2.0: मध्य: भाग एक विज्ञान
यात्रा से वापस लौटने के बाद मैं अपने अध्ययन में लग गया पर बार बार मन में यही प्रश्न आते कि यहसंसार, क्या है और क्या पृथ्वी के अलावा भी जीवन है? क्या भारतीय दर्शन में इनका समाधान है? परंतु कोर्स भी पढ़ना अनिवार्य था अतः विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी से कुछ किताबें भारतीय दर्शन और कुछ अपने कोर्स की ले आता और अपनी जिज्ञासाओं को शान्त करने का प्रयत्न करता। पढते पढ़ते भौतिकी की पुस्तकों से जगत की उत्पत्ति के संबंध में और आज तक किये गये आकाशीय पिंडों के अध्ययन की जानकारी एकत्रित करता रहा। इस जानकारी में आश्चर्य भरा हुआ है और लगता है कि इस अकल्पनीय विस्तार के भीतर फैले और फैलते जा रहे इस ब्रह्माॅंड में क्या क्या है यह जानने में ही अनेक जन्म चाहिए होंगे। यह बात सत्य है कि इस जगत का निर्माता, यह जगत और इसमें रहनें वाले मनुष्य, जीवजंतु और पेड़ पौधे सभी एक दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। कुछ लोग कहते हैं कि जगत मिथ्या है केवल ईश्वर ही सत्य है, जबकि जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है उसे असत्य अर्थात् मिथ्या कैसे कहा जा सकता है? उसे भी सापेक्षिक सत्य कहना होगा। देश काल और पात्र को नये सिरे से समझना होगा। इसलिये मैंने विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी और अन्य श्रोतों से वह जानकारी एकत्रित करना प्रारंभ कर दी जिससे यह ज्ञात हो सके कि इस दृश्य जगत में क्या क्या है और आज तक विज्ञान ने इससे संबंधित क्या क्या व्याख्या की है। संक्षेप में इसका संकलन इस प्रकार हैंः-
2.1 ब्रह्माॅंड की उत्पत्ति का बिगबेंग सिद्धान्त
वर्तमान वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार जगत अर्थात् कासमस 13.8 बिलियन साल पहले बिग बेंग के साथ उत्पन्न हुआ जिसका वर्तमान में दृश्य व्यास 93 बिलियन प्रकाश वर्ष है। सम्पूर्ण काॅसमस का व्यास अभी भी अज्ञात है फिर भी 'एलान गुथ की इनफिलेशन थ्योरी' के अनुसार जगत का वास्तविक आकार दृश्य जगत के आकार से कम से कम 15 गुना होना चाहिये। यदि यह इनफिलेशन थ्योरी सही है तो वर्तमान दृश्यमान जगत संम्पूर्ण जगत की तुलना में वैसा ही कहलायेगा जैसे सूर्य की तुलना में हीलियम का परमाणु। इस हिसाब से सम्पूर्ण जगत का व्यास कम से कम (10के ऊपर 26की घात) 1026, प्रकाश वर्ष होना चाहिये।
ध्यान रहे एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश के द्वारा एक साल में तय की जाती है तथा प्रकाश एक सेकेंड में तीन लाख किलोमीटर चलता है।
बिगबेंग सिद्धान्त: ब्रह्माॅंड की उत्पत्ति के संबंध में वर्तमान में वैज्ञानिक इसी सिद्धान्त को मान्यता देते है। इसका मृख्य बिंदु यह है कि ब्रह्माॅंड फैलता जा रहा है अतः पूर्व में कभी यह बहुत गर्म और सघन रहा होगा और विशेषतः किसी क्षण सभी पदार्थ किसी एक ही बिन्दु पर केन्द्रित रहा होगा इसे ही ब्रह्माॅंड का प्रारंभ माना जाना चाहिए। आधुनिक गणितीय गणनाओं के आधार पर ब्रह्माॅंड के उद्गम का यह क्षण 13.82 बिलियन वर्ष पहले पाया जाता है जिसे ब्रह्माॅंड की आयु कहा जाना उचित लगता है। इसके प्रारंभिक फैलाव के बाद ब्रह्माॅंड पर्याप्त रूपसे ठंडा हुआ और परमाणु के भीतर पाये जाने वाले कण प्रोटान, न्यूट्रान, और इलेक्ट्रान आदि उत्पन्न हुए। यद्यपि साधारण नाभिकीय कण बिग बेंग के प्रारंभिक तीन मिनटों में ही बन गये परंतु विद्युतीय रूप से उदासीन परमाणुओं के बनने में हजारों वर्ष लग गये । इन परमाणुओं में अधिकाशतः हाइड्रोजन, हीलियम और कुछ लीथियम के संकेत मिलते हैं। इन्हीं प्रारंभिक तत्वों के विशाल बादलों के परस्पर मेल और गुरुत्व के प्रभाव में तारे और गेलेक्सियाॅं बनी और सुपरनोवा के समय या तारों के भीतर ही भारी तत्वों का निर्माण हुआ। यह सिद्धान्त यह नहीं बताता कि ब्रह्माॅंड के निर्माण के समय की क्या स्थितियाॅं थीं वह केवल उस विंदु से आगे बढ़ने के क्षणों का ही स्पष्टीकरण देता है। स्पेस की एकदैशिकता और समाॅंगता का स्पष्टीकरण, ' सामान्यआपेक्षिकता ' के सिद्धान्त से समझाया जा सकता है। इस सिद्धान्त की पुष्टि काॅस्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड रेडिएशन के आधार पर की गई है और लेंबडा सीडीएम माडल को संबंधित आधुनिक खोजों के लिये मान्य किया गया है। बिग बेंग के तत्काल बाद गुरुत्वाकर्षण तरंगें, काॅस्मिक फैलाव के कारण प्रकाश की चाल से तेज चलती हुई मानी गईं हैं।
