आकर्षक सुन्दर और सबसे अलग दिखने की इच्छाओं ने संसार की सभी महिलाओं को नई नई चिन्ताओं में डाल रखा है। जिनका रंग साॅंवला है वे गोरा होना चाहती हैं, जिनकी लम्बाई कम है वे लम्बा होना चाहती हैं, सभी अपने बालों को घना और लम्बा बनाना चाहती हैं। कुछ अपनी नाक और आंखों की बनक ठनक को और निखारना चाहती हैं। अपनी शारीरिक संरचना को और आकर्षक बनाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़तीं। सभी सुपर माडल्स की तरह दिखने के लिये अथक प्रयास करते देखी जाती हैं। उनकी इस कमजोरी का फायदा कास्मेटिक उद्योगपतियों द्वारा नये नये प्रकार के उत्पाद बनाकर उठाया जा रहा है और यह उद्योग मल्टी मिलियन डालर तक जा पहॅुंचा है। सच्चाई यह है कि गोरे काले या आकर्षक और अनाकर्षक होने का हीनभाव इन्हीं के द्वारा फैलाया जाता है, महिलाओं में सुन्दर न दिखने पर असम्मान और असुरक्षा की भावनायंे पैदा कर डरा दिया जाता है। और फिर अपने उत्पादों को बेच कर मनोआर्थिक रूप से शोषण करते हुए धन का दोहन करने के उपाय ढूंढे जाते हैं। पूॅंजीपतियों के इस भयावह खेल की विधि यह है कि मनोवैज्ञानिक रूप से पहले यह हीन भावना पैदा करता है जिससे महिलायें अनेक प्रकार के मानसिक लकवे का शिकार हो जाती हैं फिर वे उनका आर्थिक रूपसे शोषण करने में सफल हो जाते हैं। इतना ही नहीं वे स्थानीय भाषा और संस्कृति को दबाकर एक छद्म संस्कृति का रोपण कर इसी का प्रचार करने लगते हैं।
इस प्रकार युवाओं का मन प्रदूषित कर उनकी जीवन्तता की अनदेखी करते हैं। पुराने अतार्किक और अमनोवैज्ञानिक साहित्य के उदाहरण देकर महिलाओं पर सैकड़ो बंधन लगाये जाते हैं जिससे वे पुरुषों पर आर्थिक रूपसे आश्रित बनी रहें। अपने धन के प्रभाव में ये लोग संचार माध्यमों जैसे समाचार पत्र, रेडियो टेलीविजन आदि को लेकर अपना जाल फैलाये रहते हैं। स्पष्ट है कि यदि सचमुच महिलाओं को अपना स्तर पुरुषों के समान लाना है तो इन धोखेवाजों से सावधान रहकर अपनी मानसिकता को बदलना होगा। इसका अर्थ पुरुषों के समान अधिकार पाना नहीं वरन् अपने अधिकारों को मान्यता दिलाना होना चाहिए। इस अभिशाप से पूरी तरह मुक्त होने के लिये क्या किया जाना चाहिए? न तो पूरी तरह उन उद्योगपतियों को दोष दिया जा सकता है न ही उन महिलाओं को जो अपने को कम सुन्दर मानकर अधिक सुन्दर होने के प्रयासों में इनके द्वारा बार बार शोषित की जाती हैं। इसका उचित समाधान यही है कि शोषकों का हर स्तर पर विरोध हो और शोषितों को इतना शिक्षित किया जाए कि अपनी दशा सुधारने और आगे बढ़ने की समझ आ सके।
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