Sunday, 1 February 2015

5.9 माइक्रोवाइटमः वैज्ञानिक शोध की नयी चुनौती

पराज्ञान  के क्षेत्र में अब हम ऐसे विषय की जानकारी दे  रहे हैं , जो आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए आध्यात्म की चुनौती है। खंड 5.9 के उपखण्डों 5.91 से  5.96 तक क्रमशः  दिए गए वर्णन से पराज्ञान के नए रहस्यों का उदघाटन किया गया है। भौतिक विज्ञानी पदार्थ को ऊर्जा का संघनित रूप मानते हैं परन्तु यह रहस्य ही  है कि इस ऊर्जा का उद्गम कहाँ से होता है। ऊर्जा का उपभोग/ उपयोग  करने वाले जीवधारी  कहाँ से आ जाते हैं। इन खण्डों में "माइक्रोवाइटम " नामक भौतिक-मनो-आध्यात्मिक  पद को इलेक्ट्रान के लाखवें भाग से भी छोटा माना गया है और इसी आधार पर भौतिक विज्ञान को आध्यात्म विज्ञान से जोड़कर अनेक असंभव तथ्यों को संभव होते हुए समझाया गया है। प्रथम दृष्ट्या यह हंसी में उड़ाने  योग्य लगेगा क्योंकि वैज्ञानिक इलेक्ट्रान को अविभाज्य मानते हैं , पर जब गहराई से भीतर घुसेंगे तो आप इस बात से अवश्य सहमत होंगे कि विश्व को कृत्रिम विनाश से बचाना है तो विज्ञान सम्मत आध्यात्म और आध्यात्म सम्मत विज्ञान के सहारे ही यह हो सकता है। इलेक्ट्रानों के मेनिपुलेशन से आज यह संसार आश्चर्यों से भर गया है और इलेक्ट्रानिक युग कहलाता है , अब माइक्रोवाइटम की खोज से आगामी युग में अविश्वश्नीय और आश्चर्यजनक संभावनाएं तलाशी जा सकेंगी जिसे  माक्रोवाईटा युग कहा जायेगा।  


