Thursday, 24 September 2020

340 शोषण की कला (2)

धर्म के ठेकेदार जिन्हें लोग पंडित कहते हैं, वे धनी व्यापारियों को भविष्य में व्यवसाय के फलने फूलने और उन्नति करने का आशीर्वाद देते देखे जाते हैं परन्तु उन गरीब भक्तों का मुंह भी देखना नहीं चाहते जो उन्हें भारी दक्षिणा नहीं दे पाते। यह भी देखा जाता है कि धार्मिक शोषण जारी रखने के लिये अनेक धार्मिक कहानियाॅं गढ़ ली गई हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और तर्क पर भी खरी नहीं उतरती, परन्तु वे जानते हैं कि मनुष्य की कमजोरियों को इन कथाओं के द्वारा आसानी से दोहित किया जा सकता है।

अतार्किक और अविवेक आधारित गति को ‘डोग्मा या भावजड़ता’ कहा जाता है। इन डोग्माओं के समूह को ‘वाद अर्थात् इज्म’ कहते हैं। जब इन डोग्माओं और वादों के प्रवर्तकों और अनुयायियों ने अपने व्यक्तित्व से करिश्मा करने का गुण खो दिया तो उन्होंने इसे ईश्वर के नाम पर प्रचारित करना शुरु कर दिया । इस प्रकार कभी वे यह कहते पाये गए कि ईश्वर ने उन्हें स्वप्न में यह करने और उसका पालन कराने को कहा है और जो इसका पालन नहीं करेगा उसे नर्क भोगना पड़ेगा। इस प्रकार लोगों के मनो में भावग्रथियों की जटिलता भर कर और भय फैलाकर इन डोग्माओं द्वारा शोषण किया जाता रहा है और आज भी जारी है।

ईश्वर के नाम पर अवतारवाद को जन्म देकर इन परजीवियों ने अपने काल्पनिक वादों अर्थात् डोग्माओं को फैलाया और जिन्होंने तार्किक और विवेकपूर्ण ढंग से असहमति दी उन्हें नास्तिक कहकर पापी घोषित कर दिया। इस प्रकार अनेक दार्शनिकों के बहुमूल्य अनुसंधानों को अपने व्यक्तिगत हित साधने के उद्देश्य वालों द्वारा नष्ट कर दिया गया।

मनुष्यों के पास उन्नत बुद्धि और निर्णय लेने के लिये विवेक होता है, वे इसके द्वारा उचित अनुचित का निर्णय लेकर सही सही अपने धर्म का पालन करते हुए आध्यात्म की ओर बढ़ें। जिनके पास उन्नत विवेक नहीं है उनके पास यह क्षमता अवश्य है कि वे इसे पाने का प्रयास कर सकते हैं और एक दिन उन्नत बौद्धिक स्तर पा सकते हैं। यदि यह अवसर पाने के बाद भी वे अपनी क्षमता का विवेकपूर्ण उपयोग नहीं करते हैं तो निश्चित ही वे अधोगति पाएंगे। इसलिये उन्हें यह गलती नहीं करना चाहिए।


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