Thursday 24 September 2020

341 शोषण की कला (3)

छद्म संस्कृति, लोगों को रीढ़बिहीन बनाकर सरलता से शोषण कर पाने के अनुकूल वातावरण बनाती है। मानलो किसी समूह के पास कला का समृद्ध खजाना है (सिनेमा, थिएटर आदि,) परन्तु उस समूह के लोगों के पास धनी लोगों की संख्या अपेक्षतया कम है और दूसरे समूह के पास इसका बिलकुल उल्टा है तो इस दूसरे समूह के लोग पहले समूह की सांस्कृतिक धरोहर, जो कि उन्नत है, को शोषित करने के लिये मनोआर्थिक रूप से पंगु बनाकर शोषण करते रहेंगे। इसके लिये वे इन लोगों से गन्दे सिनेमा और ड्रामा आदि का काम कराने लगेंगें । 

सभी जानते हैं कि हमारे मन का एक गुण यह है कि वह सदा ही ऊपर की ओर जाने की तुलना में नीचे की ओर जाने में सुख की अनूभूति करता है । इस लिए अपने धन के प्रभाव से इस प्रकार के लोग गंदे सिनेमा और ड्रामा आदि को थोपकर उनकी रीढ़ को ही तोड़ देंगे। फलस्वरूप, फिर वे मानसिक रूप से अपंग लोग कभी अपनी संस्कृति अथवा अन्य प्रकार के शोषण के विरुद्ध एकता से खड़े नहीं हो सकेंगे। उन लोगों में  इन शोषकों के विरुद्ध अपना सिर ऊंचा उठाने की दम ही नहीं बचेगी ।

इस प्रकार के मनोआर्थिक शोषण और छद्म संस्कृति के पोषण के विरुद्ध हर ईमानदार, सद्गुणी और विवेकशील व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए इतना ही नहीं उन्हें दूसरों को इस कार्य हेतु प्रोत्साहित भी करना चाहिए। यदि यह नहीं किया गया तो मानवता का भविष्य बंधक बन जायेगा। यह उचित है कि मनुष्य राजनैतिक स्वतंत्रता और सामाजिक मुक्ति के लिए संघर्ष करे परन्तु यदि उनकी सांस्कृतिक रीढ़ को ही तोड़ दिया जाएगा तो उनका संघर्ष करना वैसा ही सिद्ध होगा जैसे बुझी अग्नि में घी का होम करना। यह अपसंस्कृति हमारी रीढ़ और गर्दन को ही तोड़ती जा रही है ताकि हम कभी सीधे खड़ ही न हो सकें।

यह हमारे देश का ही नहीं , पूरे संसार का रोग है । क्या यह सद्गुणी लोगों का कर्तव्य नहीं है कि इन सरल और सताए हुए लोगों को इस प्रकार के शोषण से बचाने का उपाय करें ? ये  निरपराधी लोग बली का बकरा बनने के लिए क्यों विवश हों? यह असहनीय है। इसलिये यदि आप सच्चे अर्थो में मानव हैं तो  एक ओर तो अथक आध्यात्मिक साधना कर आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ते जाएं और उतनी ही तेज गति से बाहरी संसार में फैलाए जा रहे अविवेकपूर्ण, अवांछनीय और क्षतिकारक सिद्धान्तों रोकने के लिये कटिबद्ध हों । हमारा मनुष्य होना तभी सार्थक कहलाएगा जब संसार का प्रत्येक व्यक्ति आर्थिक  रूप से स्वतंत्र हो जाएगा।  


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