5.9 माइक्रोवाइटमः वैज्ञानिक शोध की नयी चुनौती
प्रकृति अपनी संचर क्रिया में सूक्ष्म से स्थूल और प्रतिसंचर क्रिया में स्थूल से सूक्ष्म की ओर अपनी गतिविधियाॅं जारी रखती है जिसे ब्रह्म चक्र कहते हैं। स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाने पर परमाणु के भीतर इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्युट्रान आदि आवेशित या अनावेशित कणों के बारे में ही भौतिक विज्ञान से जानकरी मिल पाती  है पर इन कणों से भी सूक्ष्म अस्तित्व का होना संभावित है। ठीक उसी प्रकार मानसिक क्षेत्र में भी एक्टोप्लाज्म से या उसके वाहरी आवरण एन्डोप्लाज्म से भी सूक्ष्म अस्तित्व के होने को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। योग के बल पर यह अनुभव किया गया है कि भौतिक क्षेत्र के वे अस्तित्व जो इलेक्ट्रानों अथवा प्रोटानों से  और मानसिक क्षेत्र के वे अस्तित्व जो एक्टोप्लाज्म से भी सूक्ष्म होते हैं उनका प्रभाव अनुभव किया जाता है और  इन्हें एकवचन में माइक्रोवाइटम कहा जा सकता है। ये माइक्रोवाइटा प्रोटान और एक्टोप्लाज्म के बीच स्थान पा सकते हैं पर न तो ये प्रोटोप्लाज्मिक क्रम के होते हैं और न ही इलेक्ट्रान। परंतु इन्हें इस विश्व  के जीवनदाता के प्रारंभिक स्तर पर माना जा सकता है। चूंकि इस विश्व  में जीवन का क्षेत्र कार्वन (carbon) से उद्भूत हुआ है अतः इनका संबंध कार्वन एटमों से अवश्य  हो सकता है। चूंकि इनके लक्षणों की जानकारी नहीं है अतः उन्हें ब्रह्माॅंड के रहस्यमय उत्सर्जन ही माना जाना चाहिये।
5.91 माइक्रोवाईटा के संभावित गुण: 
1. इनकी सघनता और सूक्ष्मता एकसमान नहीं होती। कुछ को उच्च विभेदन क्षमता के माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है पर कुछ को नहीं, परंतु उनके कार्य व्यवहार से उन्हें अनुभव किया जा सकता है। कुछ की सूक्ष्मता इतनी अधिक हो सकती है कि वे सीधे ही हमारे अनुभव में नहीं आ सकते पर विशेष प्रकार की यौगिक विधियों से पकड़ में आ सकते हैं । इस प्रकार माइक्रोवाइटा को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बाॅंटा जा सकता है। एक तो वे जो माइक्रोस्कोप से देखे जा सकते हैं, दूसरे वे जो अपनी गतिविधियों के स्पंदन से पहचाने जा सकते हैं और तीसरे वे विशेष प्रकार के अवभास (जो वास्तव में अपनी ही सीमा में संकल्पना का परावर्तन होते है) द्वारा जाने जा सकते हैं। ये अवभास आघ्यात्मिक झुकाव के उच्च विकसित मनों के द्वारा अनुभव किये जा सकते हैं।
2. माइक्रोस्कोप की पकड़ में आ जाने वाले माइक्रोवाइटा को आजकल ‘‘वाइरस‘‘ कहते हैं परंतु इसका सही नाम माइक्रोवाइटम होना चाहिये वाइरस नहीं।
3. ये माइक्रोवाइटा पूरे ब्रह्माॅंड में एक विश्व  से दूसरे में बिना किसी रोकटोक के आ जा सकते हैं। अन्य मनोभौतिक जीवों की तरह वे भी अपने अस्तित्व का अनुभव करते हैं अपनी संख्या में बृद्धि करते हैं और मरते हैं । उनके आवागमन पर किसी भी प्रकार के भौतिक ताप या दाब या परिवर्तन का  कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
4. ये माइक्रोवाइटा एकसाथ अनेक माध्यमों में गति कर सकते हैं। ये विचारों और तन्मात्राओं अर्थात् शब्द, स्पर्श , रूप, रस, और गंध आदि के द्वारा गति कर सकते हैं। अत्यंत सूक्ष्म माइक्रोवाइटा उन्नत मस्तिष्क वाले व्यक्ति के विचारों द्वारा किसी ग्रह या अन्य ग्रहों तक भेजे जा सकते हैं।
5. एक सौर परिवार से दूसरे में या एक ग्रह से दूसरे ग्रह में जीवन का संचार करने या जीवन वाहक के रूप मे सूक्ष्म माइक्रोवाइटम ही सक्रिय रहते हैं। वे इस ब्रह्माॅंड के किसी भी कोने के किसी भी भौतिक शरीर के मन या विकसित या अविकसित देहधारी को नष्ट कर सकते हैं। इससे यह कहा जा सकता है कि जीवन के उद्गम का श्रोत यूनीसेल्युलर प्रोटोजोआ या इकाई प्रोटोप्लाज्मिक सैल नहीं बल्कि यही इकाई माइक्रोवाइटम है।
6. पूर्वकाल के ऋषियों ने अपने योगबल से उनकी प्रकृति और सूक्ष्मता के आधार पर इन माइक्रोवाइटा को सात भागों में विभाजित किया है वे हैं, यक्ष, गंधर्व, विद्याधर, किन्नर, सिद्ध, प्रकृतिलीन और विदेहलीन। अतः साधना के द्वारा इनकी खेज की जाकर यदि नियंत्रण पा लिया जाता है तो संसार में बलसाम्य और भारसाम्य बनाये रखने में बहुत मदद मिल सकती है।
7. प्रदूषण से माइक्रोवाइटम का परोक्ष संबंध है, पानी और हवा में प्रदूषण न भी हो तो भी माइक्रोवाइटा उत्पन्न होते रहते हैं । वृत्तीय आकार के माइक्रोवाइटा जड़ता युक्त मन में अर्थात् काममय कोष में सक्रिय हो जाते हैं। इन नकारात्मक माइक्रोवाइटा को दूर करने के लिये सामूहिक रूपसे किये गये शुद्धतापूर्ण विचारों के आधात प्रयुक्त किये जा सकते हैं। इसलिये सामूहिक रूपसे उन्नत मन और विचारों वाले व्यक्तियों का समाज में होना अनिवार्य हो जाता हैं।  आध्यात्मिक रूपसे उन्नत व्यक्ति अपने विचारों से शत्रु माइक्रोवाइटा को समाप्त कर सकते हैं।
8. सभी प्रकार की दुर्गंधों में, सड़े गले पदार्थो में , नकारात्मक माइक्रोवाइटा होते हैं। दूध से दही का निर्माण माइक्रोवाइटा ही करते हैं, 48 घंटों तक दही धनात्मक माइक्रोवाइटा के प्रभाव में होता है, इस अवधि में उसके सर्वाधिक पोषक तत्व रहते हैं पर इसके बाद नकारात्मक माइक्रोवाइटा सक्रिय हो जाते हैं अतः उससे दुर्गंध आने लगती है और मनुष्यों के उपयोग के लिये नहीं रहता। दही में जब तक धनात्मक माइक्रोवाइटा रहते हैं तभी तक उसके पोषक तत्व रहते हैं।
9. अपनी प्रकृति के अनुसार माइक्रोवाइटा ऋणात्मक, साधारण और धनात्मक होते हैं। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा अपने आप प्रकृति में क्रियाशील होते हैं जबकि धनाात्मक माइक्रोवाइटा विशेष प्रकार की निर्मित तरंगों के द्वारा क्रियाशील होते हैं।  ऋणात्मक माइक्रोवाइटा मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्रों में ही कार्यकरते हैं और धीरे धीरे ऊपर बढ़ते हैं। यदि सीधे ही इन्हें ऊपरी चक्रों पर क्रियाशील कर दिया जावे तो मनुष्य की मृत्यु हो जावेगी। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के सक्रिय होने पर कमर , किडनी आदि निम्न भागों की वीमारियाॅं या दर्द होते हैं। सामान्य माइक्रोवाइटा किडनी, लीवर, छाती और पेट को प्रभावित करते हैं जबकि धनात्मक माइक्रोवाइटा प्रकृति के द्वारा कभी नहीं फैलते वे सद्गुरु के चाहने पर वह अपनी तरंगों के द्वारा 24 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष पर ही आरोपित करते हैं क्योंकि इस आयु के बाद ही उनकी नाडि़याॅं इन्हें प्राप्त करने के लिये पर्याप्त द्रढ़ हो पाती हैं। धनात्मक माइक्रोवाइटा सत्संग से भी प्राप्त होते हैं।

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