Tuesday, 17 October 2017

158 पात्र नाट्यमंच के

158
पात्र , नाट्यमंच के !

यह दैवयोग ही था कि दुर्योधन अधर्मी, दुष्ट और क्रूरता का पर्याय और इन सभी गुणों से विपरीत कर्ण सात्विक, धार्मिक और दयालुता की पराकाष्ठा होते हुए भी दोनों की घनिष्ट मित्रता आजीवन रही । कर्ण का, सदा ही यह प्रयास होता था कि किसी प्रकार दुर्योधन अपने असात्विक कार्य छोड़कर सन्मार्ग की ओर आ जाए। इसलिए, एक बार दुर्योधन को अत्यन्त प्रसन्न देख उसने कहा,

‘‘ मित्र ! सभी लोग तुम्हें अच्छा नहीं कहते, यह मुझे अच्छा नहीं लगता। तुम क्यों नहीं सदाचरण और धर्मानुकूल कार्य करते हुए लोगों का मन जीत लेते ? इस प्रकार तुम्हारी यशकीर्ति युगों तक पूजित बनी रहेगी ।"

 ‘‘ मित्र कर्ण ! मैं स्वयं आश्चर्यचकित हूँ  कि मुझे सभी लोग दुष्ट, अनाचारी, अधार्मिक और न जाने क्या क्या कहते हैं, परन्तु मैं यह समझ ही नहीं पाता कि मेरा क्या दोष है ।’’

 ‘‘ मित्र दुर्योधन ! धर्म का पालन करते हुए निवृत्ति मार्ग पर चलना प्रारम्भ कर दो ।’’

‘‘ मित्र कर्ण ! मैं न तो धर्म जानता हॅूं और न ही अधर्म, न ही प्रवृत्ति जानता हॅूं न निवृत्ति। मैं तो केवल यह जानता हॅूं कि मेरे हृदय में कोई देवता बैठा है , वह मुझसे जो कुछ कहता है मैं वही करने के लिये विवश हो जाता हॅूं ।‘‘

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