कोरोना गुरु (2)
‘प्रगतिशील उपयोगी तत्व’ (प्रउत) नामक सिद्धान्त कहता है कि धरती की समस्त सम्पदा पर उस पर निवास करने वालों का सामूहिक अधिकार है। उसे किसी देश या कुछ देशों द्वारा अपने पास केन्द्रित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। इसे विकेद्रीकृत किया जाकर जनसामान्य को भागीदार बनाया जाना चाहिए। बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना कर धन बटोरने की अंधी होड़ में तेज भाग रहे देशों द्वारा लघु उद्योग स्थापित कर अधिसंख्य जनसामान्य को सहभागी बनाए जाने पर न केवल सभी को रोजगार मिल सकेगा और पढ़े लिखे बेरोजगारों की बढ़ती भीड़ को कम किया जा सकेगा प्रत्युत विश्व अर्थव्यवस्था में संतुलन लाया जाकर परस्पर बढ़ रही ईर्ष्या को कम किया जा सकेगा । घातक हथियारों का उत्पादन कर युद्धोन्माद से दहाड़ते देशों पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
हमारी भोगवादी स्वार्थमय गतिविधियों ने संसार की भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थितियों में असंतुलन बनाया है जिससे कराहती मानवता और डगमगाई वैश्विक ‘प्रमा’ को यथा स्थान पर स्थापित करने के लिए प्रकृति स्वयं अनेक उपाय कर रही है जिनमें से एक है वर्तमान ‘‘कोरोना’’ संकट। उसने इसे लाकर विश्व के सभी देशों में धन को बटोरने के लिए हो रही अंधी दौड़ को रोक दिया है। अब जनसामान्य सहित सभी देश, चौबीसों घंटे दौड़ते रहने वाला अपना अपना काम धंधा रोक कर घरों में कैद होने को विवश हैं। ‘कोरोना’ के माध्यम से प्रकृति हमें यही शिक्षा दे रही है कि अब भी समय है! अपने आप में सुधार लाइए, स्वच्छ, संतुलित, सात्विक जीवन पद्धति को अपनाइए, किसी को भी उसके मौलिक अधिकारों से वंचित न कीजिए, स्वयं प्रकृति के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ने और दूसरों को भी प्रेरित करने से स्थानीय संतुलित लघु ’प्रमात्रिकोण’ बनेंगे जो अंततः वैश्विक ‘प्रमात्रिकोण’ को स्थापित कर सकेंगे। प्रकृति सुझाव दे रही है कि इस ‘‘कोरोना’’ से बचने के लिए इन उपायों को अपनाते हुए उससे और आपस में लगातार दूरी बनाए रखी जाना चाहिए नहीं तो फिर इस धरती पर केवल उसका ही साम्राज्य रहेगा।
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