरीकों को नियंत्रित करने के लिए प्रबल नैतिक बल होना चाहिए। एक बार विज्ञान और संस्कृति में संतुलन स्थापित हो गया तो अनेक अच्छे परिणाम आने लगेंगे और समाज में सद्भावना की स्थापना होगी। इन दोनों के बीच सुसंतुलन स्थापित किए बिना अन्तर्बोध में प्रगति हो पाना असंभव है। विज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि वह मनुष्य को अपने लक्ष्य तक जाने में सहायक है परन्तु वह एक अन्धा बल है जो अनियंत्रित होने पर मानव प्रगति में बाधक हो जाता है।
राजू- मैंने पढ़ा है कि धरती का प्राकृतिक इकोसिस्टम और पुनरुत्पादन क्षमता खतरनाक ढंग से घटती जा रही है । जंगल प्रतिदिन 375 वर्ग किलोमीटर की दर से घट रहे हैं और संसार के 80 प्रतिशत मूल वन उजड़ चुके हैं। अनेक जीवधारी तेज गति से समाप्त होते जा रहे हैं, अगले तीस वर्ष में आज की तुलना में पाॅंचवें हिस्से के बराबर जीव अपना अस्तित्व खो चुकेंगे। यह सब क्यों हो रहा है?
बाबा- यह विज्ञान पर किसी नैतिक बल के नियंत्रण न होने के कारण हो रहा है। स्वार्थी पूंजीवादी सामाजिक तत्व इस अंधेबल का अपने लाभ के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं।
चन्दू- विज्ञान पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक नैतिक बल किनके पास है?
बाबा- वे लोग जो यम और नियम की साधना करते हुए विज्ञान को आध्यात्म सम्मत और आध्यात्म को विज्ञान सम्मत बनाना चाहते हैं आवश्यक नैतिक बल जुटा कर यह कार्य कर सकते हैं अन्य कोई नहीं।
इन्दु- कुछ लोगों का मत है कि आधुनिक समाज अनियंत्रित होकर विनाश की ओर जा रहा है, क्या यह विज्ञान की प्रगति के कारण है ?
बाबा- हाॅं, आदर्श परिदृश्य में विज्ञान पर संस्कृति का नियंत्रण होना चाहिए तभी समाज की प्रगति उचित रूपसे हो सकेगी। समाज की चतुर्दिक प्रगति के लिए आवश्यक है कि विज्ञान, संस्कृति के अधीनस्थ कार्य करे।
नन्दू- आपके अनुसार एक सुसंस्कृत व्यक्ति कैसा होता है?
बाबा- वह, जिसकी गतिविधियाॅं एवं समग्र आचरण, तर्कसंगत और विवेकपूर्ण हों। कार्य और व्यवहार में जिसके द्वारा जितनी अधिक बुद्धि और विवेक का उपयोग किया जाता है वह उतना ही अधिक, संस्कृति की विकसित अवस्था को प्रकट करता है।
रवि- जैसे?
बाबा- तम्बाकू और उसके उत्पादों के प्रभावों के तर्कसंगत विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि वे किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद हैं। इसलिए इनका जो भी उपयोग करता है वह असभ्य है क्योंकि उनकी गतिविधियाॅं तर्क और विवेक सम्मत नहीं हैं। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण हैं जैसे अलकोहल और नशीले पदार्थो का सेवन करना।
राजू- संस्कृति का विज्ञान से कोई सम्बंध है या नहीं?
बाबा- विज्ञान के द्वारा ही तम्बाकू , अलकोहल और नशीले पदार्थों का उत्पादन किया जाता है, जो कि मानव की अग्रगति में रोड़ा बनते हैं। अतः इस दृष्टि से विज्ञान, संस्कृति का नाशक हुआ। परन्तु जब विज्ञान को संस्कृति की मुट्ठी में जकड़े रखा जाता है तो उसे इस प्रकार के नुकसान करने का कोई अवसर नहीं मिल पाता। इसलिए विज्ञान और संस्कृति का प्रगाढ़ संबंध है, वे दोनों साथ साथ प्रगति करते हैं। परन्तु जहाॅं विज्ञान की प्रगति संस्कृति से आगे निकल जाती है तब संस्कृति नष्ट होने लगती है।
चन्दू- विज्ञान अन्य किन तरीकों से संस्कृति को विकृत कर रहा है?
