कल्पना करो कि कोई उद्दंड व्यक्ति सामने खड़ा है, वह इतना दुष्ट है कि तुम्हारी इच्छा उसे थप्पड़ मारने की होती है परन्तु वास्तव में तुम यह करते नहीं हो। यह तो तभी होता है जब तुम निर्णय कर लेते हो कि इस उद्दंडी को सबक सिखाना चाहिए तभी तुम्हारे हाथ उठते हैं और उसे आघात पहुंचाते हैं। अर्थात् आन्तरिक इच्छा बाहर प्रकट होने के लिए प्रबल हो उठती है तभी हाथ कार्य करने लगते हैं। महान व्यक्ति वह है जिसका अपने विचारों के बाहरी प्रदर्शन करने पर नियंत्रण है। कोई विचार भौतिक रूप से हमेशा प्रदर्शित नहीं होगा। किसी के मन में किसी को चोट पहुंचाने अथवा किसी की वस्तु चुराने का विचार आ सकता है परन्तु आत्म नियंत्रण होने के कारण वह हमेशा कार्य रूप में नहीं लाया जा पाता । अब मानलो किसी भिखारी को अंधेरे में, ठंड में सिकुड़े, रोड के किनारे देख कर तुम्हारी आंखों में उसकी दयनीय दशा पर आंसू आ जाते हैं और उसे खाना और सहारे का प्रबंध करने लगते हो तब यह आंसू आना कमजोर मन का सूचक नहीं है। इस प्रकार का मन सुप्रवृत्तियों वाला उन्नत मन कहा जाएगा। निष्कर्ष यह कि वे जो अनिष्टकारक वृत्तियों को तत्काल प्रदर्शित करने लगते हैं कमजोर मन कहलाते हैं इसके विपरीत कल्याणकारक वृत्तियों वाले उन्नत मन। किसी को कष्ट में देखकर यदि उसे बचाने दौड़ पड़ते हो तो यह उन्नत मन का द्योतक है।
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