6.4 स्वप्न, दूरबोध और अतीन्द्रिय बोध
जब इंद्रियों के द्वारा प्राप्त कोई स्पंदन चाहे वह भौतिक विचारों या इंद्रियों की तृप्ति के लिये हो , चेतन मन में प्रवेश कर जाते हैं तो यह क्रूड मन बेचैन और अस्थिर हो जाता है। नाडी़ तन्तुओं में इस स्पंदन का बना रहना उस अस्थिरता की तीब्रता पर निर्भर करता है। कभी कभी ये अन्य सहायक प्रभावों और अस्थिरता के कारणों से क्षीण भी हो जाया करते हैं। सोयी अवस्था में यदि किसी व्यक्ति के नाड़ी तन्तु बिना किसी वाह्य कारण के कंपित हो जाते हैं तो उसके मानसिक पटल पर वही कंपन विचार उत्पन्न कर जड़ तन्तुओं को सक्रिय कर देते हैं और पूर्व में आने वाले विचार काल्पनिक न लगकर वास्तविक प्रतीत होते हैं इन्हें स्वप्न कहते हैं। ये विचार स्थिर नहीं होते और बदलते रहते हैं और किसी बीमारी के कारण , अधिक भोजन करने के कारण उत्पन्न गैस के कारण आते हैं । जिनके विचार और भोजन सात्विक होते है उन्हें ये स्वप्न कभी नहीं आते। प्रगाढ़ निद्रा में आये स्वप्न में किसी दुर्घटना या अच्छी बुरी खबर की सूचना मिल सकती है यह तब होता है जब सर्वज्ञाता कारण या अचेतन मन से निकले स्पंदन शांत अवस्था के क्रूड या चेतन और सूक्ष्म या अवचेतन मन में प्रवेश कर जाते हैं । अचेतन मन के शीर्ष से निकले ये स्पंदन अवचेतन मन या सूक्ष्म मन को स्पंदित कर वर्तमान भूत और भविष्य में होने वाली घटनाओं की पूर्व सूचना दे सकते हैं ये भी स्वप्न ही होते हैं इसे परामानसिक बोध कहते हैं। कभी कभी जाग्रत अवस्था में भी अचेतन मन से निकले स्पंदन व्यक्ति के अवचेतन में प्रवेश कर जाते हैं तो थोड़े से अभ्यास करने पर इन कंपनों में निहित सूचनायें पाकर अपने निकटतम संबंधियोें के बारे में जान सकते हैं इसे दूरबोध कहते हैं। इस दूरबोध को एकाग्रता से नियंत्रित कर लेने पर जब चेतनमन या क्रूड मन शान्त और गंभीर हो तब दूरस्थ किसी निकटतम संबंधी को अपनी आॅंखों के सामने फिल्म की तरह देखा जा सकता है, इसे अतीन्द्रिय बोध कहते हैं। वास्तव में यह सब अचेतन या कारण मन की ही योग्यतायें होती हैं जो सर्वज्ञाता होता है। परामानसिक बोध की तुलना में दूरबोध विरला ही होता है और इससे भी विरला होता है अतीन्द्रियबोध। किसी महापुरुष के जीवन में अतीन्द्रियबोध आठ या दस बार से अधिक नहीं होता वह भी उसके अन्तर्बोधात्मक अभ्यास और संस्कारों पर निर्भर करता है। इस प्रकार के बोध में द्रष्टा या अनुभव करने वाले व्यक्ति के संस्कारों के कारण बिलकुल स्पष्ट जानकारी मिल पाना भी संभव नहीं होता। कुछ लोग भविष्य की जानकारी देने के लिये दर्पण, प्लेनचिट या अंगुली के नाखून पर पालिश का प्रयोग करते हैं। यह भी चेतन मन और अवचेतन मन का अल्पकाल के लिये अचेतन मन में अवशोषित हो जाने के कारण होता हैं और द्रष्टा का ज्ञान कुछ अधिक हो जाता है और अपने संस्कारों के आधीन वह बताने लगता है।
