चंद्रगुप्त मौर्य को राज्य दिलाने के बाद चाणक्य स्वयं अपना आश्रम बनाकर दूर रहने लगे थे। आश्रम में ही वे अपनी साधना के अलावा नीति, धर्म और दर्शन पर अपना लेखन जारी रखते थे। उनकी प्रसिद्धि पाकर अनेक विद्वान उनसे आश्रम में ही मिलने आते थे, अपनी समस्याओं का समाधान करते और गूढ़ विषयों पर विचार विनिमय किया करते थे।
एक बार उनसे लिने आए एक विद्वान ने पूछा, ‘‘ आपके कितने बंधु बांधव हैं?’’
चाणक्य ने उत्तर दिया, ‘‘छः’’।
उन्होंने कहा ‘इस कुटिया में 6 लोग कैसे रहते हैं और अभी वे कहां हैं?’
उत्तर मिला,
‘‘सत्यं माता, पिता ज्ञानम्, बुद्धिः भ्राता, दया सखा। शांति पत्नी, क्षमा पुत्रः षष्ठेते मम बांधवाः।’’
अर्थात् सत्य मेरी माता, ज्ञान पिता, बुद्धि भाई, दया मित्र, शांति पत्नी और क्षमा पुत्र आदि, ये ही छः मेरे सगे संबंधी हैं।
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