4 - भिखारी कौन?
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तत्वेश और नित्येश अपने अपने सपनों को पूरा करने हेतु उच्च अध्ययन करने के लिये गाॅंव से शहर आकर विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे। दोनों ने बहुत पराक्रम किया और योग्यता के अनुसार तत्वेश अपने पिता के व्यवसाय को सम्हालने लगा और नित्येश करने लगा सरकारी स्कूल मेें शिक्षक की नौकरी।
समय समय पर दोनों मिलते और अपनी अपनी उपलब्धियों की चर्चा करते। तत्वेश कहता इस वर्ष उसे व्यवसाय में लाखों का लाभ हुआ है इससे अब एक और फेक्टरी प्रारंभ कर रहा हॅूं, नित्येश कहता इस वर्ष मेरे सभी छात्र अच्छे अंकों से पास हो गये, चार का इंजीनियरिंग और एक का मेडीकल कालेज में चयन हो गया, ...आदि आदि...।
अबकी बार दोनों अनेक वर्षों के बाद मिले जब तक दोनों के बाल बच्चे भी अपने अपने काम में लग चुके थे , नित्येश रिटायर होकर नाती पोतों को सुसंस्कारों की शिक्षा देता और समाज के हितकारक कामों में अपना समय व्यतीतकर आनन्दित रहता और तत्वेश भी अपने पोते पोतियों को नये नये प्रोजेक्ट समझाने और आर्थिक लाभ कमाने के उपायों पर निर्देशन करता । मिलने पर तत्वेश ने नित्येश से कहा- नित्येश ! इतना अधिक समय बीतने के बाद भी तू तो फटीचर का फटीचर ही रहा, मैंने, देख ! एक फेक्टरी से दस बना डाली और अनेक प्रोजेक्ट विचाराधीन हैं, अरबों की प्रापर्टी है, अभी इसी वर्ष न्यूयार्क में एक होटल प्रारंभ कर रहा हॅॅंू ... और अपनी विभिन्न इच्छाओं का बखान करता रहा....।
नित्येश ने कहा, यार तू तो इतना सब पाकर भी, अभी भी बहुत ही गरीब भिखारी जैसा है, जिसकी इच्छायें कभी समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती वरन् बर्षाऋतु की नदियों की भाॅंति हमेशा उफनाती रहती हैं और वे कभी भी तृप्त नहीं होतीं।
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