Friday 21 January 2022

370 राक्षस कुलगौरव महावीर घटोत्कच और बर्बरीक

 

सामान्य अवधारणा है कि रासक्ष लंबे दातों और नाखूनों वाले भयानक आकृति के और सबको अकारण ही कष्ट पहुंचाने वाले होते हैं। परन्तु यह गलत है, वे भी हमारी तरह सामान्य व्यक्ति थे, शिव के उपासक और तंत्र के क्षेत्र में नये अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक ही  थे। परन्तु उनकी शक्तियों और कार्यों से देश का एक वर्ग सदा ही ईर्ष्या करता रहा और उन्हें नुकसान पहुंचाने में ही अपना गौरव मानता रहा। इनमें से महाभारत काल के दो राक्षस चरित्रों के संबंध में संक्षेप में जानिए वे क्या थे-

घटोत्कच

भीमसेन का हिडिम्बा से उत्पन्न पुत्र ‘घटोत्कच’ नाम से प्रसिद्ध है। हिडिम्बा राक्षस कुल में उत्पन्न हुई और राक्षसी विद्या में प्रवीण थी जिसे उसने घटोत्कच को सिखाया। घटोत्कच ने इस विद्या को युद्ध में उपयोग करने की नई विधा से जोड़ा और अपराजेय बन गया। महाभारत युद्ध में जब पांडव सेना को कर्ण, विनाश करने पर तुल गए तो कृष्ण ने घटोत्कच को पांडवों की ओर से युद्ध में उतारा। घटोत्कच ने कौरवों की सेना को जब गाजर मूली की तरह काटना मारना शुरु किया तो दुर्योधन को डर लगने लगा कि यदि यह राक्षस अधिक देर तक जीवित रहा तो आज ही उसका तथा सेना का सफाया हो जायेगा। अतः उसने कर्ण से, इंद्र की दी गई शक्ति को, जिसे वह अर्जुन को मारने के लिये सुरक्षित रखे था, घटोत्कच पर चला देने का दबाव डाला और घटोत्कच के इस प्रकार के बलिदान से अर्जुन को कृष्ण की नीति द्वारा बचाया जा सका। इस विद्या में घटोत्कच ने अपनी पत्नी मौरवी के साथ अपने पुत्र बर्वरीक को भी प्रशिक्षण दिया जो तत्समय कृष्ण द्वारा सर्वश्रेष्ठ योद्धा माना गया था।

बर्बरीक

बर्वरीक की राक्षसी विद्या में पराकाष्ठा के संबंध में कहा जाता है कि कौरवों और पांडवों के बीच प्रारंभ हाने वाले युद्ध में जब वह भाग लेने जा रहा था तब सर्वज्ञाता श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के रूप में उसके पास जाकर परिचय पूछा। बर्बरीक ने कहा युद्ध में भाग लेने जा रहा हॅूं। परन्तु उसके तूणीर में केवल तीन वाण ही देखकर कृष्ण ने हंसी उड़ाते हुए कहा अजीब योद्धा हो ! केवल तीन वाणों से इस महायुद्ध में कितने दिन लड़ सकोगे। वह बोला मुझे तो केवल एक ही वाण पर्याप्त है, वह लक्ष्य भेद करके वापस मेरे तूणीर में आ जाता है। कृष्ण बोले अच्छा इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को बेधकर दिखाओ तुम्हारा वाण किस प्रकार वापस आता है। उसका तीर सभी पत्तों को बेधकर श्रीकृष्ण के पैर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। बर्बरीक ने कहा ब्राह्मण देवता आप अपना पैर पत्ते के ऊपर से हटा लीजिए नहीं तो यह तीर आपका पैर छेद देगा। कृष्ण ने पूछा किस पक्ष से लड़ने की इच्छा है, वह बोला जो पक्ष पराजित हो रहा होगा उसकी ओर से लड़ूंगा। कृष्ण ने सोचा कि यदि यह हारने वाले पक्ष कौरवों की ओर से लड़ेगा तो धर्मराज्य स्थापित करने की उनकी योजना सफल ही नहीं होगी। अतः उन्होंने अपने वास्तविक रूप में आकर उसे कहा कि तुम इस समय के सर्वश्रेष्ठ योद्धा हो अतः युद्ध प्रारंभ करने के पूर्व तुम्हारा सिर इस रणक्षेत्र को दान करना होगा। उसने कहा ठीक है प्रभो! मैं आपकी शरण में हॅूं, परन्तु मैं मरने के पहले आपके चतुर्भुज रूप को देखना चाहता हॅूं और इस युद्ध को होते भी देखना चाहता हॅूं। कृष्ण ने उसे एक ऊंचे पहाड़ पर बैठकर युद्ध देखने की अनुमति दे दी। युद्ध की समाप्ति पर बर्बरीक से जब पूछा गया कि किस पक्ष के कौन कौन से योद्धाओं ने श्रेष्ठ रणकौशल दिखाया तब उसने जबाब दिया, प्रभो! दोनों ओर से आप ही लड़ रहे थे, आप ही मार रहे थे, आप ही मर रहे थे। 

अब सोचिए राक्षसों के प्रति लोगों की सोच कितनी उचित है।


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