Saturday, 25 April 2020

310 डा जॉन्सन

डा जॉन्सन
अमेरिका निवासी डॉ जॉन्सन भारतीय दर्शन से इस प्रकार प्रभावित थे कि उनसे मिलने आने वाले हर व्यक्ति से वे आध्यात्म की चर्चा अवश्य किया करते थे। सभी लोग उनकी सहिष्णुता की तारीफ किया करते थे । उनकी धर्मचर्चा सुन कर एक दिन एक व्यक्ति रात भर यह सोचता रहा कि डाॅ. जॉन्सन का यह कहना कहाँ तक संभव हो सकता है कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में अधिकाँशतः ईश्वर का ही चिंतन करना चाहिए।
उसने हिसाब लगाया, पूरे जीवन में मनुष्य की आधी जिंदगी तो सोने में निकल जाती है, शेष आधी जिंदगी में से बालकपन के दस साल खेलकूद में ही चले जाते हैं, इसके आगे के दस से पंद्रह साल पढ़ने लिखने और नौकरी ढूँड़ने में लग जाते हैं, जैसे तैसे नौकरी मिलती है तो उसके अनुशासन में रहना पड़ता है और साथ ही घर गृहस्थी की आवश्यकताओं की पूर्ती करना , बालबच्चों की देखरेख करना , बीमारियाँ , लड़ाई झगडे़ और जाने क्या क्या प्रपँचों से जूझने के लिए ही समय कम पड़ता है फिर किस प्रकार और कब ईश्वर का चिंतन किया जा सकता है ? असंभव।
अगले दिन वह डॉ जॉनसन के पास जा कर चिल्लाने लगा , ‘‘अरे मैं बर्बाद हो गया ! लुट गया ! अब मेरा क्या होगा ? ’’
डॉ जॉनसन ने घबरा कर पूँछा, ‘‘क्या हो गया ? क्यों चिल्ला रहे हो ? क्या तकलीफ है ?’’
उसने रोते हुए अपनी उपरोक्त गणना सुना दी और पूंछा, क्या करूं ?
यह सुन कर डॉ जॉन्सन रोने लगे और उसी की तरह चिल्लाने लगे , ‘‘मैं बर्बाद हो गया, लुट गया, मेरा क्या होगा ?’’
अब वह आदमी बोला , ‘‘डॉ साहब आपको क्या हुआ ?’’
वे बोले , ‘‘अरे! इस धरती के तल पर 73 पर्सेंट भाग पर पानी भरा है , बाकी 27 पर्सेंट भाग पर बड़े बड़े जँगल, मरुस्थल, नदियाँ और बर्फ हैं , इसके बाद बचने वाले भूभाग पर लन्दन, टोक्यो , जैसे महानगर हैं , अब बताओ खेती कहाँ की जाये जिससे हमें भोजन मिले ? लगता है भूखे ही मरना पडेगा, विश्व की जनसँख्या गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती जा रही है, ओह ! बर्बाद हो गया।’’
वह आदमी बोला, ‘‘ अरे ! यह तो ठीक है , पर हम सभी को अन्न तो मिलता ही है, सभी भोजन करते ही हैं , है कि नहीं?’’
डॉ जॉन्सन कहा, ‘‘अरे! वही तो मैं कह रहा हूँ , सब कुछ होते हुए भी ईश्वर चिंतन के लिए भी इसी प्रकार समय मिल ही सकता है अगर प्रयास किया जाये। ईश्वर चिंतन लिए समय न मिलने की बात करना केवल बहाना बनाना है, इससे बचना चाहिए। सिगरेट पीने के लिए समय कैसे मिल जाता है?’’
वह आदमी निरुत्तर हो गया।

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