सभ्यता के उद्गम के पूर्व समाज में बहुत विकृतियॉं थीं। सामाजिक संगठन, परस्पर सौहार्द और महिलाओं के प्रति पुरुषों के उत्तदायित्व का कोई अस्तित्व नहीं था अतः महासम्भूति सदाशिव ने समाज के सभी लोगों को ‘‘विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत जीवन निर्वाह करने’ की सामाजिक संरचना की स्थापना की जिसे ‘‘विवाह’’ कहा जाता है। विवाह के बाद पति और पत्नी को परस्पर एक दूसरे के प्रति समर्पित रहकर अपनी संतान के पालन पोषण करने का समान उत्तरदायित्व देने को ही विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत जीवन निर्वाह करना कहा गया है। इस व्यवस्था में उत्तरदायित्व निभाने के लिए सर्वप्रथम भगवान सदाशिव ने अपने को ही उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया और प्रथम विवाहित पुरुष कहलाए। आज जो भी विवाह होते हैं वे इसी परम्परा के अन्तर्गत शैव विवाह कहलाते हैं। शिव के विवाह से जुड़ा हुआ दिन शिवरात्रि के नाम से मनाया जाता है। शिव की संतानों में भैरव, भैरवी और कार्तिकेय का योगदान शिव द्वारा स्थापित सामाजिक सरचना को सुदृढ़ करने में देखा गया है। शिव को स्वयंभू कहा गया है अतः उनके जन्म और महाप्रयाण का किसी को कुछ भी पता नहीं है अतः उनके जन्मदिन या महाप्रयाण मनाने का कोई दिन नहीं है।
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