5.96 माइक्रोवाइटा के शोधकार्य संबंधी सुझाव
1. माइक्रोवाइटा का क्षेत्र व्यापक है अतः इस पर शोधकार्य करने के लिये मानवमनोविज्ञान का अध्ययन करना आवश्य क होगा। भौतिकी , रसायन, चिकित्सा, औषधि और मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इसका शोध करना होगा। भौतिकी में अबतक परमाणु के स्थूल भाग पर ही शोध हुए है, सूक्ष्म भाग पर नहीं । माइक्रोवाइटा एटम के सूक्ष्म भाग से संबंधित है इस क्षेत्र में कार्य करने के लिये आध्यात्मिक साधना का अभ्यास करने वाले ही सफल हो सकते हैं। जब एटम का स्थूल भाग एटम बम जैसी ऊर्जा दे सकता है तो सूक्ष्म भाग तो और चमत्कार करेगा। इसलिये स्थूल भाग के अनुसंधान का उपयोग भौतिक जगत के लिये और सूक्ष्म भाग के अनुसंधान का उपयोग अन्य महान उपलब्धियों में किया जा सकेगा। अतः स्थूल और सूक्ष्म दोनों भागों में अनुसंधान एक साथ होना चाहिये, सूक्ष्म भाग विचारों के अधिक निकट है और स्थूल भाग पदार्थ के।
2. माइक्रोवाइटा जीवित अस्तित्व हैं अतः उनका शरीर है यद्यपि वह विचारों की तरह सूक्ष्म होता है। ये जीवात्मा को पदार्थ के निकट लाते हैं परंतु जो घटक जीवन के निर्माण में सहायक होते हैं वे आध्यात्मिक और परामानसिक जिज्ञासा के अंतर्गत आते हैं। माइक्रोवाइटा पदार्थ और विचारों के बीच की सुंदर कड़ी हैं । पदार्थ के प्रारंभ और माइक्रोवाइटा के अंतिम स्तर के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा होती है। विचारों को आधार बनाकर चलने और उनसे प्रभावित होने के कारण माइक्रोवाइटा रिसर्च का काम सबसे पहले मानसिक प्रयोगशाला में होना चाहिये। पदार्थ या परमाणुओं का सूक्ष्मतम भाग जो विचारों के अधिक निकट है उसे आध्यात्मिक साधना के द्वारा समझा जा सकता है। परमाणुओं के कुछ सूक्ष्म भागों पर अनुसंधान करना आध्यात्मिक विधियों से ही संभव है और माइक्रोवाइटा के स्थूल भाग का अनुसंधान भौतिक प्रयोगशालाओं में ही संभव है अतः दोनों क्षेत्रों में यह कार्य एक साथ किया जाना चाहिये।
3. माइक्रोवाइटा की प्रकृति आर्गेनिक और इनआर्गेनिक क्षेत्रों को जोड़ने की होती है अतः इनके शोध से एकीकृत क्षेत्र निर्मित होगा। डाक्टरों का काम ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से अधिक होता है ये विभिन्न वीमारियों और तन्मात्राओं के दूसरे ग्रहों और अन्तरिक्ष से लाते हैं। डाक्टरों को चाहिये कि वे ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के गुणों को पहचाने इससे एक ओर तो वे बीमारियों का उचित इलाज कर सकेँगे वहीं दूसरी ओर नयी बीमारियाॅं लाने वाले ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के आक्रमण से बचने के लिये पहले से ही सतर्क रह सकेंगे। एलोपैथिक दवाइयों से ऋणात्मक माइक्रोवाइटा का साॅंद्रण बीमारी के स्थान पर अधिक हो जाता है दवा से वीमारी ठीक नहीं होती वह तो अपने आप होती है दवा केवल बीमारी को रोक लेती है। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के अधिक साॅंद्रण हो जाने पर वह दवा का प्रभाव कम कर देते हैं यही कारण है कि एलोपैथिक दवाओं से प्रत्येक दस वर्षों में अनेक नयी वीमारियों का जन्म हो रहा है। इसका समाधान केवल यह है कि हमें बाहर से तो दवा लेकर वीमारी को रोकना होगा और भीतर से आध्यात्मिक साधना करके ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को समाप्त करने के लिये धनात्मक माइक्रोवाइटा के साॅंद्रण को बढ़ाना होगा।
