मानव जीवन का प्रधान पथ ‘‘ईश्वर’’
विश्व के सभी दर्शनों, सभी सिद्धान्तों और व्यावहारिक पद्धतियों में ‘‘ईश्वर’’ का पथ ही मान्यता प्राप्त है। इस पर चलने के लिए मनुष्य की चार प्रकार की आन्तरिक इच्छाएं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष होती हैं। इसलिए आध्यात्मिक चाहत, मानव मन की मौलिक उत्चेतना है।
मानव का मन, उत्चेतना(urge) उत्वृत्ति(passion) वृत्ति(propensity) और भावप्रवणता(sentiment) इन चार प्रकार के तथ्यों/भावनाओं से मार्गदर्शित होता है। मानलो किसी व्यक्ति ने अपने मित्र से कहा कि वह कलकत्ता जाना चाहता है और उसका मित्र उसे अनेक आपत्तियाॅं बता कर रोकता है फिर भी वह उसकी बात न मानकर कलकत्ता चला जाता है तो इसे उस व्यक्ति की उत्चेतना(urge) कहते हैं। अब, यदि वह व्यक्ति अपने मित्र के रोके जाने पर उसे धमकी देता है तो इसे उसकी उत्वृत्ति(passion) कहेंगे। यदि वह व्यक्ति अपने मित्र से कलकत्ता उसके साथ चलने के लिए आग्रह करता है और कहता है कि वहाॅं जाकर ही उसकी अनेक आशाओं और इच्छाओं की पूर्ति सम्भव है तो यह उसकी वृत्ति(propensity) कहलाएगी; परन्तु यदि मित्र उस व्यक्ति को समझाता है कि उस महानगर में बड़ी मंहगाई है, रहने के लिए स्थान मिलना कठिन है, आर्द्रता रहने से तुम्हारा स्वास्थ्य खराब हो सकता है आदि आदि तर्क सुनने के बाद भी वह कलकत्ता चला जाता है तो यह कहलाएगी उस व्यक्ति की भावप्रवणता(sentiment)।
मानव समाज के विभिन्न समूहों का अपना अपना मनोविज्ञान होता है परन्तु किसी प्रकार के सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त को मानव मनोविज्ञान के मूल तत्वों के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। अभी तक विश्व में जितने भी सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त प्रचलित हैं वे मानव मनोविज्ञान के इन मौलिक तत्वों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं अतः वे असफल हो रहे हैं और समाज कष्ट भोग रहा है।
विश्व के सभी दर्शनों, सभी सिद्धान्तों और व्यावहारिक पद्धतियों में ‘‘ईश्वर’’ का पथ ही मान्यता प्राप्त है। इस पर चलने के लिए मनुष्य की चार प्रकार की आन्तरिक इच्छाएं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष होती हैं। इसलिए आध्यात्मिक चाहत, मानव मन की मौलिक उत्चेतना है।
मानव का मन, उत्चेतना(urge) उत्वृत्ति(passion) वृत्ति(propensity) और भावप्रवणता(sentiment) इन चार प्रकार के तथ्यों/भावनाओं से मार्गदर्शित होता है। मानलो किसी व्यक्ति ने अपने मित्र से कहा कि वह कलकत्ता जाना चाहता है और उसका मित्र उसे अनेक आपत्तियाॅं बता कर रोकता है फिर भी वह उसकी बात न मानकर कलकत्ता चला जाता है तो इसे उस व्यक्ति की उत्चेतना(urge) कहते हैं। अब, यदि वह व्यक्ति अपने मित्र के रोके जाने पर उसे धमकी देता है तो इसे उसकी उत्वृत्ति(passion) कहेंगे। यदि वह व्यक्ति अपने मित्र से कलकत्ता उसके साथ चलने के लिए आग्रह करता है और कहता है कि वहाॅं जाकर ही उसकी अनेक आशाओं और इच्छाओं की पूर्ति सम्भव है तो यह उसकी वृत्ति(propensity) कहलाएगी; परन्तु यदि मित्र उस व्यक्ति को समझाता है कि उस महानगर में बड़ी मंहगाई है, रहने के लिए स्थान मिलना कठिन है, आर्द्रता रहने से तुम्हारा स्वास्थ्य खराब हो सकता है आदि आदि तर्क सुनने के बाद भी वह कलकत्ता चला जाता है तो यह कहलाएगी उस व्यक्ति की भावप्रवणता(sentiment)।
मानव समाज के विभिन्न समूहों का अपना अपना मनोविज्ञान होता है परन्तु किसी प्रकार के सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त को मानव मनोविज्ञान के मूल तत्वों के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। अभी तक विश्व में जितने भी सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त प्रचलित हैं वे मानव मनोविज्ञान के इन मौलिक तत्वों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं अतः वे असफल हो रहे हैं और समाज कष्ट भोग रहा है।
No comments:
Post a Comment