ब्रह्माॅंड का, समय के आधार पर पीछे की ओर, सामान्य सापेक्षिकता सिद्धान्त के अनुसार, एक्स्ट्रापोलेशन करने पर पाया जाता है कि भूतकाल के निश्चित समय में स्पेस का अनन्त ताप , दाब और ऊर्जा घनत्व था और बड़ी तेजी से फैलता और ठंडा होता जा रहा था। लगभग 10-37 सेकेंड में, विस्तारण के भीतर ही ब्रह्माॅंड में क्वार्क ग्लुआन प्लाज्मा और अन्य प्रारंभिक कण और उनके विपरीत कण बन गये और परिणामतः एन्टीमैटर पर मैटर का प्रभुत्व जम गया। इन सब गणनाओं में कास्मोलाजी का यह सिद्धान्त मानकर काम किया गया है कि लंबे पैमाने पर ब्रह्माॅंड समांग अर्थात् होमोजीनियस और एकदैशिक अर्थात् आइसोट्रोपिक है। चूंकि ब्रह्माॅड की निश्चित् आयु है और प्रकाश भी निश्चित चाल से चलता है अतः हो सकता है कि भूतकाल में हुई घटनाओं से संबंधित प्रकाश को हम तक आने का समय ही न मिला हो। यह सर्वाधिक दूरस्थ अवलोकनीय वस्तुओं की सीमा या भूतकाल की क्षितिज को प्रकट करता है, इसी प्रकार सभी वस्तुऐं तेजी से हमसे दूर चली जा रहीं हैं अतः हमसे आज निकला प्रकाश बहुत दूरस्थ वस्तु को कभी पकड़ ही न पायेगा, इसे भविष्य की क्षितिज के रूप में पारिभाषित कर सकते हैं। यूनीवर्स के "लेंम्बडा कोल्ड डार्क मैटर माडल" द्वारा यूनीवर्स की संरचना और अस्तित्व का ‘कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड‘, गेलेक्सियों के बडे़ पैमाने पर वितरण और संरचना, हाइड्रोजन डीयुटेरियम सहित हीलियम और लीथियम की प्रचुरता, यूनीवर्स का तेजी से फैलना आदि, को समझाया गया है।
यूनीवर्स का कुल घनत्व, अर्थात् डार्क एनर्जी, वर्तमान में वर्ष 2013 में की गयी गणना के अनुसार 68.3 प्रतिशत पाया गया है और डार्कमैटर घटक , द्रव्यमान ऊर्जा घनत्व का 26.8 प्रतिशत। शेष 4.9 प्रतिशत में सभी सामान्य पदार्थ, दिखाई देने वाले परमाणु, रासायनिक तत्व गैस और प्लाज्मा , द्रश्य ग्रह, तारे और गेलेक्सियाॅं हैं। इस ऊर्जा घनत्व में बहुत कम परिमाण लगभग 0.01 प्रतिशत कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड रेडियेशन भी होता है और 0.5 प्रतिशत से भी कम रेलिक न्यूट्रिनो होते हैं। अभी इनकी मात्रा भले ही कम हो पर बहुत पिछले काल में ये पदार्थ 3200 से भी अधिक रेड शिफ्ट में अपना अधिकार जमाये थे। इस माडल द्वारा समझाया गया है कि बिगबेंग की घटना विस्फोट की तरह नहीं हुई बल्कि 1015 केल्विन ताप के विकिरण के साथ स्पेस टाइम में फैलता हुआ अचानक ही अस्तित्व में आया। इसके तत्काल बाद 10&29 सेकेंड में स्पेस का एक्पोनेशियल विस्तार 1027 (10 के ऊपर 27की घात ) अथवा अधिक के गुणांक में हुआ। जो कि कास्मिक इन्फ्लेशन कहलाता हैं । ब्रह्माॅड का ताप 10,000 केल्विन से अधिक, सैकड़ों हजार साल तक रहा जिसे रेसेड्युअल कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड कहते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के अनुसार इस द्रश्य प्रपंच में हमारी धरती जिस पर हम रहते हैं और विभिन्न जीवों से भरा हमारा संसार है वह वास्तव में असंख्य सौर परिवारों में से एक हमारे सौर परिवार का छोटा सा ग्रह है। हमारा सूर्य ही इन सबका नियंत्रक है और सबको ऊर्जा देता है। हमारे सौर परिवार के केवल पृथ्वी पर ही जीवन पाया जाता है। कुछ भी निष्कर्ष निकालने से पहले ज्ञात जगत की भली भांति जानकारी कर लेना उचित होगा इस लिये संक्षेप में सूर्य के सापेक्ष इन ग्रहों की दूरियों के अनुसार प्रत्येक का विवरण इस प्रकार पाया जाता है-
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