4. कास्मिक क्षेत्र में असंबंधित तन्मात्राओं के तल जिनकी कहीं सघनता और कहीं विरलता होती है, जब केवल परावर्तन करती है तो परावर्तित ऊर्जा सात्विक संवेदन निर्मित करती है और जब परावर्तन और अपवर्तन दोनों करती है तो राजसिक संवेदन पैदा करती है और जब केवल अपवर्तन करती है तो तामसिक संवेदन उत्पन्न होते है। इसलिये पदार्थ बोतल में भरी ऊर्जा की तरह नहीं है बल्कि ऊर्जा की ही बोतल है। अब देखिये, मन की संकल्पना के भीतर आने वाली सभी सत्तायें अमूर्त होती हैं और वे जो ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंद्रियों के माध्यम से आभासित या अनुभव होती हैं वे शुद्ध पदार्थ होती हैं। परंतु माइक्रोवाइटा और ऊर्जा की स्थिति पदार्थ और अमूर्त के बीच की भिन्नता की स्पष्ट खिंची हुई रेखा पर होती है। ऊर्जा प्रायः आभासित होती है पर सूक्ष्म ऊर्जा नहीं , इसी प्रकार सूक्ष्म माइक्रोवाइटा भी आभास की सीमा में नहीं आते पर वे संकल्पना के परास में आते हैं। स्पष्ट है कि माइक्रोवाइटा, तन्मात्राओं के भौतिक मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में और ऊर्जा केवल भौतिक क्षेत्र में ही अधिक सक्रिय होते हैं। इसीलिये ये इन्हीं क्षेत्रों में अधिक प्रबल होते हैं।
5. ऋणात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक और मनोभौतिक क्षेत्र में और धनात्मक माइक्रोवाइटा मानसिक और मानसाध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक अच्छी तरह क्रियाशील रह सकते हैं। ऊर्जा अंधशक्ति है, उसके पास अच्छे बुरे का निर्णय काने की क्षमता नहीं है। पर, माइक्रोवाइटा वैसे नहीं हैं वे अपने साथ विवेक रखते हैं। यह दोनों में मौलिक अंतर है। ऊर्जा को उसके विभिन्न रूपों में पारस्पिरिक रूपान्तिरित किया जा सकता है पर पदार्थ को केवल एक बार एकतरफा ही रूपान्तिरित किया जा सकता है वह भी हमेशा नहीं। कास्मिक क्षेत्र में यदि हम ज्ञाता (know-er) और ज्ञात (known) भाग को, जो हम अनुभव करते हैं या संकल्पित करते हैं या आभासित करते हैं, उससे अलग करने का प्रयत्न करें तो भौतिक स्तर पर कासमस, क्रियारतसत्ता (doing entity) होता है और माइक्रोवाइटा कहलाता है, और यह भौतिक संसार कृतसत्ता (done entity) । कासमिक स्तर पर जानने वाली सत्ता (knowing faculty) , परम कारण अथवा ऊर्जा का सूक्ष्मतम भाग होता है और मानसिक तथा मानसाध्यात्मिक संसार में ज्ञात घटक (known counterpart) कहलाता है। जब ऊर्जा इस भौतिक जगत के संपर्क में होती है तो उसे विद्युत, चुंबक, ध्वनि आदि में रूपान्तरित कर सकते हैं। परंतु यही जब कासमिक ज्ञात क्षेत्र में होती है तो वह विभिन्न मानसिक संसारों अथवा संकायों का निर्माण करती है। इसमें से आकर वह व्यक्तिगत वृत्तियों से होती हुई जड़ता में विलीन हो जाती है। यदि यह कासमिक ज्ञानात्मक सत्ता की ओर मोड़ दी जाती है तो वह मानसाध्यात्मिक गति में बदल जाती है और अंततः आध्यात्मिक सत्ता में।
6. माइक्रोवाइटम यद्यपि प्रारंभिक रूपमें कासमिक क्षेत्र के (doer portion) से संबंधित होता है पर यदि वह
