Thursday, 29 June 2017

134 वैराग्य

 बहुत ही घने जंगल में पहॅुंचकर मंत्री ने रथ रोक दिया और म्यान से तलवार निकालकर बोला,
 ‘‘ वत्स ! मरने के लिए तैयार हो जाओ, मुझे राजाज्ञा का पालन करना है ‘‘
बालक को आश्चर्य तो हुआ परन्तु सोचते हुए कि राजाराम को वनवास , राजाबलि का बंधन,  पान्डुपुत्रों का वनवास, कृष्ण के वंशजों की मृत्यु , यह सभी तो कालवश हुई है इसलिए बोला,
‘‘ मंत्री ! यदि राजाज्ञा यही है तो आप उसका पालन कीजिए ‘‘

मंत्री ने बालक से पूछा,
‘‘ लेकिन वह राजा ही नहीं तुम्हारे चाचा भी हैं, अतः यदि मरने के पूर्व उनसे कुछ कहना चाहते हो तो बताओ मैं अवश्य ही उन्हें वैसा कह दूंगा‘‘
बालक ने अपने अंगूठे के खून से भोजपत्र पर लिखा, और मंत्री के हाथ में देते हुए अपनी गर्दन उनके सामने झुकाकर कहा
‘‘ राजाज्ञा का पालन करो मंत्री !‘‘

मंत्री  ने पत्र पढ़कर विचार बदला। उसने बालक को ले जाकर अपने महल में छिपा दिया । बकरे की आॅंखो को सबूत के तौर पर राजा को दिखाते हुए मंत्री ने कहा
‘‘ राजन ! आदेश का पालन हो चुका ‘‘

राजा ने पूछा ‘‘ क्यों मंत्री ! मरने से पहले उसने कुछ कहा या नहीं ?‘‘
मंत्री ने वह खून से लिखा पत्र दिखाया। पत्र में लिखा था ‘‘ सतयुग के अलंकार मान्धाता, दसमुख रावण का अन्त करनेवाले राम, और युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी सम्राट भी धरती पर आए और चले गए, परन्तु यह धरती किसी के साथ नहीं गई। लगता है मुंज! कि यह तुम्हारे साथ अवश्य जाएगी। ‘‘
 पढ़ते ही राजा के होश उड़ गए, वे जोर से रोने लगे, और मंत्री से कहने लगे ‘‘ मुझे मेरा भोज चाहिए, मुझे मेरा भोज वापस चाहिए ।‘‘
मुंज के पर्याप्त विलाप कर चुकने के बाद मंत्री बोला ,

‘‘ राजन ! मैं जानता था कि भोज साधारण बालक नहीं है, वह मेरे घर पर सुरक्षित है‘‘

अगले ही क्षण मुंज, बालक भोज का राज्याभिषेक करते हुए बोले ‘‘ भोज ! आज तुमने मुझे इस मुकुट के भार से ही नहीं अज्ञान के बोझ से भी मुक्त कर दिया‘‘  और वन की ओर प्रस्थान कर गए  ।


No comments:

Post a Comment