173 पढ़े लिखे लोग भ्रष्टाचार का विरोध क्यों नहीं करते?
कुछ लोगों का मानना है कि अविकसित देशों में अशिक्षा के कारण लोग अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते इसलिए वे बुराई को सहते रहते हैं और भ्रष्टाचार की समस्या बढ़ती जाती है। पर क्या यह सही है? इन अविकसित देशों के पढ़े लिखे लोग भी विभिन्न राजनैतिक पार्टियों को विश्वसनीयता से समर्थन देते पाए जाते हैं जबकि वे जनसामान्य को अपना नेतृत्व देकर अनीति के विरुद्ध एकत्रित कर सकते हैं। भले ही वे पूरे समाज को प्रेरित न कर पाएं परन्तु कुछ समस्याओं का तो अवश्य ही समाधान कर सकते हैं । वे यह क्यों नहीं करते ? कारण सरल है। समाज के उन्नत स्तर का एक बड़ा घटक भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है इसलिए वे उनके सामने यह साहस ही नहीं जुटा पाते कि उनके विरुद्ध आवाज उठाएं, अनैतिकता को रोकें और समाज के हर स्तर पर सक्रिय भ्रष्टाचारियों में सुधार लाने का प्रयास करें। देखा गया है कि लिपिक, शिक्षक, इंजीनियर, सरकारी अधिकारी और व्यवसायी जो कि समाज में तथाकथित पढ़े लिखे माने जाते हैं, अधिकांश अनैतिक कामों और अपने अपने कर्तव्यक्षेत्रों में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं। उनका कमजोर मन परोक्षतः अन्याय की आलोचना करता है परन्तु आमना सामना करने से डरता है। चोर लोग अपने चोरों के समूह में चोरों की आलोचना कर सकते हैं परन्तु वे ईमानदार लोगों के समूह में अपना कोई सुझाव नहीं दे सकते क्योंकि ऐसा करने में उनके ओठ थरथराएंगे, उनका हृदय धड़कने लगेगा। अविकसित देशों के उच्च स्तरीय समाज में भी पढ़े लिखे भ्रष्टाचारियों की दशा भी ऐसी ही है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से तो स्थिति और भी जटिल हो गई है। इस प्रकार के लोगों के आचरण में परिवर्तन लाकर ईमानदार बनाना होगा अन्यथा समाज की कोई भी बुराई दूर नहीं होगी और न ही कोई समस्या हल होगी। इसलिए यह आशा करना कि केवल सरकर ही इन बुराइयों को दूर करने का कोई जादू कर सकती है, पागलपन ही कहा जाएगा ।
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