भौतिक जगत में से गुजरता है तो वह अच्छा और बुरा दोनों कर सकता है। यदि वह सूक्ष्म से स्थूल की ओर जाता है तो वह मानव मन और आचरण को पतित करता है और यदि स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाता है तो वह आध्यात्मिक साधक को उसके लक्ष्य पाने में मदद करता है। यदि माइक्रोवाइटा तन्मात्राओं अथवा वृत्तियों के विभिन्न तलों से निकलता है तो न केवल उनका ताप परिवर्तित करता है वरन् मानसिक तरंगों और उनकी तरंगदैध्र्यों में मौलिक परिवर्तन कर देता है। हारमोन्स के स्राव और उनके रूपान्तरण और गति आदि को भी परिवर्तित कर देता हैं। इसलिये यह प्रयोग भौतिक प्रयोगशालाओं के साथ ही साथ मानसिक प्रयोगशालाओं में भी किया जाना चाहिये।
7. (doer I) या कृतापुरुष वास्तव में ऋणात्मक और धनात्मक माइक्रोवाइटा दोनों का साॅंद्रित रूप है जो विश्व में संतुलन वनाये रखता है। धनात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक -मानसाध्यात्मिक साधना में प्रयुक्त होते हैं । ऊर्जा (knower I) है ,अथवा "ज्ञ" पुरुष कहलाती है, और धन और ऋण माइक्रोवाइटा के साथ विश्व में भ्रमण करती है।
8. प्राणऊर्जा के विना साधना संभव नहीं होती इसलिये उचित सात्विक भोजन करने पर ही प्राणशक्ति प्राप्त होती है और विभिन्न ऊर्जाओं में रूपान्तरित होती रहती है।
9. कम्युनिस्ट और पूंजीवादी देशों में समाज के भौतिक और भौतिक-मानसिक क्षेत्रों में ऋणात्मक
माइक्रोवाइटा का अत्यधिक उपयोग होते रहने के कारण धनात्मक माइक्रोवाइटा का बहुत सा भाग अप्रयुक्त रह गया है अतः वहाॅं अनैतिकता की समस्या आ गयी है। इस समस्या को दूर करने के लिये वहाॅं साधना और सेवा के द्वारा इस अप्रयुक्त धनात्मक माइक्रोवाइटा का पूर्ण उपयोग किया जा सकता है।
1. माइक्रोवाइटा का क्षेत्र व्यापक है अतः इस पर शोधकार्य करने के लिये मानवमनोविज्ञान का अध्ययन करना आवश्य क होगा। भौतिकी , रसायन, चिकित्सा, औषधि और मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इसका शोध करना होगा। भौतिकी में अबतक परमाणु के स्थूल भाग पर ही शोध हुए है, सूक्ष्म भाग पर नहीं । माइक्रोवाइटा एटम के सूक्ष्म भाग से संबंधित है इस क्षेत्र में कार्य करने के लिये आध्यात्मिक साधना का अभ्यास करने वाले ही सफल हो सकते हैं। जब एटम का स्थूल भाग एटम बम जैसी ऊर्जा दे सकता है तो सूक्ष्म भाग तो और चमत्कार करेगा। इसलिये स्थूल भाग के अनुसंधान का उपयोग भौतिक जगत के लिये और सूक्ष्म भाग के अनुसंधान का उपयोग अन्य महान उपलब्धियों में किया जा सकेगा। अतः स्थूल और सूक्ष्म दोनों भागों में अनुसंधान एक साथ होना चाहिये, सूक्ष्म भाग विचारों के अधिक निकट है और स्थूल भाग पदार्थ के।
2. माइक्रोवाइटा जीवित अस्तित्व हैं अतः उनका शरीर है यद्यपि वह विचारों की तरह सूक्ष्म होता है। ये जीवात्मा को पदार्थ के निकट लाते हैं परंतु जो घटक जीवन के निर्माण में सहायक होते हैं वे आध्यात्मिक और परामानसिक जिज्ञासा के अंतर्गत आते हैं। माइक्रोवाइटा पदार्थ और विचारों के बीच की सुंदर कड़ी हैं । पदार्थ के प्रारंभ और माइक्रोवाइटा के अंतिम स्तर के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा होती है। विचारों को आधार बनाकर चलने और उनसे प्रभावित होने के कारण माइक्रोवाइटा रिसर्च का काम सबसे पहले मानसिक प्रयोगशाला में होना चाहिये। पदार्थ या परमाणुओं का सूक्ष्मतम भाग जो विचारों के अधिक निकट है उसे आध्यात्मिक साधना के द्वारा समझा जा सकता है। परमाणुओं के कुछ सूक्ष्म भागों पर अनुसंधान करना आध्यात्मिक विधियों से ही संभव है और माइक्रोवाइटा के स्थूल भाग का अनुसंधान भौतिक प्रयोगशालाओं में ही संभव है अतः दोनों क्षेत्रों में यह कार्य एक साथ किया जाना चाहिये।
