5.94 माइक्रोवाइटा और गंध
1. साधना करने वालों और बहुत अधिक कीर्तन करने वालों के अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्रों से चमेली, जूही या पके हुए कटहल जैसी सुगंध आती है। वास्तव में ईश्वर के प्रति कोई कितना भक्तिभाव रखता है इसी मधुर संगंध से जाना जाता है। जब कोई एकान्त में बैठ कर ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करने का प्रयास करता हैवह हलकी मधुर सुगंध का अनुभव करता है, यह और कुछ नहीं नाक की नोक पर स्रवित होकर संचित सुगंधित द्रव्य के अलावा कुछ नहीं । यद्यपि यह अनुभव केवल मनोवैज्ञानिक ही है पर इसे ईश्वर की कृपा के अलावा और क्या कहा जा सकता है।
2. कुछ जीवों और पक्षियों के शरीर से भी चावल जैसी सुगंध आती है जबकि कोबरा के शरीर से तिक्त गंध आती है। जो बहुत जल्दी गुस्से में आ जाते हैं उनके शरीर से भी तिक्त गंध आती है, कभी कभी उनके शरीर से भी इसी प्रकार की गंध आती है जो बहुत साहसी होते हैं। यदि ये साहसी लोग धार्मिक और सद्गुण होते हैं तो उनके शरीर से गेंदे जैसी सुगंध आती हैं, पर यदि वे सद्गुणी नहीं होते तो उनके शरीर से वर्षाऋतु में फुहार पड़ने पर मिट्टी की गंध की तरह गंध निकलती है। कोबरा जब बहुत उम्र के हो जाते हैं तो उनके शरीर से धूप में सुखाये चावलों जैसी गंध आती हैं।
3. सुगंध तन्मात्रा की प्रकृति कैसी भी क्यों न हो व्यक्ति अपनी नासिका में घ्राण ग्रहण करने की तन्त्रिकाओं की शक्ति के अनुसार उन्हें ग्रहण करता है और अपने अपने संस्कारों के अनुसार अनुभव करता है।
4. मुष्क हिरण ठंडे देशों में पाया जाता है और कुरूप् होता है पर उसकी ग्रंथियों से हारमोन निकलकर नाभि के पास जमा हो जाते हैं जो जितने सूखकर ठोस होते जाते हैं उतने ही सुगंध विखेरते हैं। मादा हिरण में यह नहीं होता है।
5. मनुष्येतर अनेक प्राणियों में मनुष्य की तुलना में गंध पहचानने की अधिक क्षमता पाई जाती है जैसे कुत्ता, शेर, भेडि़या, मक्खियाॅं। वास्तव में प्रत्येक अप्रिय गंध ऋणात्मक और प्रिय गंध धनात्मक माइक्रोवाइटा से उत्पन्न होती है और वह भी सूंघने वाले की सूंघने की शक्ति और संस्कारों पर सापेक्षिक रूप से निर्भर करती है।
6. तन्मात्रा जितनी सूक्ष्म होती है वह सुगंध को उतनी ही सरलता से ले जा सकती है। परंतु यदि अपक्व क्रूड, तन्मात्रा किसी सूक्ष्म के साथ मिल जाती है तो वह धनात्मक माइक्रोवाइटा वाहित करने के लिये अच्छा साधन बन जाती है और यदि वह क्रुड के साथ स्रबद्ध हो जाती है तो ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को ले जाने का साधन बन जाती हैं। इसलिये बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिये कि क्रूड विचारों को त्यागकर सूक्ष्म विचारों का साथ करे ।
7. वे जो संयोजन का पथ अपनाते हैं आध्यात्मिक सुगंध अवश्य ही अनुभव करते हैं यह सुगंध संसार की किसी भी सुगंध से मेल नहीं खाती हाॅं हम यह कह सकते हैं कि लगभग चंपा से या चमेली से या रातरानी जैसी लगती है। पर यह याद रखना चाहिये कि आध्यत्मिक साधना परमपुरुष को पाने के लिये की जाती है सुगंध के लिये नहीं।
8. सभी वस्तुओं में चाहे वे सजीव हों या निर्जीव उनमें संयुक्त और व्यक्तिगत गंध होती है। व्यक्तिगत गंध संबंधित के संस्कारों, भोजन, और भौतिक - मनोआत्मिक अभ्यास पर निर्भर होती है। मानव शरीर के सूक्ष्म भाग से जो गंध निकलती है वह क्रूड भाग से निकलने वाले भाग से भिन्न होती है। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा मानव शरीर और मन में गंध ,ध्वनि, स्पर्श , रूप और स्वाद के आधार पर बीमारियाॅं फैलाते हैं। कंजंक्टिवाइटिस, कोलेरा, स्मालपाक्स और इनफ्लुऐंजा आदि बीमारियाॅं ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से ही फैलती हैं।