बाबा- अनेक प्रकार से। जहाॅं भी विज्ञान का संस्कृति पर अधिक प्रभाव है वहाॅं विज्ञान की प्रगति के नाम पर अनेक समाजविरोधी गतिविधियाॅं चल रही हैं। आज के युग में विज्ञान अपनी ऊंचाइयों पर है तथा अमानवीय गतिविधियों में विज्ञान और तकनीकि का उपयोग करने के लिए अधिक से अधिक धन व्यय किया जा रहा है। चूंकि जीवन के विभिन्न अभिव्यक्तिकरणों में हम जिस परिष्कीकरण की सूक्ष्म भावनाओं का सामना करते हैं उसे संस्कृति कहा जाता है अतः समाज में इन सूक्ष्म भावनाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ; परन्तु विज्ञान इन सबकी उपेक्षा कर रहा है। इन्टरनेट , फिल्में और संचार के अन्य माध्यमों का पोर्न और विज्ञापनों के द्वारा किस प्रकार का दुरुपयोग किया जा रहा है यह सब को ज्ञात है । इससे संस्कृति का ह्रास हो रहा है। विज्ञान के पास मानवीयता से जुड़ी इन मूल समस्याओं को हल करने या नियंत्रण करने का कोई समाधान नहीं है जैसे, भुखमरी, शिशुओं की मृत्युदर, और कोलेरा, ट्यूबरक्युलौसिस, मलेरिया जैसी अनेक बीमारियाॅं । इसके अलावा विज्ञान का उपयोग घातक हथियारों को बनाने में किया जा रहा है जो दूसरों को मारने के लिए ही प्रयुक्त होंगे। युद्ध के संसाधनों पर अनेक प्रकार से शोध करने के लिए अपार धन उपलब्ध कराया जा रहा है। इस तरह विज्ञान को संस्कृति की कीमत पर उच्च स्थान दिया जा रहा है।
राजू- तो क्या ग्रीस और इजिप्ट की सभ्यताओं के नष्ट होने का कारण इस विज्ञान को माना जा सकता है?
बाबा- यह बात सही है कि यदि विज्ञान संस्कृति पर अपना कब्जा कर लेता है तो उसे नष्ट होने से बचाया नहीं जा सकता। इजिप्ट और ग्रीस में भी जब तक विज्ञान की प्रगति वहाॅं की संस्कृति में बाधक नहीं बनी संस्कृति उन्नत होती गई परन्तु जब प्रचुर मात्रा में भौतिक सुखसुविधाएं और उनसे आनन्द पाना बढ़ता गया दोनों देशों की संस्कृति नष्ट हो गई क्योंकि विज्ञान को संस्कृति की तुलना में उच्च स्तर प्राप्त हो गया था। दुर्भाग्य से आज के समाज में हम यही देख रहे हैं, अपमान, पूंजीवाद के तरीके, दुर्व्यवहार , भौतिकवाद और भोग विलास, दुनिया भर में फैल रहे हैं। इस प्रकार विज्ञान का दुरुपयोग करना हमारी सभ्य मानव अभिव्यक्तियों को नष्ट कर रहा है और संस्कृति का घातक बन गया है।
इन्दु- विज्ञान ने संस्कृति का स्थान क्यों छीन लिया?