जब इंद्रियों के द्वारा प्राप्त कोई स्पंदन चाहे वह भौतिक विचारों या इंद्रियों की तृप्ति के लिये हो , चेतन मन में प्रवेश कर जाते हैं तो यह क्रूड मन बेचैन और अस्थिर हो जाता है। नाडी़ तन्तुओं में इस स्पंदन का बना रहना उस अस्थिरता की तीब्रता पर निर्भर करता है। कभी कभी ये अन्य सहायक प्रभावों और अस्थिरता के कारणों से क्षीण भी हो जाया करते हैं। सोयी अवस्था में यदि किसी व्यक्ति के नाड़ी तन्तु बिना किसी वाह्य कारण के कंपित हो जाते हैं तो उसके मानसिक पटल पर वही कंपन विचार उत्पन्न कर जड़ तन्तुओं को सक्रिय कर देते हैं और पूर्व में आने वाले विचार काल्पनिक न लगकर वास्तविक प्रतीत होते हैं इन्हें स्वप्न कहते हैं। ये विचार स्थिर नहीं होते और बदलते रहते हैं और किसी बीमारी के कारण , अधिक भोजन करने के कारण उत्पन्न गैस के कारण आते हैं । जिनके विचार और भोजन सात्विक होते है उन्हें ये स्वप्न कभी नहीं आते। प्रगाढ़ निद्रा में आये स्वप्न में किसी दुर्घटना या अच्छी बुरी खबर की सूचना मिल सकती है यह तब होता है जब सर्वज्ञाता कारण या अचेतन मन से निकले स्पंदन शांत अवस्था के क्रूड या चेतन और सूक्ष्म या अवचेतन मन में प्रवेश कर जाते हैं । अचेतन मन के शीर्ष से निकले ये स्पंदन अवचेतन मन या सूक्ष्म मन को स्पंदित कर वर्तमान भूत और भविष्य में होने वाली घटनाओं की पूर्व सूचना दे सकते हैं ये भी स्वप्न ही होते हैं इसे परामानसिक बोध कहते हैं। कभी कभी जाग्रत अवस्था में भी अचेतन मन से निकले स्पंदन व्यक्ति के अवचेतन में प्रवेश कर जाते हैं तो थोड़े से अभ्यास करने पर इन कंपनों में निहित सूचनायें पाकर अपने निकटतम संबंधियोें के बारे में जान सकते हैं इसे दूरबोध कहते हैं। इस दूरबोध को एकाग्रता से नियंत्रित कर लेने पर जब चेतनमन या क्रूड मन शान्त और गंभीर हो तब दूरस्थ किसी निकटतम संबंधी को अपनी आॅंखों के सामने फिल्म की तरह देखा जा सकता है, इसे अतीन्द्रिय बोध कहते हैं। वास्तव में यह सब अचेतन या कारण मन की ही योग्यतायें होती हैं जो सर्वज्ञाता होता है। परामानसिक बोध की तुलना में दूरबोध विरला ही होता है और इससे भी विरला होता है अतीन्द्रियबोध। किसी महापुरुष के जीवन में अतीन्द्रियबोध आठ या दस बार से अधिक नहीं होता वह भी उसके अन्तर्बोधात्मक अभ्यास और संस्कारों पर निर्भर करता है। इस प्रकार के बोध में द्रष्टा या अनुभव करने वाले व्यक्ति के संस्कारों के कारण बिलकुल स्पष्ट जानकारी मिल पाना भी संभव नहीं होता। कुछ लोग भविष्य की जानकारी देने के लिये दर्पण, प्लेनचिट या अंगुली के नाखून पर पालिश का प्रयोग करते हैं। यह भी चेतन मन और अवचेतन मन का अल्पकाल के लिये अचेतन मन में अवशोषित हो जाने के कारण होता हैं और द्रष्टा का ज्ञान कुछ अधिक हो जाता है और अपने संस्कारों के आधीन वह बताने लगता है।
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