Tuesday, 14 March 2023

402ओम ओम चिल्लाना?

 

अनेक गोष्ठियों में बहुत चिंतन मनन करने के बाद ऋषियों ने पाया कि इस ब्रह्मांड अर्थात् ‘कॉसमस’ की तीन लाक्षणिकताएं हैं। वे हैं, उत्पन्न होना, नियत समय तक बने रहना और अंत में समाप्त हो जाना। जब उन्होंने इन्हें अभिव्यक्त करने का प्रयास किया तो ध्वनियों के समूह से प्रत्येक के लिए बीज मंत्रों की तलाश हुई। सर्वसम्मति से ‘उत्पत्ति’ के लिए ‘अ’, निर्मित की गई वस्तुओं का पालन करने के लिए ‘उ’ और उनके वापस चले जाने को ‘म’ बीज मंत्र दिया गया। जब तीनों बीज मंत्रों को संयुक्त कर एक साथ ब्रह्मांड के अस्तित्व को दर्षाने का प्रयत्न किया गया तो पता चला कि जो ध्वनि बनती है उसे गले से उच्चारित ही नहीं किया जा सकता परन्तु यह ध्वनि ब्रह्मांड के निर्माण के समय से ही उत्पन्न हुई है और आज भी ज्यों की त्यों अनुभव की जा सकती है। ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ को संयुक्त रूप से प्रकट करने के लिए उन्होंने ‘‘ॐ‘‘ इस अक्षर को प्रतीकात्मक ढंग से स्वीकार किया और संयुक्त ध्वनि को ‘ओंकार ध्वनि’ नाम दिया। सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों में जब अभ्यास चरम पर पहुंच जाता है तब अंत में अपने अस्तित्व के बीज मंत्र की ध्वनि को इस ओंकार ध्वनि के साथ अनुनाद कराने का अभ्यास सद्गुरु द्वारा कराया जाता है। इस अनुनाद की अवस्था में व्यक्ति अलौकिक आनन्द की अनुभूति करता है और इसी के साथ वह आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ता है। इसे महत्व देने के लिए बाद में ऋषियों ने वेद मंत्रों के प्रारंभ और अंत में इसे जोड़ दिया ताकि शोधकर्ता यह जान सकें कि किसी भी मंत्र का गूढ़ार्थ समझने के लिए इस ओंकार ध्वनि के साथ अनुनादित होना महत्वपूर्ण है। जैसे, गायत्री छंद में लिखी गई सर्वोत्तम प्रार्थना मूलतः यह है- ‘‘भूः, भुवः, स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यम, भर्गोदेवस्य धीमही, धियोयोनः प्रचोदयात्।’’ परन्तु बाद में इसे, ‘‘ॐ भूः, भुवः, स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यम, भर्गोदेवस्य धीमही, धियोयोनः प्रचोदयात् ॐ ।’’ लिखा जाने लगा।

आपने  देखा होगा कि सभी लोग इस ओंकार ध्वनि को  ‘ओम’ ओम’ इस प्रकार जोर जोर से उच्चारित करते हैं और मानते हैं कि उन्होंने मंत्र जान लिया। परन्तु ऊपर स्पष्ट किया गया है कि ओंकार ध्वनि तो अ, उ, और म की संयुक्त ध्वनि है जिसमें उत्पत्ति, पालन और संहार तीनों का समावेष होने के कारण वह हमारी वर्णमाला के सभी 50 अक्षरों की संयुक्त ध्वनि से मिलकर बनी है। वर्णमाला के इन पचास अक्षरों की संयुक्त ध्वनि को किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने गले से उच्चारित ही नहीं किया जा सकता अतः उसे जोर जोर से चिल्लाने का भी कोई फायदा नहीं है। फायदा तो तब मिलता है जब आप अपने गुरु द्वारा बताए गए बीज मंत्र को इस ध्वनि के साथ हृदय में अनुभव कर अनुनादित करें। परन्तु इस संबंध में किसी को भी रुचि नहीं है वे तो चाहते हैं कि ‘ओम ओम’ जोर से चिल्लाने में ईष्वर उनकी मनोकामना पूरी कर देंगे!


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