3. माइक्रोवाइटा की प्रकृति आर्गेनिक और इनआर्गेनिक क्षेत्रों को जोड़ने की होती है अतः इनके शोध से एकीकृत क्षेत्र निर्मित होगा। डाक्टरों का काम ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से अधिक होता है ये विभिन्न वीमारियों और तन्मात्राओं के दूसरे ग्रहों और अन्तरिक्ष से लाते हैं। डाक्टरों को चाहिये कि वे ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के गुणों को पहचाने इससे एक ओर तो वे बीमारियों का उचित इलाज कर सकेँगे वहीं दूसरी ओर नयी बीमारियाॅं लाने वाले ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के आक्रमण से बचने के लिये पहले से ही सतर्क रह सकेंगे। एलोपैथिक दवाइयों से ऋणात्मक माइक्रोवाइटा का साॅंद्रण बीमारी के स्थान पर अधिक हो जाता है दवा से वीमारी ठीक नहीं होती वह तो अपने आप होती है दवा केवल बीमारी को रोक लेती है। ऋणात्मक माइक्रोवाइटा के अधिक साॅंद्रण हो जाने पर वह दवा का प्रभाव कम कर देते हैं यही कारण है कि एलोपैथिक दवाओं से प्रत्येक दस वर्षों में अनेक नयी वीमारियों का जन्म हो रहा है। इसका समाधान केवल यह है कि हमें बाहर से तो दवा लेकर वीमारी को रोकना होगा और भीतर से आध्यात्मिक साधना करके ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को समाप्त करने के लिये धनात्मक माइक्रोवाइटा के साॅंद्रण को बढ़ाना होगा।
4. कास्मिक क्षेत्र में असंबंधित तन्मात्राओं के तल जिनकी कहीं सघनता और कहीं विरलता होती है, जब केवल परावर्तन करती है तो परावर्तित ऊर्जा सात्विक संवेदन निर्मित करती है और जब परावर्तन और अपवर्तन दोनों करती है तो राजसिक संवेदन पैदा करती है और जब केवल अपवर्तन करती है तो तामसिक संवेदन उत्पन्न होते है। इसलिये पदार्थ बोतल में भरी ऊर्जा की तरह नहीं है बल्कि ऊर्जा की ही बोतल है। अब देखिये, मन की संकल्पना के भीतर आने वाली सभी सत्तायें अमूर्त होती हैं और वे जो ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंद्रियों के माध्यम से आभासित या अनुभव होती हैं वे शुद्ध पदार्थ होती हैं। परंतु माइक्रोवाइटा और ऊर्जा की स्थिति पदार्थ और अमूर्त के बीच की भिन्नता की स्पष्ट खिंची हुई रेखा पर होती है। ऊर्जा प्रायः आभासित होती है पर सूक्ष्म ऊर्जा नहीं , इसी प्रकार सूक्ष्म माइक्रोवाइटा भी आभास की सीमा में नहीं आते पर वे संकल्पना के परास में आते हैं। स्पष्ट है कि माइक्रोवाइटा, तन्मात्राओं के भौतिक मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में और ऊर्जा केवल भौतिक क्षेत्र में ही अधिक सक्रिय होते हैं। इसीलिये ये इन्हीं क्षेत्रों में अधिक प्रबल होते हैं।
5. ऋणात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक और मनोभौतिक क्षेत्र में और धनात्मक माइक्रोवाइटा मानसिक और मानसाध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक अच्छी तरह क्रियाशील रह सकते हैं। ऊर्जा अंधशक्ति है, उसके पास अच्छे बुरे का निर्णय काने की क्षमता नहीं है। पर, माइक्रोवाइटा वैसे नहीं हैं वे अपने साथ विवेक रखते हैं। यह दोनों में मौलिक अंतर है। ऊर्जा को उसके विभिन्न रूपों में पारस्पिरिक रूपान्तिरित किया जा सकता है पर पदार्थ को केवल एक बार एकतरफा ही रूपान्तिरित किया जा सकता है वह भी हमेशा नहीं। कास्मिक क्षेत्र में यदि हम ज्ञाता (know-er) और ज्ञात (known) भाग