Wednesday, 2 September 2020

330 प्रतिभा का शोषण

 330 प्रतिभा का शोषण

शक्तिशाली और धनी लोग साहित्यकों, लेखकों और वक्ताओं को उनकी गरीबी का लाभ उठाकर क्रय कर लेते हैं और अनेक प्रकार से शोषण करते हैं। उनका यह कार्य प्राचीनकाल से चला आ रहा है। राजा और सम्राट लोग अपने राज्य में कर रहित भूमि और सम्पदा देकर दरवारी कवियों को रखा करते थे और इस प्रकार वे केवल उनके कहने के अनुसार साहित्य रचनाएं लिखा करते थे। इसलिए प्रतिभाशाली साहित्यकार और कलाकार अपने संरक्षकों को खुश रखने के लिए परिस्थितियों के दबाव में अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करने के लिए विवश रहते थे। यही कारण है कि उन्हें अश्लील साहित्य और मूर्तियों की रचना करना पड़ती थी। अपने संरक्षकों को श्रेष्ठ और उनके शत्रुओं को तुच्छ प्रदर्शित करने के लिए उन्हें असत्य का सहारा लेना पड़ा। इतना ही नहीं अपने संरक्षकों की पोशाक, रंग, जाति, पूर्वज, और उनके परिवारों को ईश्वरतुल्य प्रदर्शित करने के लिए निराधार तथ्यों का सहारा भी लेना पड़ा। कुछ अपवादों को छोड़ दंे तो अधिकाॅंश साहित्यिक लोग, समाज के निम्न आर्थिक स्तर के ही होते पाए जाते हैं। स्वतंत्र रूप से कार्य करने की इच्छा होने के बावजूद, द्रव्य के अभाव ने ही उन्हें किसी संगठन या व्यक्ति विशेष के साथ काम करने के लिए उकसाया है। इतना तक कि वे जो अपने लेखों में साहसी और उत्साही दिखाई देते हैं इन्हीं परिस्थितिजन्य दबावों के कारण राजनैतिक पार्टियों के हाथ के खिलोनंे बनते देखे जाते हैं। स्पष्ट है कि सदा से ही शक्तिशालियों के द्वारा साहित्य, कला और बुद्धि के क्षेत्र में प्रवीण लोगों का शोषण किया जाता रहा है और इन लोगों ने अपनी योग्यता को उनके गुणगान तक ही सीमित कर दिया। दुख तो यह है कि यह सब आज भी जारी है।


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