Friday, 13 February 2015

6.2 मानव शरीर और योग मनोविज्ञानः

6.2 मानव शरीर और योग मनोविज्ञानः
प्रत्येक मनुष्य का भौतिक शरीर असंख्य सैलों से मिलकर बना है जो दो प्रकार के होते हैं, प्रोटोजोइक और मेटाजोइक । दूसरे शब्दों में पूरी मानव संरचना को एक मेटाजोइक सैल कह सकते हैं। प्रत्येक सैल का स्वयं का मन और आत्मा होती है पर सैलों का मन मानव मन से भिन्न होता है। मेटाजोइक मन, प्रोटोजोइक मन से अधिक उन्नत होता है। मानव मन इन्हीं सैलों से बनता है पर उनके मन से अधिक उन्नत होता है। मानव मन इकाई लघु ब्रह्माण्ड  और प्रोटोजोइक तथा मेटाजोइक सैलों का समूह है जो कि व्यक्तिगत होता है। जिस प्रकार  ब्रहत्ब्रह्माॅंडीय मन, इस ब्रह्माॅंड की प्रत्येक सत्ता से अविभाज्य रूपसे जुड़ा होता है उसी प्रकार इकाई मन भी अपने संयोजी सैलों के साथ अविभाज्य रूपसे जुड़ा रहता है। इस तरह इकाई मन और सभी प्रकार के सैलों में एक सहसंबंध रहता है। सामान्यतः एक सैल 21 दिन तक जीवित रहता है उसके बाद उसके स्थान पर नया सैल जन्म ले लेता है। जब कोई अपने शरीर के किसी भाग को हाथ से रगड़ता है तो उस स्थान के कुछ सैल नष्ट हो जाते हैं पर शरीर ज्यों का त्यों बना रहता है, इस लिये कि अधिकाॅंशतः वहाॅं सैकड़ों मृत सैलों के अवशेष जमे रहते हैं। नये सैल वायु, पानी, प्रकाश  और जो भोजन हम करते हैं उन से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार जिस प्रकार की प्रकृति का भोजन किया जाता है सैल भी उसी प्रकृति के उत्पन्न होते हैं और मन को प्रभावित करते हैं। इस लिये भोजन का चयन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिये। अतः देशकाल और पात्र के अनुसार सात्विक या राजसिक भोजन लेना चाहिये तामसिक नहीं। सात्विक भोजन करने से सात्विक सैल उत्पन्न होंगे और वे आध्यात्मिक साधना के प्रति प्रेम और उन्नतिदायक वातावरण पैदा करेंगे। लगभग 21 दिन के बाद पुराने सैल मर जाते हैं और उनके स्थान पर नये सैल जन्म ले लेते हैं। अनुभवी डाक्टर इसी लिये बीमार व्यक्ति को उसकी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा की पुनःप्राप्ति के लिये उसे कम से कम 21 दिन तक आराम करने की सलाह देते हैं। स्पष्ट है कि सैल जीवधारी हैं और अनेक जन्मों के रूपान्तरण के फलस्वरूप वे मानव शरीर में आ सके हैं और इसी क्रम में बढ़ते हुये  एक दिन मानव मन भी पा सकेंगे। मानव शरीर की चमक इन सभी सैलों की संयुक्त चमक का परिणाम होती है। अधिक उम्र होने पर या बीमार पड़ जाने पर यह चमक कम हो जाती है इस का कारण कुछ सैलों का मर जाना ही है। केवल मानव के चेहरे में ही दसलाख से भी अधिक सैल पाये जाते हैं। जब कोई व्यक्ति क्रोधित होता है तो उसके चेहरे से अधिक मात्रा में खून तेजी से बहता है जिससे अनेक सैल मर जाते हैं और चेहरा लाल हो जाता है। हत्या करने वाले दुष्ट लोग भी इसी कारण अपने चेहरे के आधार पर पहचाने जाते हैं। साधना करने वाले आध्यात्मिक और सात्विक व्यक्ति के चेहरे पर भी सात्विक चमक रहती है। अतः जब सैल, भोजन और पानी से और मनुष्य की प्रकृति सैलों की प्रकृति से प्रभावित होते हैं तो अवश्य  ही भोजन के चयन में बहुत सावधानी रखना चाहिये।

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