को, जो हम अनुभव करते हैं या संकल्पित करते हैं या आभासित करते हैं, उससे अलग करने का प्रयत्न करें तो भौतिक स्तर पर कासमस, क्रियारतसत्ता (doing entity) होता है और माइक्रोवाइटा कहलाता है, और यह भौतिक संसार कृतसत्ता (done entity) । कासमिक स्तर पर जानने वाली सत्ता (knowing faculty) , परम कारण अथवा ऊर्जा का सूक्ष्मतम भाग होता है और मानसिक तथा मानसाध्यात्मिक संसार में ज्ञात घटक (known counterpart) कहलाता है। जब ऊर्जा इस भौतिक जगत के संपर्क में होती है तो उसे विद्युत, चुंबक, ध्वनि आदि में रूपान्तरित कर सकते हैं। परंतु यही जब कासमिक ज्ञात क्षेत्र में होती है तो वह विभिन्न मानसिक संसारों अथवा संकायों का निर्माण करती है। इसमें से आकर वह व्यक्तिगत वृत्तियों से होती हुई जड़ता में विलीन हो जाती है। यदि यह कासमिक ज्ञानात्मक सत्ता की ओर मोड़ दी जाती है तो वह मानसाध्यात्मिक गति में बदल जाती है और अंततः आध्यात्मिक सत्ता में।
6. माइक्रोवाइटम यद्यपि प्रारंभिक रूपमें कासमिक क्षेत्र के (doer portion) से संबंधित होता है पर यदि वह
भौतिक जगत में से गुजरता है तो वह अच्छा और बुरा दोनों कर सकता है। यदि वह सूक्ष्म से स्थूल की ओर जाता है तो वह मानव मन और आचरण को पतित करता है और यदि स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाता है तो वह आध्यात्मिक साधक को उसके लक्ष्य पाने में मदद करता है। यदि माइक्रोवाइटा तन्मात्राओं अथवा वृत्तियों के विभिन्न तलों से निकलता है तो न केवल उनका ताप परिवर्तित करता है वरन् मानसिक तरंगों और उनकी तरंगदैध्र्यों में मौलिक परिवर्तन कर देता है। हारमोन्स के स्राव और उनके रूपान्तरण और गति आदि को भी परिवर्तित कर देता हैं। इसलिये यह प्रयोग भौतिक प्रयोगशालाओं के साथ ही साथ मानसिक प्रयोगशालाओं में भी किया जाना चाहिये।
7. (doer I) या कृतापुरुष वास्तव में ऋणात्मक और धनात्मक माइक्रोवाइटा दोनों का साॅंद्रित रूप है जो विश्व में संतुलन वनाये रखता है। धनात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक -मानसाध्यात्मिक साधना में प्रयुक्त होते हैं । ऊर्जा (knower I) है ,अथवा "ज्ञ" पुरुष कहलाती है, और धन और ऋण माइक्रोवाइटा के साथ विश्व में भ्रमण करती है।
8. प्राणऊर्जा के विना साधना संभव नहीं होती इसलिये उचित सात्विक भोजन करने पर ही प्राणशक्ति प्राप्त होती है और विभिन्न ऊर्जाओं में रूपान्तरित होती रहती है।
9. कम्युनिस्ट और पूंजीवादी देशों में समाज के भौतिक और भौतिक-मानसिक क्षेत्रों में ऋणात्मक
माइक्रोवाइटा का अत्यधिक उपयोग होते रहने के कारण धनात्मक माइक्रोवाइटा का बहुत सा भाग अप्रयुक्त रह गया है अतः वहाॅं अनैतिकता की समस्या आ गयी है। इस समस्या को दूर करने के लिये वहाॅं साधना और सेवा के द्वारा इस अप्रयुक्त धनात्मक माइक्रोवाइटा का पूर्ण उपयोग किया जा सकता है।
10. परमाणु के भीतर ऊर्जा भरी होती है क्योंकि उसे पदार्थ रूपी संग्राहक की आवश्यकता होती है बिना उस आधार के वह नहीं रह सकती अतः जब परमाणु का विखंडन किया जाता है तो ऊर्जा उत्सर्जित होती है जो प्रचंड वेग से चारों ओर दूसरे संग्राहक को तलाशती है जिसमें वह आश्रय पा सके और अंततः किसी देश में, समुद्र में, किसी मनुष्य के शरीर में, धरती में, अपना आश्रय खोज लेती है। पदार्थ का आश्रय भी धरती ही है।
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