Wednesday, 22 April 2020

309 कहानी गयासुर की ।

कहानी गयासुर की ।
पौराणिक कहानियों के लेखक की काल्पनिक उड़ानें जितनी अधिक आश्चर्यजनक हैं उतनी ही अधिक शैक्षिक मूल्य की धनी भी हैं। बस, हमें पात्रों और उनसे जुड़ी घटनाओं को तर्क विज्ञान और विवेक के आधार पर जांच कर उनके पीछे छिपा लेखक का संदेश पकड़ने का प्रयास करना चाहिए। जैसे, भारतीय दर्शन का अमर सिद्धान्त कि, ‘‘स्वयं को मोक्ष मार्ग पर ले जाते हुए जगत का कल्याण करना’’ यह समझाने के लिए एक कहानी है गयासुर की।
इसमें बताया गया है कि गयासुर के पिता त्रिपुरासुर,अपने इष्टदेव विष्णु के परम भक्त थे परन्तु कुछ शिव भक्तों को यह अच्छा नहीं लगता था अतः उन्होंने उन पर विष्णु के स्थान पर शिव की भक्ति करने का दबाव बनाया पर जब वह नहीं माने तो शिव भक्तों ने उन्हें मार डाला।
दुखित गयासुर ने मन लगाकर विष्णु की उपासना से उन्हें प्रसन्न कर लिया और युद्ध में किसी भी मानव, दानव या देवता से कभी पराजित न होने का वरदान पा लिया।
वरदान पाकर, गयासुर ने दसों दिशाओं में जाकर सभी दिग्गजों को पराजित कर दिया और अंत में उसने विष्णु को भी युद्ध के लिए ललकारा। विष्णु भी पराजित होकर गयासुर द्वारा एक पेड़ से बाॅंध दिए गए। भयभीत होकर इन्द्र देवता अपने गुरु वृहस्पति के पास आकर कुछ उपाय बताने के लिए गिड़गिड़ाए। वृहस्पति, इंद्र के साथ विष्णु के पास आए और बोले, आपके भक्त ने सब ओर हाहाकार मचा रखा है, देवता भी प्राण बचाने इधर उधर भाग रहे हैं, सबको बचाइए, आपने यह कैसा विचित्र वर दे दिया? विष्णु बोले, आप देख रहे हैं, मैं तो भक्त के प्रेम में बंधा हॅूं विवश हॅू ; मुझे तो कोई उपाय नहीं सूझता। वृहस्पति ने समझाया कि तर्क और विवेक का उपयोग करो, आखिर तुम्हारा भक्त है, उसे समझ में आ जाएगा।
इसके तत्काल बाद गयासुर विष्णु की पूजा करने आया। विष्णु ने पूछा गयासुर यह बताओ कि युद्ध में कौन जीता तुम या मैं? गयासुर बोला प्रभु! आप हारे मैं जीता। विष्णु बोले, अच्छा मैं तुम्हारी जीत और अपनी हार स्वीकारता हॅूं , अब तुम मुझे वरदान दोगे कि नहीं?
गयासुर बोला क्यों नहीं? आपके लिए तो मेरी जान हाजिर है, बोलिए प्रभो! क्या चाहते हैं आप? विष्णु ने कहा गयासुर! ‘तू पत्थर का हो जा’। वह बोला, ठीक है, पर मेरी तीन शर्तें आपको स्वीकार करना होंगी। विष्णु ने कहा बोलो कौन सी शर्तें, वह बोला पहली शर्त तो यह है प्रभो कि आप सदा मेरे हृदय में रहेंगे। विष्णु बोले एवमस्तु । इसके साथ ही गयासुर के पैर पत्थर के हो गए। विष्णु बोले दूसरी शर्त क्या है गयासुर? वह बोला प्रभो! जो भी शुद्ध हृदय से तुम्हारी अनन्य भक्ति करेगा उसे आप मोक्ष दे देंगे। विष्णु ने कहा एवमस्तु। अब तक गयासुर कंधों तक पत्थर का हो गया। विष्णु बोले गयासुर! जल्दी तीसरी शर्त बोलो नहीं तो फिर पूरे पत्थर के हो जाओगे कुछ नहीं बोल पाओगे। वह बोला प्रभो! तीसरी शर्त यह है कि यदि आपने अपने भक्तों को मोक्ष नहीं दिया तो यह पत्थर का गयासुर फिर अपने मौलिक रूप में प्रकट हो जाएगा। अब विष्णु एवमस्तु न बोलते तो और कर भी क्या सकते थे।
यह तो हुआ कहानी का सारांश। इसके पात्र और घटनाएं सभी कथाकार की कल्पना है पर हमें इसमें, इससे मिलने वाली शिक्षा को तलाशना चाहिए। सावधानी पूर्वक परीक्षण करने पर इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि -
1. किसी व्यक्ति विशेष का इष्ट/ इष्टमंत्र केवल एक ही होता है क्योंकि अलग अलग इष्ट होने पर मन अलग अलग दिशाओं में भटकने के लिए विवश रहेगा और किसी भी इष्ट/ लक्ष्य को नहीं पा सकेगा।
2. अपने इष्ट के प्रति शुद्धान्तःकरण और निष्कामना पूर्वक सम्पूर्ण समर्पण कर देने से ही लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। कामनापूर्ण भक्ति, भौतिक वस्तुयें/ शक्तियाॅं दे भी सकती है नहीं भी दे सकती है पर वह मोक्ष नहीं दे सकती।
3. किसी अन्य व्यक्ति के कहने, दबाव डालनेे या अपने इष्ट से अन्य का इष्ट श्रेष्ठ प्रतीत होने पर भी किसी भी हालत में उसे बदलना नहीं चाहिए।
4. सच्चा भक्त न केवल अपना उद्धार करता है वरन् सम्पूर्ण समाज के हित का कार्य कर जाता है।

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