Thursday, 12 December 2019

286 समाधि प्राप्त करने का रहस्य(6)

समाधि प्राप्त करने का रहस्य(6)
संप्रज्ञात समाधि में सर्वज्ञता का बीज सातिशय होता है और स्थायी सविकल्प में निरतिशय हो जाता है क्योंकि तब उसका विषय अनुमानस (unit mind) में सीमित न होकर भूमा (cosmic mind) में परिवर्तित हो जाता है और उसकी संभावना अपरिमाप्य हो जाती है। साधना के द्वारा अपरिपुष्ट बीज क्रमशः  परिपुष्टता प्रहण कर 
निरतिशयित्व की ओर बढ़ता जाता है अतः उच्च श्रेणीके साधकों को वाह्य वस्तु के ज्ञान आहरण का कोई प्रयोजन नहीं होता, भूमा के प्रसाद से ज्ञान प्रसाद स्फूर्त हो उठता है। ‘‘तत्र निरतिशयं सर्वज्ञत्व बीजम्’’।
संप्रज्ञात समाधि चंचल चित्त से उपलभ्य नहीं है।  जिस तरंग में मैंपन का बोध हुआ है वही संप्रज्ञात है, लेकिन जड़ समाधि को संप्रज्ञात नहीं कहेंगे। जब धन दौलत घर द्वार आदि जड़ पदार्थों में एकाग्रता प्राप्त चित्त केवल उन्हीं का रूप धारण करता है अतः  जगत का और कुछ दिखाई नहीं देता, इसे ही संप्रज्ञात जड़ समाधि कहते हैं। इसका ध्येय स्थूल या सूक्ष्म मानस आभोग  होता है। 
असंप्रज्ञात समाधि का ध्येय पुरुष होता है, अतः प्रकृतिलीन और विदेहलीन अवस्था संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात के बीच की अवस्था कही जा सकती हैं। संप्रज्ञात समाधि  के चार स्तर हो सकते हैं, 
1. सवितर्क स्तर पर पुत्र धन घर आदि में एकाग्रता होने पर, 
2. ऋणात्मक सवितर्क स्तर पर उपरोक्त विषयों से मन को हटाने की एकाग्रता होने, 
3. सविचार समाधि में चित्त स्थूल आभोगों में रत नहीं होता पर नाम यश आदि सूक्ष्म आभोगों के पीछे दौड़ता है,और 
4. जब इन सबसे दूर रहने के प्रयासों में एकाग्रता प्राप्त हो तो वह ऋणात्मक सविचार के अंतर्गत आती हैं। 
इसके बाद के स्तर को आनन्द समाधि कहते हैं, इसमें चित्त का कोई सूक्ष्म आभोग नहीं होता पर एक सूक्ष्म दैहिक और मानसिक बोध होता है कि मैं आनन्द का उपभोग कर रहा हूॅं पर  इसका भी ऋणात्मक पहलु है। इसके बाद के  स्तर पर आती है सास्मित समाधि, इसमें केवल पुरुषसत्ता का  बोध रहता है इस स्तर पर इस मैंपन का बोध समाप्त हो जाने से  एक सूक्ष्मस्तरीय एकात्मिका का ज्ञान आता है जिसे असंप्रज्ञात समाधि कहते हैं; इसमें रह जाती है केवल एक पुरुष सत्ता।  सबको छोड़ केवल पुरुष भाव में रहने को कहते हैं पुरुष ख्याति। 
क्रमशः ..7

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