1. साधना करने वालों और बहुत अधिक कीर्तन करने वालों के अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्रों से चमेली, जूही या पके हुए कटहल जैसी सुगंध आती है। वास्तव में ईश्वर के प्रति कोई कितना भक्तिभाव रखता है इसी मधुर संगंध से जाना जाता है। जब कोई एकान्त में बैठ कर ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करने का प्रयास करता हैवह हलकी मधुर सुगंध का अनुभव करता है, यह और कुछ नहीं नाक की नोक पर स्रवित होकर संचित सुगंधित द्रव्य के अलावा कुछ नहीं । यद्यपि यह अनुभव केवल मनोवैज्ञानिक ही है पर इसे ईश्वर की कृपा के अलावा और क्या कहा जा सकता है।
2. कुछ जीवों और पक्षियों के शरीर से भी चावल जैसी सुगंध आती है जबकि कोबरा के शरीर से तिक्त गंध आती है। जो बहुत जल्दी गुस्से में आ जाते हैं उनके शरीर से भी तिक्त गंध आती है, कभी कभी उनके शरीर से भी इसी प्रकार की गंध आती है जो बहुत साहसी होते हैं। यदि ये साहसी लोग धार्मिक और सद्गुण होते हैं तो उनके शरीर से गेंदे जैसी सुगंध आती हैं, पर यदि वे सद्गुणी नहीं होते तो उनके शरीर से वर्षाऋतु में फुहार पड़ने पर मिट्टी की गंध की तरह गंध निकलती है। कोबरा जब बहुत उम्र के हो जाते हैं तो उनके शरीर से धूप में सुखाये चावलों जैसी गंध आती हैं।
3. सुगंध तन्मात्रा की प्रकृति कैसी भी क्यों न हो व्यक्ति अपनी नासिका में घ्राण ग्रहण करने की तन्त्रिकाओं की शक्ति के अनुसार उन्हें ग्रहण करता है और अपने अपने संस्कारों के अनुसार अनुभव करता है।
4. मुष्क हिरण ठंडे देशों में पाया जाता है और कुरूप् होता है पर उसकी ग्रंथियों से हारमोन निकलकर नाभि के पास जमा हो जाते हैं जो जितने सूखकर ठोस होते जाते हैं उतने ही सुगंध विखेरते हैं। मादा हिरण में यह नहीं होता है।
5. मनुष्येतर अनेक प्राणियों में मनुष्य की तुलना में गंध पहचानने की अधिक क्षमता पाई जाती है जैसे कुत्ता, शेर, भेडि़या, मक्खियाॅं। वास्तव में प्रत्येक अप्रिय गंध ऋणात्मक और प्रिय गंध धनात्मक माइक्रोवाइटा से उत्पन्न होती है और वह भी सूंघने वाले की सूंघने की शक्ति और संस्कारों पर सापेक्षिक रूप से निर्भर करती है।
6. तन्मात्रा जितनी सूक्ष्म होती है वह सुगंध को उतनी ही सरलता से ले जा सकती है। परंतु यदि अपक्व क्रूड, तन्मात्रा किसी सूक्ष्म के साथ मिल जाती है तो वह धनात्मक माइक्रोवाइटा वाहित करने के लिये अच्छा साधन बन जाती है और यदि वह क्रुड के साथ स्रबद्ध हो जाती है तो ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को ले जाने का साधन बन जाती हैं। इसलिये बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिये कि क्रूड विचारों को त्यागकर सूक्ष्म विचारों का साथ करे ।
7. वे जो संयोजन का पथ अपनाते हैं आध्यात्मिक सुगंध अवश्य ही अनुभव करते हैं यह सुगंध संसार की किसी भी सुगंध से मेल नहीं खाती हाॅं हम यह कह सकते हैं कि लगभग चंपा से या चमेली से या रातरानी जैसी लगती है। पर यह याद रखना चाहिये कि आध्यत्मिक साधना परमपुरुष को पाने के लिये की जाती है सुगंध के लिये नहीं।
8. सभी वस्तुओं में चाहे वे सजीव हों या निर्जीव उनमें संयुक्त और व्यक्तिगत गंध होती है। व्यक्तिगत गंध संबंधित के संस्कारों, भोजन, और भौतिक - मनोआत्मिक अभ्यास पर निर्भर होती है। मानव शरीर के सूक्ष्म भाग से जो गंध निकलती है वह क्रूड भाग से निकलने वाले भाग से भिन्न होती है। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा मानव शरीर और मन में गंध ,ध्वनि, स्पर्श , रूप और स्वाद के आधार पर बीमारियाॅं फैलाते हैं। कंजंक्टिवाइटिस, कोलेरा, स्मालपाक्स और इनफ्लुऐंजा आदि बीमारियाॅं ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से ही फैलती हैं।
No comments:
Post a Comment