परमपुरुष ही केवल सत्य हैं और निर्पेक्ष सत्ता हैं। जैसे जैसे जीव, परमपुरुष की ओर बढ़ते जाते हैं उनका मन उन्नत होता जाता है। जब वे उन्नति के सूक्ष्म स्तर पर पहॅुंच जाते हैं तब उनका मन एकाग्र होकर उनकी ओर तेजी से दौड़ने लगता है। इस प्रकार की मानसिकता ही राधा कहलाती है। जब ऐसे भक्तगण अपने हृदय की गहराई से यह अनुभव करने लगते हैं कि परमपरुष को पाए बिना उनका एक भी क्षण जीवित रह पाना संभव नहीं है तब कहा जाता है कि उन्होंने राधा भाव को पा लिया है। इस प्रकार के भक्त आराधना (अर्थात् मन का पूर्णरूपेण समर्पण) के अलावा कुछ नहीं जानते और न जानना चाहते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि राधा, वृन्दावन की किसी महिला का नाम है, परन्तु यह सत्य नहीं है। परमपुरुष के उन्नत भाव में डूबे प्रथम श्रेणी के भक्त ही राधा कहलाते हैं चाहे वे पुरुष हों या महिला।
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