बाबा- पहला कारण तो वह लोभी लोग हैं जिन्हें इसकी सहायता से अधिक लाभ कमाने की इच्छायें घेरे हुए हैं। एक बार जब संस्कृति या सभ्यता नीचे की ओर जाने लगती है तो वह ऋणात्मक दिशा में तेजी से लुढ़कती जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि विज्ञान ने आदमी को चंद्रमा पर भेजा, इन्टरनेट खोजा इसलिए उसे आगे बढ़ते जाने दो, रोको नहीं। पर क्या यह सही नहीं है कि विज्ञान जो कुछ भी कर रहा है उस पर नैतिक नियंत्रण किसी का नहीं है? लोग विज्ञान की ओर आॅंख मूंदकर चलते जाते हैं और लोभी पूंजीवादी अपने एजेंडा के अनुसार लाभ पाने की दिशा में ही उसका उपयोग करते हैं।
रवि- तो सभ्यता और संस्कृति का मान बनाए रखने के लिए विज्ञान पर किस प्रकार नियंत्रण रखना चाहिए?
बाबा- क्या तुम जानते हो कि विज्ञान क्या है? वह ज्ञान जो हमें पदार्थों का उचित उपयोग करना सिखाता है उसे विज्ञान कहते हैं। जहाॅं संस्कृति का विकास बिलकुल नगण्य हो और विज्ञान धीरे धीरे प्रगति करता जाता हो तब विज्ञान मानवता के लिए कोई अच्छा काम करने के स्थान पर विनाश का कारण ही बनता है। यद्यपि विज्ञान की पढ़ाई और अभ्यास करना अपरिहार्य है परन्तु विज्ञान को संस्कृति की तुलना में उच्च स्थान नहीें देना चाहिए। विज्ञान क्या करे और क्या न करे इस पर स्पष्ट नियंत्रण होना चाहिए, विज्ञान को मानव जीवन नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जाना चाहिए चाहे मेगाटन बमों के बेकार उपयोग करने से हो या संस्कृति को विकृत कर छद्म संस्कृति को फैलाने से। इसके अलावा विज्ञान का उपयोग मनुष्यों को निम्न स्तर की वृत्तियों जैसे शराब, पोर्नोग्राफी, जुआ आदि की ओर ले जाने में नहीं करना चाहिए। आज की यह चरम आवश्यकता है। विज्ञान के तरीकों को नियंत्रित करने के लिए प्रबल नैतिक बल होना चाहिए। एक बार विज्ञान और संस्कृति में संतुलन स्थापित हो गया तो अनेक अच्छे परिणाम आने लगेंगे और समाज में सद्भावना की स्थापना होगी। इन दोनों के बीच सुसंतुलन स्थापित किए बिना अन्तर्बोध में प्रगति हो पाना असंभव है। विज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि वह मनुष्य को अपने लक्ष्य तक जाने में सहायक है परन्तु वह एक अन्धा बल है जो अनियंत्रित होने पर मानव प्रगति में बाधक हो जाता है।
राजू- मैंने पढ़ा है कि धरती का प्राकृतिक इकोसिस्टम और पुनरुत्पादन क्षमता खतरनाक ढंग से घटती जा रही है । जंगल प्रतिदिन 375 वर्ग किलोमीटर की दर से घट रहे हैं और संसार के 80 प्रतिशत मूल वन उजड़ चुके हैं। अनेक जीवधारी तेज गति से समाप्त होते जा रहे हैं, अगले तीस वर्ष में आज की तुलना में पाॅंचवें हिस्से के बराबर जीव अपना अस्तित्व खो चुकेंगे। यह सब क्यों हो रहा है?
बाबा- यह विज्ञान पर किसी नैतिक बल के नियंत्रण न होने के कारण हो रहा है। स्वार्थी पूंजीवादी सामाजिक तत्व इस अंधेबल का अपने लाभ के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं।
चन्दू- विज्ञान पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक नैतिक बल किनके पास है?
बाबा- वे लोग जो यम और नियम की साधना करते हुए विज्ञान को आध्यात्म सम्मत और आध्यात्म को विज्ञान सम्मत बनाना चाहते हैं आवश्यक नैतिक बल जुटा कर यह कार्य कर सकते हैं अन्य कोई नहीं।
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